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जयपुर की परकोटे की हवेलियां डरातीं, बुलडोजर से ढहने की चेतावनी!
DGDeepak Goyal
Sept 11, 2025 11:07:52
Jaipur, Rajasthan
DEEPAK GOYAL-99829-33000
LOCATION-JPR
FEED-OFC
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जयपुर की पहचान मानी जाने वाली हवेलियां और झरोखे...अब खतरा बनते जा रहे हैं। कभी शाही शान की गवाही देने वाली ये इमारतें, अब अनदेखी और लापरवाही के बोझ तले ढह रही हैं। सुभाष चौक हादसे के बाद हैरिटेज निगम ने परकोटा क्षेत्र में बुलडोजर चलाना शुरू किया है। दशकों की अनदेखी, मालिकों की बेरुखी और किरायेदार व्यवस्था के कारण ये धरोहरें अब खतरे में बदल गई हैं।
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वीओ-1-गुलाबी नगरी की पहचान मानी जाने वाली परकोटे की हवेलियां और पुराने भवन अब अपनी जर्जर हालत के चलते इतिहास बनने की कगार पर हैं। कभी इन हवेलियों के झरोखे, कंगूरें और नक्काशी शहर की शान हुआ करते थे, लेकिन दशकों की अनदेखी, मालिकों की बेरुखी और किरायेदार व्यवस्था के कारण ये धरोहरें अब खतरे में बदल गई हैं। ताजा उदाहरण सुभाष चौक के पास छील का कुआं और पानों का दरीबा है, जहां 6 सितंबर को एक पुरानी बिल्डिंग ढहने से पिता और मासूम बेटी की दर्दनाक मौत हो गई थी। इस हादसे के बाद से हैरिटेज नगर निगम ने परकोटे में जर्जर इमारतों को ध्वस्त करने की कार्रवाई तेज कर दी है। सुभाष चौक क्षेत्र में रामकुमार धाबाई की गली में पांच जर्जर भवनों को बुलडोजर और हथौड़े से गिरा दिया गया, जबकि एक भवन को अस्थाई तौर पर सीज कर दिया गया। कार्रवाई सुबह 10.30 बजे शुरू हुई। सबसे पहले जर्जर इमारतों के आसपास रह रहे लोगों को बाहर निकाला गया और उसके बाद ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की गई। दिलचस्प बात यह रही कि कुछ भवन मालिकों ने भी अपने स्तर पर मजदूर लगाकर भवनों के कमजोर हिस्सों को ढहा दिया। जोन उपायुक्त दिलीप भंभानी के अनुसार हाल ही में 14 पुरानी इमारतों की फाइल हाईपावर कमेटी को भेजी गई थी। अतिरिक्त आयुक्त की अध्यक्षता वाली इस कमेटी ने मौके पर निरीक्षण किया और 7 भवनों को ध्वस्त करने योग्य माना, जबकि अन्य 7 को मरम्मत के लिए नोटिस दिया गया है।
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बाइट- दिलीप भंभानी, उपायुक्त, किशनपोल जोन
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वीओ-2-दरअसल मानसून सीजन में निगम हैरिटेज ने 179 बिल्डिंगों को जर्जर मानकर नोटिस जारी किए थे। इनमें कई हवेलियां और ऐतिहासिक इमारतें भी शामिल हैं। अधिकांश भवनों के मालिक इन्हें किरायेदारों के भरोसे छोड़ चुके हैं। मरम्मत और देखभाल के अभाव में अब ये जिंदगियों के लिए खतरा बन चुके हैं। परकोटे के ये भवन केवल पत्थर और ईंटों का ढांचा नहीं थे, बल्कि जयपुर की सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर थे। जिन हवेलियों में कभी संगीत, मेहमाननवाजी और पारिवारिक जीवन की रौनक गूंजती थी, वहां अब सीलन, दरारें और ढहते मलबे का सन्नाटा है। यदि समय रहते संरक्षण नहीं हुआ तो आने वाली पीढ़ियां इन हवेलियों को केवल फोटोग्राफ और किताबों में ही देख पाएंगी। वहीं प्रशासन के सामने दोहरी चुनौती है एक तरफ लोगों की जान बचाना और दूसरी तरफ धरोहरों को संरक्षित रखना। फिलहाल निगम का बुलडोजर ही उन हवेलियों का अंतिम वारिस बनता जा रहा है जिन्हें कभी जयपुर की आत्मा कहा जाता था।
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वॉक थ्रू-- दीपक गोयल जी मीडिया जयपुर
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बहरहाल, जो हवेलियां कभी जीवन और रंगों से भरी थीं, अब जानलेवा खतरा बन चुकी हैं। हवेलियों को संजोने की बजाय भवन मालिकों ने किरायेदारों पर छोड़ दिया गया, नतीजा जर्जर होकर ढहना। क्या जयपुर की परंपरा, झरोखे और हवेलियां बुलडोजर के मलबे में ही दफ़्न होंगी, या इनके संरक्षण की ठोस योजना बनेगी? निगम फिलहाल जान बचाने पर ध्यान दे रहा है, लेकिन सवाल यह है कि क्या विरासत बचाने के लिए भी उतना ही तेज़ एक्शन होगा?.......दीपक गोयल जी मीडिया जयपुर
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