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Churu331001

छोटे भाइयों ने धर्म ग्रंथों में पाया अद्भुत ज्ञान!

NPNavratan Prajapat
Jul 13, 2025 10:34:31
Churu, Rajasthan
चूरू विधानसभा- सरदारशहर लोकेशन-सरदारशहर स्थानीय-संवाददाता- मनोज कुमार प्रजापत मोबाइल-9024381575 @manoj98346 सरदारशहर। छोटे बच्चों की अद्भुत प्रतिभा 7 और 10 साल के दो भाइयों को याद हैं हिंदु धर्म ग्रन्थ लव्य और परीक्षित को है संपूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अर्थ सहित कंठस्थ रामचरितमानस की चौपाइयाँ, सुंदरकांड, श्रीमद्भागवतमहापुराण के जटिल संस्कृत श्लोक भी मधुर स्वर में गाते हैं दोनों भाई, मोबाइट से हैं दूर धर्म ग्रंथो से है लगाव, इस लिए नहीं है तनाव भारतीय संस्कृति के पुनः उत्थान हैं दोनों भाइयों का लक्ष्य वर्तमान पीढ़ी के परिजनों के आदर्श हो सकते है दोनों भाइयों के मातापिता, आध्यात्मिता हमे सिखाता है जीवन जीने की कला आखिर कैसे संस्कार हो युवाओं के यह तय करना हैं हमे, आधुनिकता के इस दौर में हम हमारी संस्कृति से कटते जा रहे हैं। जहां हम हमारे धर्म ग्रंथो को भूला रहे हैं तो वहीं विदेशी हमारे धर्म ग्रंथो पर बड़े बड़े रिसर्च कर रहें हैं, उन्हें अपना रहे हैं। हमारी आधिकुनिक पीढ़ी के बच्चे मोबाइल, वीडियो गेम और इंटरनेट की दुनिया में इतने उलझ गए हैं कि उन्हें अपने धर्म और परंपराओं की अहमियत का अदाजा ही नहीं हैं ओर ना ही बच्चों के माता पिता के पास समय हैं कि वो हमारे धर्म ग्रंथो से हमारे बच्चों को जोड़ सके, इसका नतीजा यह हो रहा है कि हम हमारे जीवनमूल्य को खो रहे हैं, विशेष रूप से हमारा हमारी संस्कृति से कटने का सबसे ज्यादा असर हमारी युवा पीढ़ी पर देखने को मिल रहा हैं, आज के बच्चे लगातार हिंसक होते जा रहे हैं, गुस्सा बढ़ने के साथ ही ओवरथिंकिंग का शिकार भी हो रहे है, तनाव भी बच्चों में बढ़ गया हैं, बच्चों में सहनशीलता भी घट गई हैं और यही वजह है कि आज के समय में आत्महत्या जैसी समस्याएं बढ़ गई हैं। वहीं सरदारशहर के 10 वर्षीय लव्य ओर 7 वर्षीय परीक्षित भारतीय संस्कृति के पुनः उत्थान के सपने देखते हैं। इस कम उम्र में जहां बच्चे खेल कूद में मोबाइल में खोए रहते हैं वहीं लव्य ओर उसका छोटा भाई परीक्षित इतनी कम उम्र में संपूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अर्थ सहित कंठस्थ है। इसके अलावा दोनों भाई रामचरितमानस की चौपाइयाँ, सुंदरकांड, और श्रीमद् भागवत महापुराण के जटिल संस्कृत श्लोक भी मधुर स्वर में सुंदर ढंग से गाते हैं। लव्य ओर परीक्षित दोनों भाई आध्यात्म का भी अच्छा ज्ञान रखते हैं । जब लव्य ओर परीक्षित हिंदु धर्म ग्रंथो ओर अध्यात्म पर चर्चा करते हैं दो बड़े बड़े सुनने वाले उनकी बातों को सुनते ही रह जाते हैं। दोनों भाइयों का मानना हैं कि आज के समय में बड़ी विडंबना हैं यदि कोई हिन्दू सिर पर तिलक लगाता हैं या गले में माला पहनता है या फिर सिर पर चोटी रखता है तो उसका उपहास उड़ाया जाता हैं। जबकि अन्य धर्म में ऐसा नहीं होता हैं। हमें हमारे धर्म ग्रंथो पर गर्व करना चाहिए। हम यदि हमारे धर्म को जानेंगे समझेंगे तो हमारा नैतिक पतन नहीं होगा। वहीं दोनों भाइयों के शिक्षक अनुराग मिश्र दोनों भाइयों की इस अभूतपूर्व उपलब्धि पर कहते हैं कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत है। अनुराग मिश्र बताते हैं कि पहले जहां बच्चे दादी-नानी की कहानियों से भगवान, धर्म और संस्कृति से जुड़े रहते थे, वहीं अब टेक्नोलॉजी की वजह से वे इन बातों से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में हर पेरेंट्स की जिम्मेदारी है कि वो अपने बच्चों को बचपन से ही सनातन धर्म की जड़ों से जोड़ें ताकि उनके अंदर संस्कार, आस्था और धार्मिक सोच विकसित हो सक। उन्होंने बताया कि लव्य ओर परीक्षित का रुझान धर्म ग्रंथो की ओर इस लिए हुआ क्योंकि बच्चों के घर में ऐसा माहौल हैं। आज के समय में हमारा तेजी से नैतिक पतन हो रहा हैं इसकी मुख्य वजह यही है कि हम हमारी भारतीय संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं हर परिजन चाहता हैं कि उसका बेटा डॉक्टर बने इंजीनियर ओर इसी लिए उनपर उम्मीदों का बोझ लाद दिया जाता हैं, परिजन पैसे कमाने की अंधाधुंध दौड़ में शामिल होकर बच्चों को समय देना भूल जाते है परिणाम यह निकलता है कि बच्चों को हम संस्कार नहीं दे पाते हैं। खुद आचरण से उदाहरण बनें लव्य ओर परीक्षित की इस उपलब्धि के पीछे दोनों के माता पिता की भी अहम भूमिका रही हैं। क्योंकि दोनों ने ही बच्चों को ना सिर्फ समय दिया बल्कि बाल मन में ही भारतीय धर्म ग्रंथो के प्रति बच्चों में रुचि पैदा की। लव्य ओर परीक्षित के पिता सुनील हारित बताते हैं कि आज के माता पिता की जीवन की सबसे बड़ी चिंता है कि उनके बच्चे हर वक्त स्क्रीन पर ही रहते हैं। बच्चों में गुस्सा बढ़ गया है, लेकिन इसके जिम्मेदार कहीं ना कहीं हम स्वयं भी हैं। बच्चे अपने माता-पिता को देखकर सबसे ज्यादा सीखते हैं। अगर आप खुद रोज पूजा करेंगे, भगवान का नाम लेंगे, धार्मिक ग्रंथ पढ़ेंगे तो बच्चे भी आपको देखकर वैसा ही करेंगे। इसलिए उनका सबसे बड़ा रोल मॉडल पहले आप खुद बनें। आज की मॉडर्न लाइफ में बच्चों को धर्म से जोड़ना आसान नहीं, लेकिन नामुमकिन भी नहीं। बस जरूरत है थोड़ा सा समय देने की और उन्हें प्यार से समझाने की। अपने बच्चों को छोटी उम्र से ही धर्म, संस्कार और भगवान के करीब लाएं ताकि वे बड़े होकर भी अपनी संस्कृति और परंपरा को याद रखें। बच्चे घर पर जैसा महौल देखते हैं वैसे ही वो खुद बनने लगते हैं। अगर वो देखेंगे कि घर पर हमेशा लड़ाई, झगड़ा और टॉक्सिक बातें हो रही हैं तो ये सारी खराब आदतें बच्चों में भी आने लगेंगी। आज के समय में आध्यात्मिक माहौल बच्चों के विकास के लिए बहुत जरूरी है। अगर हमारा आध्यात्मिक पतन हुआ तो समझो हमारा सामाजिक पतन होना भी तय हैं। लव्य ओर परीक्षित रोज करते हैं धर्म ग्रंथो का अध्ययन लव्य ओर परीक्षित मोबाइल से दूर रहकर हर दिन सनातन धर्म ग्रंथो के पाठ करते हैं। हाल ही में हुई सेंट्रल यूनिवर्सिटी न्यू दिल्ली द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय गीता ओलंपियाड में दोनो ने विश्व स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसके अलावा इन दोनों भाइयों की प्रतिभा का एक और प्रमाण तब मिला जब उन्होंने अयोध्या पब्लिकशन द्वारा आयोजित वर्ल्ड हनुमान चैंपियशिप अंग्रेजी में 100 में से 100 अंक प्राप्त कर सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। लव्य ओर परीक्षित बताते हैं कि उन्हें यह सब पढ़ने की प्रेरणा अपने पिता से मिली हैं। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति और परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए हम काम करना चाहते हैं। आज के समय में धर्म के नाम पर भी कुछ लोग व्यापार करने लग गए हैं इसके चलते भी हमारा नुकसान हुआ हैं। सनातन धर्म हमेशा अच्छे इंसान बनाने की प्रेरणा देता हैं। वाकई में इस छोटी उम्र में भी लव्य ओर परीक्षित हमारे समाज को आईना दिखा रहे हैं। हमारे नैतिक पतन होने का मूल कारण यही है कि हम हमारे संस्कारों और हमारी संस्कृति से दूर हो रहे हैं। जी मीडिया के लिए चूरू के सरदारशहर से मनोज कुमार प्रजापत की रिपोर्ट बाइट- सुनील कुमार हारीत, बच्चो का पिता स्काई ब्लू कलर का चोला पहन रखा है। बाइट- अर्चना, बच्चो की माता बाइट- लव्य हारीत, 10 वर्षीय बच्चा शर्ट पर फूल पत्ती बनी हुई है। बाइट- परीक्षित हारित, 7 वर्षीय बच्चा सफेद शर्ट पहन रखा है। बाइट- अनुराग मिश्र, बच्चो के अध्यापक चश्मा लगा रखा है।
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