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झारखंड आदिवासी धर्मांतरण पर उग्र आंदोलन: महाधरना से दिल्ली तक प्रदर्शन
UMUJJWAL MISHRA
Nov 23, 2025 12:48:22
Ranchi, Jharkhand
आज आदिवासी नेताओं के द्वारा एक महत्वपूर्ण प्रेस वार्ता आयोजित की गई। समिति का कहना है कि ईसाई मिशनरियों द्वारा चंगाई सभा के माध्यम से लोभ–लालच देकर आदिवासियों का धर्मांतरण कराया जा रहा है। “लंगड़ा चलcेगा, गूंगा बोलेगा, बहरा सुनेगा” जैसे दावे कर आदिवासी धर्म-संस्कृति को कमजोर किया जा रहा है। परंपरा और संस्कृति को संभालने वाले पहन–पनभोरा, मूढ़ा–महतो जैसे लोगों को भी टार्गेट किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि हाल में सरना अखाड़ा तोड़ने, गुमला के तीनटांगर में सरना स्थल पर गुरोटो बनाने जैसे मामले सामने आए हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि आदिवासी समाज की पहचान और धार्मिक स्थलों को कमजोर करने की कोशिश हो रही है। ग्लटसन डूंगडूंग के बयान पर भी आपत्ति जताई गई कि जब उन्होंने अपने पूर्वजों का धर्म छोड़ दिया, तो सरना समाज पर टिप्पणी करना उचित नहीं है।
समिति का कहना है कि जैसे पहले कुर्मी समाज के हकमारी के मुद्दे पर लोगों को जागरूक किया गया, वैसे ही अब धर्मांतरण के खिलाफ भी आंदोलन जरूरी हो गया है। इसी क्रम में 12 दिसंबर को राजभवन के समक्ष डीलिस्टिंग की मांग को लेकर एक दिवसीय महाधरना आयोजित होगा, और आगे यह आंदोलन दिल्ली के जंतर-मंतर तक जाएगा।
उन्होंने कहा कि SC वर्ग में 341 धारा के तहत धर्म बदलने पर आरक्षण समाप्त हो जाता है, लेकिन 342 धारा के तहत कई आदिवासी ईसाई/मुसलमान बनने के बाद भी लाभ लेते हैं, जिसका दुरुपयोग हो रहा है। आर्टिकल 25 का इस्तेमाल मिशनरी अपने प्रचार–प्रसार और धर्मांतरण के लिए हथियार की तरह कर रहे हैं, जबकि अन्य धर्म—मुसलमान, बौद्ध, सikh—न तो चंगाई सभा करते हैं, न किसी प्रकार का दबाव।
झारखंड के नेतहाट, भवा डाँड़, चैनपुर सहित कई इलाकों में पूरी–की–पूरी बस्तियाँ मिशनरियों के प्रभाव में धर्मांतरण कर चुकी हैं। सरहु–कर्मा जैसे रीति–रिवाज मनाने वाले लोग नहीं बचे। रांची में भी यही स्थिति बनने लगी है और आदिवासी समाज चिंतित है।
आज चांद गांव में भी धर्मांतरण के विरोध में लोग सड़क पर उतरे। 17 अक्टूबर की महारैली में भी देखा गया कि कुछ मिशनरी प्रभाव वाले लोग मंच तक नियंत्रित कर रहे थे और सरना समाज के प्रतिनिधियों को मंच से उतार दिया गया। इससे साफ है कि मिशनरी समाज में घुन की तरह घुस चुके हैं।
वही आदिवासी नेत्री निशा भगत का कहना है कि
रूढ़िवादी सरना धर्म को मानने वाले आदिवासी लगातार शोषण का सामना कर रहे हैं। इसी अन्याय के खिलाफ केंद्र सरकार को चेताने के लिए मैं 12 तारीख को अपने बालों का मुंडन करूँगी। आदिवासी बेटी का केस (बाल) उसका सबसे बड़ा गहना माना जाता है, और उसी गहने का त्याग कर मैं यह संदेश देना चाहती हूँ कि झारखंड में आदिवासियों की अस्मिता पर धर्मांतरित ईसाइयों द्वारा लगातार हमला किया जा रहा है।
हमारे अस्तित्व को मिटाने, हमारी संस्कृति को कमजोर करने और आदिवासी आरक्षण का दुरुपयोग कर स्वयं को विकसित करने का प्रयास हो रहा है। यह झारखंड की माटी और आदिवासी पहचान के साथ गंभीर खिलवाड़ है।
मैं मुंडन के बाद अपने बालों को राष्ट्रपति महोदय, माननीय प्रधानमंत्री और राज्यपाल महोदय को प्रतीक स्वरूप भेजूँगी, ताकि ihnen झकझोर सकूं कि आदिवासी अस्मिता सच में खतरे में है।
साथ ही, मैं यह भी कहना चाहती हूँ कि जो लोग मिशनरियों के दलाल बनकर यहाँ से वेटिकन तक उनका समर्थन कर रहे हैं, वे आदिवासी समाज को तोड़ने की साजिश में लगे हुए हैं। हमारा विरोध इन्हीं काली नीयत वाले लोगों के खिलाफ है।
बाइट: फूलचंद तिर्की (आदिवासी नेता)
बाइट: निशा भगत (आदिवासी नेत्री)
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