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जैसलमेर में गोडावण के अंडों को बचाने की अनोखी वैज्ञानिक पहल!
SDShankar Dan
FollowJul 09, 2025 06:36:59
Jaisalmer, Rajasthan
जिला-जैसलमेर
विधानसभा-जैसलमेर
खबर की लोकेशन-जैसलमेर
रिपोर्टर-शंकर दान
मोबाइल-9799069952
जैसलमेर में विलुप्त हो रहे गोडावण पक्षी को बचाने की अनोखी कोशिश।
गोडावण संरक्षण को नई दिशा: जैसलमेर में शुरू हुआ अंडा प्रतिस्थापन का वैज्ञानिक प्रयोग
अब उनके अंडों को घोंसले से निकालकर सुरक्षित जगह पर से रखा जा रहा,
शिकारी जानवरों से अंडों को बचाने के लिए ये तरीका अपनाया गया,
घोंसले से असली अंडा निकालकर नकली अंडा रख देते,
इससे मादा गोडावण को घोंसला खाली नहीं लगता और वो वहीं रहती,
असली अंडा रामदेवरा के सेंटर में भेजा जाता है, जहां मशीन से उसे सेते हैं।
वहां से निकले चूजों को बाद में फिर से जंगल में छोड़ देते हैं।
इस तरीके से गोडावण के बच्चों की जान बचाई जा रही है।
साथ ही जैसलमेर और पोखरण की आबादी का जेनेटिक मिलान भी हो रहा है।
पहले ये पक्षी दोनों इलाकों में घूमते थे, अब रास्ते बंद हो गए हैं।
इसलिए अब वैज्ञानिक तरीके से उनका मिलन कराया जा रहा है।
डीएनपी जैसलमेर के DFO बृजमोहन गुप्ता ने दी यह जानकारी।
जैसलमेर
राजस्थान के जैसलमेर जिले के डेजर्ट नेशनल पार्क में संकटग्रस्त पक्षी गोडावण को विलुप्ति से बचाने के लिए वन विभाग ने अब एक वैज्ञानिक और नियंत्रित प्रयोग की शुरुआत की है। इस नई पहल के तहत गोडावण के अंडों को घोंसले से निकालकर सुरक्षित स्थान पर ले जाकर कृत्रिम ऊष्मायन की प्रक्रिया अपनाई जा रही है। हालांकि यह योजना अभी प्रारंभिक चरण में है और अब तक केवल दो अंडों पर ही यह तकनीक प्रयोग के तौर पर लागू की गई है। वन विभाग का मानना है कि यदि यह प्रक्रिया सफल रहती है तो आने वाले समय में इसे व्यापक स्तर पर लागू किया जाएगा और यह संकटग्रस्त गोडावण की प्रजाति को संरक्षित रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती है।
वीओ : डेजर्ट नेशनल पार्क के डीएफओ बृजमोहन गुप्ता ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि अंडा प्रतिस्थापन तकनीक को तीन वैज्ञानिक उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए प्रयोग में लाया जा रहा है। इनमें सबसे पहले अंडे को प्राकृतिक शिकारियों से बचाना है, ताकि अंडे का नाश होने से रोका जा सके। दूसरा उद्देश्य, अंडों को संरक्षित कर कृत्रिम ऊष्मायन द्वारा चूजे तैयार करना और उनके माध्यम से प्रजाति की जेनेटिक विविधता को सुरक्षित करना है। और तीसरा बड़ा उद्देश्य यह है कि गोडावण की जो दो मुख्य आबादियां—जैसलमेर का DNP क्षेत्र और पोखरण क्षेत्र—हैं, उनके बीच प्राकृतिक आवाजाही कम हो गई है। ऐसे में कृत्रिम विधि से तैयार चूजों के माध्यम से दोनों क्षेत्रों की जेनेटिक पूल का आदान-प्रदान संभव हो सकेगा।
डीएफओ गुप्ता के अनुसार, यह प्रक्रिया पूरी तरह वैज्ञानिक और संरक्षित पद्धति से की जा रही है। जब किसी घोंसले में अंडा दिखता है, तो प्रशिक्षित टीम द्वारा उसे निकालकर वहां एक डमी अंडा रख दिया जाता है। इससे मादा गोडावण घोंसले को छोड़ती नहीं है और उसका प्राकृतिक व्यवहार बना रहता है। निकाले गए अंडे को रामदेवरा स्थित संरक्षण व ब्रीडिंग सेंटर भेजा जाता है, जहां उन्हें नियंत्रित तापमान में सेने की व्यवस्था की जाती है। यह तकनीक पहले से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपयोग में ली जाती रही है, लेकिन राजस्थान में इसका प्रयोग अब हो रहा है।
यह भी महत्वपूर्ण है कि अभी तक केवल दो अंडों पर ही यह प्रक्रिया अपनाई गई है, और दोनों मामलों में परिणामों पर तकनीकी निगरानी की जा रही है। वन विभाग का कहना है कि फिलहाल यह पूरा प्रयास एक पायलट प्रोजेक्ट की तरह है। यदि यह मॉडल सफल होता है, तो अगले वर्षों में इसे विस्तार से लागू किया जाएगा। विभाग का उद्देश्य है कि इस प्रयोग के जरिए गोडावण की प्रजनन दर में सुधार हो, और उनके चूजे सुरक्षित रूप से तैयार होकर प्राकृतिक पर्यावास में वापस छोड़े जा सकें।
जैसलमेर और आसपास के क्षेत्रों में गोडावण की संख्या लगातार घट रही है। खुले घोंसलों में अंडे दिए जाने के कारण वे अक्सर सियार, लोमड़ी, कुत्ते जैसे शिकारियों का शिकार हो जाते हैं। यही वजह है कि लंबे समय से इनकी प्रजनन दर चिंताजनक बनी हुई है। अब जबकि विभाग द्वारा अंडों को प्रारंभिक अवस्था में सुरक्षित करने की पहल की गई है, तो इससे इन पक्षियों की प्रजाति को संरक्षित करने की उम्मीद जगी है।हालांकि विभाग भी इस प्रक्रिया को लेकर पूरी सतर्कता बरत रहा है। हर कदम पर वैज्ञानिक सलाह और निगरानी सुनिश्चित की जा रही है, ताकि मादा पक्षी के व्यवहार या पारिस्थितिकी पर कोई प्रतिकूल असर न पड़े। कुल मिलाकर, जैसलमेर में शुरू हुआ यह प्रयोग अगर सफल रहता है, तो यह गोडावण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक पहल के रूप में सामने आ सकता है। वर्तमान में यह योजना भले सीमित स्तर पर हो, लेकिन इसके परिणाम आने वाले वर्षों में रेगिस्तान के इस गौरवशाली पक्षी को विलुप्ति से बचा सकते हैं।
बाईट- बृजमोहन गुप्ता-डीएफओ-डेजर्ट नेशनल पार्क-जैसलमेर
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