प्रयागराज। आज भारत को आजाद हुए 78 साल हो चुके हैं, और आजादी से जुड़ी आप सबने तमाम कहानियों को सुना व पढ़ा होगा. बहुत से क्रांतिकारियों के निशान आज भी कहीं ना कहीं स्मारकों और प्रतीकों के रूप में जीवित हैं. आजादी के दीवानों ने अंग्रेजों से आजादी पाने के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की और फांसी के फंदे तक को हंसते हुए गले लगा लिया. आज महाकंप्रयागराज के ऐसे ही एक इमली के पेड़ का इतिहास जानेंगे, जिसने सैकड़ों बलिदानों की चीख सुनी है.
अंग्रेजों की क्रूरता का गवाह फांसी इमली का इतिहास
महाकुंभ नगरी प्रयागराज जो धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है, इस धर्म की नगरी में 13 जनवरी 2025 से महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है. यह सिर्फ धार्मिक तक ही नहीं सीमित है, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन के लिए भी इस जगह से आजादी की अलख जगी.
फांसी इमली का पेड़ प्रयागराज के सुलेमसराय में स्थित है, जो गढ़वा मोड़ पर मौजूद है. इसे अंग्रेजी सरकार ने क्रांतिकारियों को सजा देने के लिए फांसी का स्थल बना रखा था. इस पेड़ पर 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों ने सैकड़ों क्रांतिकारियों को फांसी के फंदे पर लटका दिया था, जिनके बलिदानों की चीख आज भी प्रयागराज की मिट्टी में गूंजती है. फर्जी मुकदमा चलाकर भारतीयों को फंसा कर अंग्रेज उन्हें फांसी दे दिया करते थे.
आज का ये ऐतिहासिक पेड़
आज भी वहां उस पेड़ की कुछ सहयोगी पेड़ मौजूद हैं, जो लोगों को प्रेरणा देने का काम करती है. आजादी के लिए क्रांतिकारियों ने अपना सब कुछ बलिदान कर दिया. ये पेड़ स्वतंत्रता संग्राम की यादों को ताजा करने का एक स्थल है.
महाकुंभ में 40 करोड़ की आबादी प्रयागराज पहुंचने वाली है और जिसमें लोग प्रयागराज की धरती से पनपे स्वतंत्रता का इतिहास और धार्मिकता को करीब से जानने का प्रयास करेंगें. इसलिए ये फांसी इमली का पेड़ आजादी के प्रतीक के रूप में भारतीयों को प्रेरणा देने का काम करता रहेगा.