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कानपुर के खुले आकाश के नीचे मां आशा देवी की चमत्कारी पूजा
PPPraveen Pandey
Sept 23, 2025 04:47:26
Kanpur, Uttar Pradesh
कानपुर
SLUG- कानपुर के इस मंदिर में माँ यहां खुले आसमान के नीचे विराजती हैं
- त्रेता युग से जुड़ा इस मंदिर का इतिहास
- मां सीता ने यहां बैठकर प्रभु श्री राम से मिलने की लगाई थी आश तभी से इस मंदिर का नाम पड़ा मां आशा देवी मंदिर
-छत बनाने पर गिर जाती है छत
- नवरात्रि में लाखों की संख्या में श्रद्धालु करते हैं दर्शन
एंकर-कानपुर के कल्याणपुर में एक ऐसा मंदिर जो त्रेता युग से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर में मां सीता ने बैठकर प्रभु श्री राम से मिलने की आस लगाई थी और इसीलिए इस मंदिर का नाम मां आशा देवी मंदिर रखा गया
यह मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। जिस समय प्रभु श्री राम ने मां सीता का परित्याग किया था और कानपुर के बिठूर स्थान पर मां सीता को प्रभु लक्ष्मण छोड़कर चले गए थे उसके बाद मां सीता इसी मंदिर में प्रतिदिन प्रभु राम से मिलने के लिए पूजा अर्चना करती थी।
यहाँ माता खुले आसमान के नीचे विराजती हैं।
V/O- वैसे तो इस मंदिर की अपनी अलग-अलग मानता है
माना जाता है कि सीता माता ने वाल्मीकि आश्रम जाने से पहले यहाँ पूजा की थी। मां आशा देवी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं खासकर संतान प्राप्ति के लिए नवविवाहित जोड़े यहां आते हैं।
कल्याणपुर स्थित मां आशा देवी का मंदिर में स्थापित शिला में मां आशा देवी उकेरी गई छवि में विराजित हैं। मंदिर के अंदर मां खुले आसमान के नीचे विराजती हैं। बताया जाता है कि दो बार मंदिर की छत ढालने का प्रयास किया गया लेकिन काम पूर्ण नहीं हो सका।इसलिए इसे मां की खुले में ही रहने की इच्छा मान लिया गया। अपने नाम के अनुरूप मां भक्तों की आशाओं को पूर्ण करने वाली हैं। नवरात्र पर यहां सुबह से लेकर शाम तक श्रद्धालुओं की कतारें मां के दर्शन के लिए लगती हैं। मां अपने भक्तों की हर इच्छा पूरी करती हैं। यह पूजा अर्चना करने की विधि अलग है यदि किसी को अपनी कोई मान्यता पूरी करनी हो तो यह एक ईट की धरन रहकर अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए पूजा अर्चना की जाती है और जब मनोकामना की पूर्ति हो जाती है तो उसे ईट को वहां से हटकर कहीं और रख दिया जाता है
मां आशा देवी मंदिर का इतिहास त्रेता युगीन रामायण काल से जुड़ा हुआ बताया जाता है। जब भगवान राम ने मां सीता का पारित्याग किया था तब वाल्मीकि आश्रम जाने से पहले मां सीता ने यहां रुक कर शिला पर मां की छवि उकेर कर पूजा की थी। मुगलों और अंग्रेजों के समय तक यहां पर शिला और दीवारें होती थीं। धीरे-धीरे समय के अनुरूप निर्माण कराया जाता रहा और मंदिर वर्तमान स्वरूप में है।
मान्यता है कि अपने नाम के अनुरूप मां भक्तों की आशाओं को पूर्ण करने वाली हैं। भक्तों ने बताया कि मां के मंदिर में ही ईट रख कर मांगने से मुराद एक वर्ष में ही पूरी हो जाती है। मंदिर में अधिकांश संख्या में नव विवाहित जोड़े अपनी संतान की कामना लेकर आते हैं।
WKT-praveen pandey
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