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बीजेपी में प्रदेश अध्यक्ष चयन पर क्यों है सस्पेंस?
Noida, Uttar Pradesh
यूपी, कर्नाटक और गुजरात में प्रदेश अध्यक्ष पर फैसला क्यों अटका है?
एंकर:
बीजेपी इन दिनों एक बड़ी संगठनात्मक पहेली को सुलझाने में लगी है। उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात — पार्टी के तीन सबसे अहम राज्य। लेकिन इन तीनों ही जगहों पर प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर अभी तक सहमति नहीं बन पाई है। कहीं जातीय संतुलन की चुनौती है, तो कहीं संगठन बनाम परिवारवाद का दबाव।
बात सिर्फ नियुक्ति की नहीं है… 2027 और 2029 की रणनीति इन्हीं फैसलों पर टिकी है।
VO 1 – उत्तर प्रदेश बीजेपी के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बना हुआ है। यहाँ मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का कार्यकाल पूरा हो चुका है, लेकिन पार्टी अब तक नया नाम तय नहीं कर पाई है। दरअसल, 2024 के लोकसभा चुनाव में झटका लगने के बाद,
बीजेपी जातीय समीकरणों को फिर से साधना चाहती है। प्रदेश अध्यक्ष के लिए ओबीसी और दलित नेताओं के नामों पर मंथन चल रहा है। बीएल वर्मा, साध्वी निरंजन ज्योति, बाबूराम निषाद,
रामशंकर कठेरिया, विद्यासागर सोनकर जैसे चेहरों पर चर्चा जारी है।
यूपी की सीमा और आस पास के 9 राज्यों में से 6 राज्यों में पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष का ऐलान कर दिया है, जबकि तीन राज्यों में अभी तक प्रदेश अध्यक्ष का ऐलान होना बाकी है. खास बात यह है कि इन छह राज्यों में से बीजेपी ने दो राज्यों में ओबीसी और चार राज्यों में सामान्य वर्ग के नेताओं को प्रदेश अध्यक्ष की कमान देकर सामाजिक समीकरण को साधने की कोशिश की है. अब माना जा रहा है कि पार्टी यूपी में नया सियासी दांव खेलने की तैयारी में है और किसी दलित नेता को पार्टी की कमान दी जा सकती है.
दरअसल, बीजेपी ने उत्तरप्रदेश से सटे आसपास के इलाकों में कई प्रयोग कर लिए हैं । राजस्थान में मदन राठौर को प्रदेश अध्यक्ष चुना है जो ओबीसी से ताल्लुक रखते हैं. वहीं बिहार में पार्टी ने प्रदेश की कमान दिलीप जायसवाल को दे रखी है और वो भी अति पिछड़ा वर्ग से तालुक रखते हैं । मध्य प्रदेश में पार्टी ने हेमंत खंडेलवाल को यह जिम्मेदारी दी है जो वैश्य वर्ग से हैं. इन तीनों राज्यों के अलावा उत्तराखंड में ब्राह्मण समाज से आने वाले महेंद्र भट्ट को कमान सौंपी गई है. जबकि हिमाचल प्रदेश में राजीव बिंदल को पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष चुना है और ये वैश्य समाज(सामान्य ) वर्ग से हैं. वहीं छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने किरन सिंह देव को कमान सौंपी है जो राजपूत (सामान्य) वर्ग से ताल्लुक रखते हैं. यानी देखा जाए तो पार्टी ने यूपी में अध्यक्ष का ऐलान करने से पहले यूपी से आस पास के छह राज्यों में से दो राज्यों में ओबीसी और चार राज्यों में सवर्ण चेहरों पर दांव लगा दिया है. जबकि झारखंड, दिल्ली और हरियाणा में प्रदेश अध्यक्ष का ऐलान नहीं हुआ है। बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश में संगठन और सत्ता का संतुलन साधना जरूरी है। सरकार ठाकुर समाज से आने वाले योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में है । ऐसे में पार्टी संगठन की कमान किसी दलित या पिछड़े नेता को सौंपकर बड़ा सामाजिक संदेश देना चाहेगी ।
बाईट - भोला सिंह सांसद , बीजेपी
VO 2 – वही कर्नाटक में बीजेपी को पार्टी के भीतर की रस्साकशी परेशान कर रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा चाहते हैं कि उनके बेटे विजयेंद्र को फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए। लेकिन पार्टी में यह फैसला वंशवाद के संकेत की तरह देखा जा रहा है,और इसलिए अब तक कोई घोषणा नहीं हो सकी है। बीजेपी अब सिर्फ चुनाव नहीं, 2029 तक की राजनीति देख रही है। हर राज्य में नेतृत्व ऐसा चाहिए जो ना सिर्फ जातीय समीकरण सधे, बल्कि ग्राउंड पर संगठन को फिर से मजबूत कर सके। वही गुजरात— बीजेपी की प्रयोगशाला हैं।
यहाँ भी ज़िला अध्यक्षों की घोषणा के दो महीने बाद भी प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर सस्पेंस बना हुआ है। सीआर पाटिल की जगह कौन लेगा — इस पर चर्चा तो बहुत है,
लेकिन फैसले से पहले पार्टी कोई चौंकाने वाला नाम ला सकती है — जैसा वह पहले भी करती रही है।पार्टी के भीतर मानना है कि गुजरात में हर बार हाईकमान सरप्राइज देता है । चाहे स्वर्गीय विजय रूपाणी हों, जीतू वाघाणी या पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल।हालाकि पार्टी में नेताओं का बड़ा वर्ग मानता है कि पार्टी ओबीसी और दलित समाज को लगभग हर जगह किसी न किसी रूप में
सेट करेगी
बाइट - मुकेश राजपूत बीजेपी सांसद
अब देखना ये है कि पार्टी पहले इन राज्यों में संगठन की तस्वीर साफ़ करती है या सीधे राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम का ऐलान कर देती है।
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