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किशनगढ़ रेनवाल की जूती कला संकट में, सरकारी सहयोग की मांग
DCDILIP CHOUDHARY
Nov 27, 2025 10:31:15
Dudu, Rajasthan
रेनवाल (जयपुर)
जूती कला का अंतरराष्ट्रीय केंद्र किशनगढ़ रेनवाल में चमड़े की जूती का परंपरागत कारोबार खत्म होने की कगार पर
किशनगढ़ रेनवाल कभी अपने हस्तनिर्मित चमड़े की जूतियों के लिए दुनिया भर में जाना जाता था। स्थानीय कारीगरों की बारीक मेहनत से बनी जूती यहां की पहचान रही है। लेकिन वर्षों से घटते प्रोत्साहन, बढ़ती लागत और कम होती मजदूरी ने इस कला को कमजोर कर दिया है। जिस कारोबार पर कभी रेगर समाज के करीब 80 प्रतिशत परिवार निर्भर थे, वह आज धीरे-धीरे टूटता जा रहा है।
किशनगढ़ रेनवाल की जूतियां कभी राजस्थान की विरासत मानी जाती थीं। लेकिन अब यह परंपरागत कला संकट में है। सरकारी सहयोग की कमी और कमाई न के बराबर होने से कारीगर तेजी से पेशा बदल रहे हैं। जयपुर से लगभग 70 किलोमीटर दूर यह कस्बा जूती कला का अंतरराष्ट्रीय केंद्र माना जाता है। यहां की जूतियां सिर्फ पहनने की वस्तु नहीं, बल्कि कला का नमूना हैं। कारीगर परंपरागत तकनीक के साथ आधुनिक डिजाइन भी जोड़ते हैं, जिसके कारण क्लासिक और डिजाइनर दोनों तरह की जूतियों की बड़ी मांग रहती है। जोधपुरी जूतियां और विशेष पारंपरिक डिजाइन आज भी कई शहरों और राज्यों में भेजी जाती हैं। गांव के करीब 50 परिवार अभी भी इस कला को संभाले हुए हैं। चमड़ा काटने से लेकर डिजाइन तक का पूरा काम घरों में ही किया जाता है, जिससे हर प्रोडक्ट में घर की छाप नजर आती है। यहां की हैंडमेड चमड़े की बेल्ट भी काफी लोकप्रिय हैं, जिन पर की गई बारीक नक्काशी इन्हें खास बनाती है। किशनगढ़ रेनवाल की जूती कला केवल रोजगार नहीं, एक विरासत है। अगर समय रहते इसे संभाला नहीं गया, तो सदियों पुरानी यह पहचान खो सकती है। अब देखने वाली बात यह है कि सरकार और प्रशासन इस कला को बचाने के लिए क्या कदम उठाते हैं। पहले इस कस्बे के लगभग हर घर में जूती निर्माण का काम होता था। रेगर समाज के परिवार बड़े पैमाने पर जूतियां और अन्य चमड़े के उत्पाद बनाते थे। लेकिन मशीनों के उपयोग में बढ़ोतरी, कच्चे माल की महंगाई और घटती मांग ने कारीगरों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। आमदनी कम होने से नई पीढ़ी भी इस पेशे से दूर जा रही है। स्थानीय लोगों का मानना है कि चमड़े की जूती पहनना पारंपरिक रूप से लाभदायक माना जाता है। ग्रामीण इलाकों में इसे आरामदायक और मौसम के संतुलन को बनाए रखने वाला माना जाता है। हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं, लेकिन सदियों से यह मान्यता लोगों की जीवनशैली का हिस्सा रही है。
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