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क्या आज भी लकड़ी के पुल पर जी रहे हैं एक लाख लोग?
Gonda, Uttar Pradesh
एंकर- वैसे तो दुनिया चांद पर पहुंच चुकी है लेकिन आज भी गोंडा जिले का एक ऐसा गांव है जहां के लोग चांद पर पहुंचने की दो बात छोड़िए। उनके आने-जाने के लिए स्थाई पुल का निर्माण नहीं हो सका है और वह लोग आजादी के बाद से ही खुद के चंदे से हर वर्ष दो बार अस्थाई लकड़ी का पुल बिसुही नदी पर बनाते हैं और उसी से आते-जाते भी हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं गोंडा लोकसभा क्षेत्र के मनकापुर ब्लॉक अंतर्गत ककरघटा गांव की जहां के स्थानीय ग्रामीणों ने अपनी जरूरतों को देखते हुए खुद ही चन्दा इक्कठा करके लकड़ी का अस्थाई पुल बनाया है। जिससे लोग आवागमन कर रहे हैं दो जिले गोंडा और बलरामपुर को जोड़ने वाला यह पुल बिसुही नदी पर बना है। हर साल ग्रामीणों के सहयोग से यह अस्थायी पुल तैयार किया जाता है हालांकि यह पुल काफी कमजोर है और लोगों को जान जोखिम में डालकर इसे पार करना पड़ता है। इस तरफ गोंडा है तो वहीं दूसरी तरफ पड़ोसी जिला बलरामपुर है पुल की इस तरफ 25 से 30 गांव है जिसकी आबादी लगभग 40 से 50 हजार है तो वहीं दूसरी तरफ बलरामपुर जिले 40 से 50 हजार की संख्या में लोग है कुल मिलाकर लाखों की संख्या में लोग रहते हैं जिनका आवागमन पुल से होता है।
वीओ- "क्या आप सोच सकते हैं कि आज के दौर में भी एक लाख से ज्यादा की आबादी सिर्फ लकड़ी के पुल पर अपनी जिंदगी की डोर थामे बैठी है न पक्का पुल, न प्रशासन की सुध…ये कहानी है गोंडा और बलरामपुर के बीच बसे ककरघटा गांव की जहां हर साल ग्रामीण खुद चंदा इकट्ठा कर नदी पर पुल बनाते हैं आइए आपको लेकर चलते हैं जमीनी हकीकत की उस तस्वीर तक जहां ग्रामीणों ने कई बार प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधि से पुल बनवाने की मांग की मगर कोई सार्थक पहल नहीं हुई। छोटे-छोटे लकड़ी के पटरे लगा दिए गए अब इसी लकड़ी के पुल से आवागमन होता हैं इसके बनने के बाद ग्रामीणों को काफी राहत मिली है। लोग पटरा-बल्ली से बने अस्थायी पुल से अपने घर तक का सफर करते हैं। हैरानी की बात यह है कि इस क्षेत्र के ग्रामीण हर साल आपस में चंदा इकट्ठा करके लकड़ी का पुल बनाते हैं। लकड़ी के पुल के रखी गई बुनियाद ढाँचा महज 1 साल तक चलती क्योंकि जब नदी का जलस्तर बढ़ता है जब बाढ़ आती है बनाया गया पुल कुछ हिस्सा बह जाता है तो वही हिस्से की लकड़िया खराब हो जाती है।
वीओ- वही ककरघटा ग्राम पंचायत के ग्राम प्रधान श्याम नारायण वर्मा ने बताया कि यह पुल बहुत दिनों से है कब से है इसे हम लोग नहीं जानते हैं साल में एक बार हम लोग चंदे से बनवाते हैं साल में एक बार दूसरे गांव के प्रधान वहां के लोग चंदा देकर के बनवाते हैं। गोंडा और बलरामपुर दोनों जिलों के लोग अपनी जान को जोखिम में डाल करके इस पुल से आते जाते हैं। जफरपुर के प्रधान और हमारे द्वारा भी इसपर के निर्माण कराए जाने को लेकर के शिकायत विधायक और संसद के पास हम लोगों द्वारा की गई है। पुल निर्माण न होने से लगभग 40 गांव दोनों जिलों के गांव के लोग प्रभावित हो रहे हैं एक लाख की आबादी भी प्रभावित हो रही है। हम लोग चाहते हैं कि यहां पर पुल का निर्माण हो जाए और हम लोगों के आने-जाने में कोई दिक्कत ना हो। वही रवि पटेल और रोहित वर्मा ने बताया कि हम लोग अपनी जान को जोखिम में डालकर के रास्ते से जाते हैं अभी तक कोई सुनने नहीं आया ना ही पुल का निर्माण हो पाया है। ग्रामीणों के सहयोग से ही स्कूल को बनवाया गया है ताकि हम लोगों के आने-जाने में दिक्कत ना हो हम लोग अपनी जान को जोखिम में डाल करके आते जाते हैं।
बाइट- श्याम नारायण वर्मा- ग्राम पंचायत ककरघटा।
बाइट- रवि पटेल- स्थानीय ग्रामीण।
बाइट- रोहित वर्मा- स्थानीय ग्रामीण।
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