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पेसा कानून के प्रभावी पालन और आदिवासी धर्म कोड के लिए 25 जनवरी प्रदर्शन
UMUJJWAL MISHRA
Dec 29, 2025 10:51:08
Ranchi, Jharkhand
आदिवासी अधिकारों, जमीन और पहचान को लेकर एक बार फिर आवाज़ बुलंद हुई है। साल के आख़िरी दिनों में रांची के धूमकुडिया सरना स्थल में आदिवासी जन परिषद ने अपनी वार्षिक समीक्षा बैठक आयोजित की। बैठक में पेसा कानून, जमीन की लूट, समता जजमेंट, धर्मांतरण और आदिवासी धर्म कोड जैसे ज्वलंत मुद्दों पर मंथन हुआ। इसी बैठक में संगठन ने ऐलान किया कि आदिवासी अधिकारों की मांग को लेकर 25 जनवरी को दिल्ली के जंतर-मंतर में धरना-प्रदर्शन किया जाएगा। साथ ही आने वाले दिनों में आंदोलन को और तेज करने की रणनीति भी तय की गई। उन्होंने कहा कि आज आदिवासी जन परिषद को लेकर यह सवाल उठाया जा रहा है कि जो संगठन लगातार आदिवासियों के हक-अधिकार के लिए आवाज़ बुलंद करता रहा है, उसकी धार कहीं कमजोर तो नहीं पड़ी है। लेकिन हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि हमारी धार में कोई कमी नहीं आई है। दरअसल, हम गठबंधन के तहत अन्य संगठनों को सहयोग देते रहे हैं। इसी क्रम में आज हमने एक समीक्षा बैठक आयोजित की, जिसमें यह तय किया गया कि संगठन के अस्तित्व को भी मजबूत बनाए रखना जरूरी है। आज आदिवासी समाज के सामने कई गंभीर चुनौतियाँ हैं—पेसा कानून का सही तरीके से लागू न होना, आदिवासियों की जमीन की लूट, ट्राइबल सब-प्लान का दुरुपयोग और समता जजमेंट जैसे संवैधानिक अधिकारों का अब तक जमीन पर लागू न होना। इन सभी मुद्दों पर आज विस्तार से चर्चा की गई। हमारा उद्देश्य है कि फरवरी-मार्च के भीतर एक बड़ा अधिवेशन आयोजित किया जाए और संगठन का विस्तार पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्यों में किया जाए। क्योंकि आज हम देख रहे हैं कि आदिवासियों पर कई तरह के हमले हो रहे हैं—कभी उनके संवैधानिक अधिकार छीने जा रहे हैं, तो कभी जाति और धर्म के नाम पर उन्हें आपस में लड़ाने की साजिश की जा रही है। आपने देखा होगा कि समता जजमेंट लागू नहीं होने के बावजूद आरक्षित क्षेत्रों जैसे तमाड़, खूंटी और अन्य इलाकों में सोने की खदानों की योजनाएं बनाई जा रही हैं। वहां संसाधनों की लूट के लिए लगातार प्रयास हो रहे हैं। ऐसे में आदिवासी जन परिषद एक दबाव समूह (प्रेशर ग्रुप) के रूप में काम करता रहेगा और चाहे सरकार हो या समाज के भीतर की ताकतें, जो भी आदिवासियों के हितों के खिलाफ काम करेगा, उसका विरोध किया जाएगा ताकि आदिवासी समस्याओं का समाधान सुनिश्चित हो सके। साल के अंतिम समय में यह बैठक आयोजित की गई है। नए साल में हमारा एजेंडा संगठन को और मजबूत बनाना है। इसके तहत बुद्धिजीवी मंच, सांस्कृतिक मंच और युवा मोर्चा का गठन किया जाएगा। यह सब आदिवासी समाज को राजनीतिक और संवैधानिक रूप से जागरूक करने के लिए होगा, क्योंकि जानकारी के अभाव में पेसा कानून जैसे महत्वपूर्ण कानूनों का लाभ आदिवासी समाज को नहीं मिल पाता है। हमारा लक्ष्य है कि 2026 के निर्णायक दौर से पहले पेसा कानून को जमीन पर कैसे उतारा जाए। इसके लिए गांव-गांव जाकर प्रशिक्षण दिया जाएगा और ग्राम सभाओं को सशक्त कर उन्हें मिनी गवर्नमेंट के रूप में कार्य करने के लिए तैयार किया जाएगा। जहां तक आदिवासी धर्म कोड का सवाल है, यह एक राष्ट्रीय मुद्दा है। राज्य सरकारें इसे अपने स्तर पर लागू नहीं कर पा रही हैं। इसी कारण हम देशभर के आदिवासी संगठनों के साथ लगातार बैठक कर रहे हैं। 31 तारीख को यहीं धर्म कोड के मुद्दे पर बैठक होगी और 25 तारीख को जंतर-मंतर में होने वाले महाधरने में आदिवासी जन परिषद के कार्यकर्ता भी शामिल होंगे। देश में 15 करोड़ से अधिक आदिवासी हैं, लेकिन आज भी उन्हें जनगणना के धर्म कॉलम में हिंदू, मुस्लिम, सिख या ईसाई के रूप में दर्ज किया जाता है। हम इसे आदिवासियों के साथ शोषण और अन्याय मानते हैं। इसका मुख्य कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। आदिवासी समाज के जनप्रतिनिधि सदन में इस मुद्दे को मजबूती से नहीं उठा पा रहे हैं। अब इसका रास्ता एक ही है—सामाजिक और जन आंदोलन के माध्यम से सरकार पर दबाव बनाना, ताकि आदिवासी धर्म कोड को मान्यता मिल सके और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार सुरक्षित हो सकें।
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