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आईआईटी आईएसएम की 100वीं वर्षगांठ: विकसित भारत 2047 की दिशा में महत्वपूर्ण कदम!
Dhanbad, Jharkhand
एंकर -- धनबाद के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान आईआईटी आईएसएम अगले साल अपने स्थापना के 100 साल पूरे करेगा।जिसे लेकर अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस चल रहा है,जिसमें देश ही नहीं बल्कि विदेश की भी वैज्ञानिक शामिल हैं।डिजिटल तकनीक,व्यापारिक उत्कृष्ट और सतत विकास पर वैज्ञानिकों का मंथन चल रहा है।विकसित भारत 2047 के उद्देश्य से कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया है। कार्यक्रम के संयोजक आईआईटी आईएसएम के प्रो रश्मि सिंह ने कहा कि देश विदेश के वैज्ञानिक कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए है।2047 विकसित भारत परिप्रेक्ष्य में कॉन्फ्रेंस का आयोजन है।
बाइट -- प्रो रश्मि सिंह(संयोजक, आईआईटी आईएसएम) वाइट सूट में
भीओ --- वहीं कॉन्फ्रेंस में शामिल नार्वे इंस्टीट्यूट ऑफ एनर्जी टेक्नोलॉजी के सीनियर साइंटिस्ट संजय मिश्रा ने बताया कि अगर 2047 विकसित भारत की बात करें हम जो डेटा इस्तेमाल कर रहें,उसके मालिक हम हो।उसकी प्राइवेसी का हमे ख्याल रखना है।हमारे डेटा इंटरनेशनल कंपनी के कंट्रोल में रहता है। डेटा की प्राइवेसी पर हम काम रहें हैं।यूरोप में एक बड़ा ट्रायल चल रहा है कि हम अपने डेटा को सिक्योर कैसे रखें। भारत सरकार ने अच्छे काम किए हैं।हम बहुत ज्यादा मास्टर कार्ड और वीजा कार्ड पर निर्भर नहीं रह गए हैं।पे करने के लिए हम कई छोटे छोटे सिस्टम बना लिए हैं।नार्वे विश्व में सबसे हैपीएस्ट कंट्री है,फिर भी वहां मास्टर कार्ड और वीजा यूज करते हैं।लेकिन भारत में मास्टर और वीजा कार्ड पर निर्भरता बहुत कम होती जा रही है।यह भारत सरकार की पॉलिसी का नतीजा है।इस तरह के सिस्टम को दूसरे देश भी अनुसरण के कर रहें हैं।भारतीय होने पर मुझे गर्व है। फ्रांस की सरकार भी भारत सरकार से एक टायअप करने जा रही है कि किस तरह से वीजा और मास्टर कार्ड का उपयोग कम किया जाए।यह भारतीय के लिए सम्मान की बात है कि भारत के सिस्टम को वह भी अपने लाना चाहती है।
(02)बाइट -- संजय मिश्रा
(नार्वे इंस्टीट्यूट ऑफ एनर्जी टेक्नोलॉजी के सीनियर साइंटिस्ट) येलो टी शर्ट
भीओ --- पुर्दयु यूनिवर्सिटी यूएस के प्रोफेसर मंगेश चंद्रमौली ने बताया कि डिजिटल टेक्नोलॉजी को डेवलप कर देश को आगे बढ़ाना है।विकसित भारत 2047 के लक्ष्य में डिजिटल टेक्नोलॉजी की अहम भूमिका है। मेटाबॉलिज्म व वर्चुअल रियलिटी दुनियाभर में अभी पॉपुलर हो रहा है।वर्चुअल रियलिटी पर हम रिसर्च कर रहें हैं।मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में भी वर्चुअल रियलिटी पर जोर दिया जा रहा है।किसी जगह पर अगर हम नहीं है फिर भी उस स्थान का हम इस्तेमाल कर सकते हैं।उदाहरण के तौर पर भारत में रहते हुए हम चाइना के किसी टूरिस्ट प्लेस में हम जा सकते हैं।सिर और आंखों में पहनकर हम वर्चुअल रियलिटी से देख सकते हैं।एयरोस्पेस में भी वर्चुअल रियलिटी का उपयोग होता है।किसी भी उपकरण का उपयोग हम वर्चुअल कर,उसकी बर्बादी से बचा सकते हैं।इसे सिम्युलेशन कहा जाता है।वर्चुअल रियलिटी के जरिए हम मिट्टी और चीजों सैंपल की जांच कर सकते हैं। इसे हम डिजिटल टेक्नोलॉजी बोलते हैं।सीखने में गलतियां करना बेहद जरूरी है।लेकिन हम उन गलतियों को डिजिटल माध्यम से करें या सीखें तो तनिक भी नुकसान की गुंजाइश नहीं है,ना तो इंसानों को और ना ही मशीनों को ही कोई नुकसान पहुंचेगा।वर्चुअल ट्रेनिंग से कॉन्फिडेंस बढ़ता है।जब सच में हम मशीनों पर उतरते हैं वह हमें काफी आसान लगता है।
बाइट -- प्रो0 मगेश चंद्रमौली(पर्ड्यू विश्वविद्यालय, अमेरिका)चेक शर्ट में
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