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1992 के कारसेवकों की दास्तान: तारा भंडारी के साथ अयोध्या तक आस्था का सफर
STSharad Tak
Dec 05, 2025 16:30:55
Sirohi, Rajasthan
एंकर : 6 दिसंबर 1992—देश के इतिहास की वो तारीख, जिसे आज भी करोड़ों लोग याद रखते हैं। उसी दिन अयोध्या में लाखों की भीड़ उमड़ी थी और उस भीड़ में सिरोही से भी सौ से अधिक कारसेवक मौजूद थे। इनमें राजस्थान विधानसभा की पूर्व उपाध्यक्ष तारा भंडारी और कारसेवक हरिसिंह भी शामिल थे। आज… तीन दशक बाद भी उन कारसेवकों की यादें बिल्कुल ताज़ा हैं। जी मीडिया से खास बातचीत में उन्होंने उस दौर के संघर्ष, मुश्किलों और भावनाओं को साझा किया। आइए सुनते हैं—30 साल पुराने उस सफर की दास्तान…\n\nVO 1 — 2 दिसंबर 1992… राजस्थान के सिरोही, कालंद्री, चडुआल और आस-पास के गांवों से कारसेवकों का एक बड़ा जत्था रामझरोखा मंदिर से रवाना हुआ।\nजत्थे का नेतृत्व कर रही थी—पूर्व विधायक और कारसेवक तारा भंडारी और हरिसिंह। सिरोही से बस से रवाना होकर बाद में रेलवे के सफर में हर तरफ गूंज रहा था—“जय श्री राम!” चेहरों पर उत्साह, दिलों में सिर्फ एक सपना—रामलला के दर्शन। कारसेवक बताते हैं कि यात्रा के दौरान पूरा माहौल भक्तिमय था। लोग भजन गाते, नारे लगाते और अयोध्या पहुँचने की खुशियों में डूबे थे। तीन दिसंबर की रात जब उनका जत्था अयोध्या पहुँचा, तो सबसे पहले सभी ने सरयू नदी में स्नान किया। और फिर तुरंत सेवा और आयोजन कार्यों में जुट गए।\n\nBITE – तारा भंडारी, कार सेवक और पूर्व विधायक \\n\nVO 2 — छह दिसंबर की सुबह… अयोध्या का माहौल आस्था, उत्साह और नारों से थर्रा रहा था। पूरा शहर “जय श्री राम” के उद्घोष से गूंज उठा था। कारसेवक बताते हैं कि जैसे-जैसे भीड़ बढ़ती गई, माहौल तीव्र होता गया। इसी बीच सिरोही का ही एक कारसेवक—समुंदर सिंह राजपुरोहित, विवादित ढांचे से गिरकर गंभीर रूप से घायल हो गया। उसे तुरंत भीड़ से निकालकर लोगों ने मदद पहुँचाने की कोशिश की। धक्का-मुक्की और भगदड़ में स्वयं तारा भंडारी भी घायल हो गईं, लेकिन उस समय किसी को अपने दर्द की नहीं—सबके मन में बस एक ही भाव था—आस्था और सेवा।\n\nBITE – तारा भंडारी, कार सेवक और पूर्व विधायक \n\nVO – कारसेवक कहते हैं कि उस सफर में दर्द भी था, मुश्किलें भी…लेकिन आस्था इतनी प्रबल थी कि हर संकट छोटा लगने लगा। आज… तीन दशक बाद जब भव्य राममंदिर तैयार खड़ा है, तो सिरोही के ये कारसेवक गर्व से कहते हैं— उनकी हर मुश्किल, हर कदम…सार्थक हो गया।\nउनके लिए यह सिर्फ यात्रा नहीं, बल्कि विश्वास, समर्पण और जीवन की सबसे बड़ी आस्था का क्षण था।\n\nWALK THROUGH \n\nशरद टाक\nजी राजस्थान, सिरोही
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