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क्या है माउंट आबू का रहस्य? जानें महादेव के अंगूठे की कहानी!
STSharad Tak
FollowJul 13, 2025 11:34:44
Sirohi, Rajasthan
\BSPECIAL FOR SWAN\B
एंकर : देवाधिदेव महादेव की इस धरती पर कितनी ही लीलाएं प्रसिद्द हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि माउंट आबू को शिव का अर्धकाशी क्यों कहा जाता है? यहां अचलगढ़ में महादेव के अंगूठे की पूजा होती है! आइए जानते हैं माउंट आबू से जुड़ी इस पौराणिक कथा के बारे में…”
VO - देवाधिदेव महादेव की लीला अपरम्पार है। जटाधारी शिव इस संसार की मोह माया से मुक्ति देकर अपने भक्तों का बेड़ापार करते हैं। सामान्य पूजा से ही प्रसन्न होने वाले शिव को ही महादेव कहा जाता है…”
VO - अरावली पर्वत श्रृंखला में शिव के निवास का वर्णन स्वयं शिव पुराण और स्कंद पुराण में मिलता है। काशी के बाद शिव के विविध रूपों में यहां विराजमान रहने के कारण माउंट आबू को अर्धकाशी भी कहा जाता है। महाशिवरात्रि से लेकर सावन के पूरे महीने यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। यहीं कारण है कि सिरोही जिले में सर्वाधिक मठ-मंदिर अरावली की गोद में बसे हैं…
“लेकिन अचलगढ़ में महादेव के अंगूठे की पूजा क्यों होती है? इसके पीछे एक अद्भुत पौराणिक कथा है…”
VO - स्कंद पुराण के अनुसार, ऋषि वशिष्ठ अरावली की एक गुफा में तपस्या किया करते थे। उनके पास नंदिनी नाम की एक गाय थी। कहते हैं इंद्र के बज्र प्रहार से पर्वत श्रृंखला में एक ब्रह्म खाई बन गई। ऋषि वशिष्ठ की गाय नंदिनी रोज़ इस खाई में गिर जाया करती थी। परेशान ऋषि वशिष्ठ ने हिमालय राज से प्रार्थना की। हिमालय राज ने अपने श्रेष्ठ पुत्र अरावली को खाई भरने भेजा। अरावली पर्वत भी इस खाई को न भर पाया और वहीं पर फैल कर लेट गया। इसी से अरावली पर्वत श्रृंखला विश्व की सबसे लंबी पर्वत श्रृंखला मानी जाती है…”
VO - खाई न भरने पर ऋषि वशिष्ठ ने फिर प्रार्थना की। इस बार हिमालय राज ने नंदीश्वर पर्वत को विशाल सर्प पर सवार कर भेजा। लेकिन नंदीश्वर भी खाई में समाने लगा। तब ऋषि वशिष्ठ ने देवाधिदेव महादेव से करुण पुकार की। महादेव ने काशी से ही अपने दाहिने पैर का अंगूठा फैलाकर इस पर्वत को स्थिर कर दिया। इसी स्थान को अचलेश्वर महादेव कहा गया। कहा जाता है कि इस पर्वत को शिव के अंगूठे ने ही स्थिर किया — और तभी से इस स्थान को अचलगढ़ के नाम से जाना जाता है…”
VO - माउंट आबू में महेशानंद महाराज द्वारा बनाए गए शंकर मठ में भी शिव के अद्भुत रूप के दर्शन होते हैं। यहां 35 टन वजन के एक ही पत्थर से तराशकर पंच फीट ऊंचा शिवलिंग बनाया गया है। इसमें महादेव के त्रिनेत्र और समुद्र की लहरों में शिव का स्वरूप झलकता है। महाशिवरात्रि और सावन में यहां दिन-रात रूद्राभिषेक व अनुष्ठान होते रहते हैं…”
BYTE - सैलानी, राजकोट, गुजरात:
BYTE - सैलानी, गुजरात:
BYTE - सैलानी, गुजरात:
BYTE - पंजी रावल, पुजारी, अचलगढ़ महादेव मंदिर
VO - माउंट आबू के अचलगढ़ की कथा में जहां स्वयं महादेव का अंगूठा पर्वत को स्थिर रखे हुए है। तभी तो कहते हैं — भोलेनाथ के दरबार में सच्चे मन से की गई प्रार्थना कभी खाली नहीं जाती।
जी मीडिया के लिए सिरोही से शरद टाक की रिपोर्ट
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