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देवा मेला 2025: बाराबंकी में गंगा-जमुनी तहजीब और एकता का नया उत्सव
NSNITIN SRIVASTAVA
Oct 17, 2025 05:37:20
Barabanki, Uttar Pradesh
Barabanki Story- देवा मेला 2025: सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की नगरी में जगमगाई गंगा-जमुनी तहजीब, एकता और भक्ति का अनोखा संगम
बाराबंकी जिले से करीब 12 किलोमीटर दूर स्थित देवा शरीफ में 100 वर्ष पुराना देवा मेला इन दिनों अपने पूरे शबाब पर है। सूफी संत हाजी वारिस अली शाह के वालिद सैय्यद कुर्बान अली शाह की याद में आयोजित यह मेला न सिर्फ बाराबंकी बल्कि पूरे प्रदेश की धार्मिक, सांस्कृतिक और गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक बन चुका है। इस वर्ष देवा मेला ने अपने 101वें पड़ाव पर प्रवेश करते हुए नए रंग, नए उत्साह और नई उमंग के साथ लोगों को मोह लिया है। पूरा देवा क्षेत्र रोशनी, भक्ति और उत्सव के माहौल से जगमगा रहा है। इस मेले में देशभर से हर धर्म और समुदाय के लोग शामिल होकर भाईचारे और एकता का संदेश दे रहे हैं।
इस बार के मेले में युवाओं और महिलाओं के लिए खास आयोजन किए गए हैं। परिधाने अवध फैशन शो में अवध की पारंपरिक परिधानों की झलक देखने को मिली। वहीं, बॉडी बिल्डिंग शो में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के बॉडी बिल्डरों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर युवाओं को प्रेरित किया। महिलाओं के लिए मिशन शक्ति प्रदर्शनी, हैंडमेड आर्ट्स स्टॉल, घरेलू उद्योगों और आत्मनिर्भरता उत्पादों की विशेष झलक ने मेले को और समृद्ध बनाया है। सांस्कृतिक मंच पर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आए कलाकारों ने लोकनृत्य, कव्वाली, कवि सम्मेलन और नाटकों के माध्यम से एक भारत, श्रेष्ठ भारत थीम को साकार किया। यह मंच न केवल कला का उत्सव है बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता का दर्पण भी बना।
सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की नगरी देवा न सिर्फ अध्यात्म का केंद्र है, बल्कि अपनी मशहूर मिठाई खाजा के लिए भी जानी जाती है। यह पारंपरिक मिठाई अब प्रदेश की सीमाओं को पार कर देशभर में प्रसिद्ध हो चुकी है। शादी-ब्याह और शुभ अवसरों पर यह अब शगुन का प्रतीक बन गई है। देवा मेला को कौमी एकता और भाईचारे का प्रतीक माना जाता है। हाजी वारिस अली शाह के हिंदू मित्र राजा पंचम सिंह द्वारा उनकी मजार का निर्माण करवाया जाना इस एकता की ऐतिहासिक मिसाल है। यहां होली जैसे त्योहार भी पूरे उत्साह से मनाए जाते हैं, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।
मेले का मुख्य प्रवेश द्वार कौमी एकता द्वार कहलाता है, जो राष्ट्र की एकता और सद्भाव का प्रतीक है। यही नहीं, मेले के दौरान हर वर्ष की तरह इस बार भी जिलाधिकारी की पत्नी द्वारा उद्घाटन और पुलिस अधीक्षक की पत्नी द्वारा समापन की परंपरा निभाई जा रही है। मेले में मुशायरा, कवि सम्मेलन, सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के साथ-साथ हलवा-परांठा जैसे पारंपरिक व्यंजन लोगों का दिल जीत रहे हैं। यह मेला न केवल मनोरंजन का केंद्र है बल्कि धार्मिक एकता, सामाजिक सद्भाव और आत्मनिर्भरता का भी संदेश देता है। देवा मेला हर वर्ष यह सिखाता है कि जो रब है वही राम है, जो वारिस है वही प्यार है। यही संदेश इसे एक अनूठे मेले के रूप में पहचान दिलाता है, जहाँ जाति-धर्म की दीवारें मिट जाती हैं और इंसानियत का परचम लहराता है.
बाइट- श्रद्धालु,
बाइट- दुकानदार।
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