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पुष्कर में वैकुंठन एकादशी: द्वार खुलते ही भक्तों की उमड़ी भीड़
ADAbhijeet Dave
Dec 30, 2025 08:04:01
Ajmer, Rajasthan
पुष्कर(अजमेर) पुष्कर में वैकुंठन एकादशी पर खुले वैकुंठ द्वार, भगवान बैकुंठनाथ भक्तों संग निकले बाहर अंकर - इस संसार के अष्ट भू वैकुंठों में शामिल तीर्थराज पुष्कर में वैकुंठन एकादशी का पर्व श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया गया। पुष्कर सरोवर को भगवान नारायण का वास स्थल माना जाता है और यहां स्थित रामावेकुंठ मंदिर में वह अलौकिक परंपरा निभाई गई, जिसका श्रद्धालु पूरे वर्ष बेसब्री से इंतजार करते हैं। वैकुंठन एकादशी के अवसर पर मंदिर का वैकुंठन द्वार वर्ष में एकमात्र बार श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोला गया। मंदिर व्यवस्थापक सत्यनारायण वैष्णव ने बताया कि रामावेकुंठ मंदिर का संचालन पिछले समय से रामानुज दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुसार किया जा रहा है। दक्षिण भारतीय शैली से निर्मित नए रंगजी के मंदिर में स्थित वैकुंठन द्वार का विशेष धार्मिक महत्व है। यह द्वार वर्ष में केवल वैकुंठन एकादशी के दिन ही लगभग ढाई घंटे के लिए खोला जाता है, जबकि शेष पूरे वर्ष यह बंद रहता है। वैकुंठन एकादशी के दिन जैसे ही वैकुंठन द्वार खुला, मंदिर परिसर जय श्री बैकुंठनाथ के जयकारों से गूंज उठा। वैकुंठन द्वार से भगवान श्री बैकुंठनाथ श्रीदेवी और भू-देवी के साथ पालकी में विराजमान होकर बाहर आए। उनके साथ संतों और बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भी वैकुंठन द्वार से बाहर निकलकर इस पुण्य अवसर के साक्षी बने। बाहर आने पर भगवान की विधिवत पूजा-अर्चना की गई, जिसके बाद श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ पालकी को स्थापित किया गया। दर्शन के उपरांत भगवान को पुनः वैकुंठन द्वार से ही मंदिर में विराजमान कराया गया। मंदिर प्रबंधन के अनुसार मान्यता है कि जो श्रद्धालु भगवान के साथ वैकुंठ द्वार से बाहर आता है, उसका जीवन सफल हो जाता है और उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसी आस्था के चलते हर वर्ष देशभर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पुष्कर पहुंचते हैं। रामावेकुंठ मंदिर में वैकुंठ महोत्सव कुल दस दिनों तक मनाया जाता है। वैकुंठ एकादशी से लेकर अगले नौ दिनों तक प्रतिदिन शाम पांच बजे भगवान बैकुंठनाथ की सवारी निकाली जाती है। मंदिर के मुख्य द्वार से पालकी में भगवान को बाहर लाया जाता है और मंदिर परिसर में ढाई फेरे कराए जाते हैं। महोत्सव के दसवें और अंतिम दिन विशेष समारोह के साथ कार्यक्रम का समापन होता है। वैकुंठ एकादशी और वैकुंठन महोत्सव के दौरान पुष्कर में श्रद्धा, भक्ति और उत्सव का अनुपम संगम देखने को मिलता है, जो इस प्राचीन परंपरा की जीवंतता को आज भी बनाए हुए है।
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