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गोबर क्राफ्ट से ग्रामीण महिलाओं की आत्मनिर्भरता और दीपावली की रौनक
GSGajendra Sinha
Oct 18, 2025 02:47:32
Koderma, Jharkhand
आमतौर पर मिट्टी के दीये और इलेक्ट्रॉनिक दीपक तो आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन गाय के गोबर से भी दीया बन सकता है, कम ही लोगों को पता हो। कोडरमा जिले के सुदूरवर्ती सतगावां प्रखंड के भखरा स्थित पहलवान आश्रम में दीपावली और छठ के मद्देनजर दीया और गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति के साथ 15 तरह के उत्पाद तैयार किये जा रहे हैं। गोबर क्राफ्ट के जरिए उत्पाद तैयार कर ग्रामीण महिलाएं भी आत्मनिर्भरता की राह गढ़ रहीं हैं।
दीपावली की रोशनी इस बार न केवल घरों को सजाएगी, बल्कि गांव की महिलाओं के जीवन में भी उज्जवल की लौ जलाएगी। कोडरमा के सतगावां प्रखंड के पहलवान आश्रम में दीपावली को लेकर पारंपरिक, पर्यावरणीय और आत्मनिर्भर भारत की त्रिवेणी एक साथ बह रही है। यहां गोबर क्राफ्ट के जरिए दीये और गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां तैयार की जा रही हैं, जो न सिर्फ इको-फ्रेंडली हैं, बल्कि महिला सशक्तिकरण की भी मजबूत मिसाल बन रही हैं। उत्पाद तैयार कर यह ग्रामीण महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त होकर न सिर्फ आत्मनिर्भर बन रही हैं बल्कि अपने जीवन स्तर में भी बदलाव ला रही हैं।
कविता देवी, गोबर क्राफ्ट से जुड़ी महिला
सविता देवी, गोबर क्राफ्ट से जुड़ी महिला
गाय से प्राप्त सामग्री से दीया व मूर्ति बनाने की तकनीक सिखाने वाले प्रशिक्षक विजय कुमार, नीतू कुमारी और ईशान चंद महतो ने गांव की महिलाओं को गोबर से दीया और मूर्ति बनाने की तकनीक सिखाई। यहाँ दीयों के साथ-साथ गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां, द्वार झालर, शुभ-लाभ, स्वास्तिक चिन्ह, गुग्गुल कप धूप, "शुभ दीपावली" और "जय छठी मैया" जैसे नेम प्लेट भी तैयार किए जा रहे हैं। गोबर और लकड़ी के बुरादे से बनी इन वस्तुओं को धूप में सुखाकर, आकर्षक रंगों से सजाया जाता है।
विजय कुमार, ट्रेनर-सफेद शर्ट में
राष्ट्रीय झारखंड सेवा संस्थान के सचिव मनोज दांगी ने बताया कि धनतेरस से लेकर पूरी तैयारी है। उन्होंने बताया कि हाल ही में रांची में आईएएस ऑफिसर्स वाइव्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित दीपावली मेले में इन गोबर उत्पादों को विशेष स्थान मिला। राज्य के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने इन उत्पादों की खुले दिल से सराहना और खरीदारी की। उन्होंने बताया कि गोबर से बने ये उत्पाद रेडिएशन से बचाव में मददगार होते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। उपयोग के बाद ये मिट्टी में समाहित होकर खाद का रूप ले लेते हैं, जिससे पर्यावरण को कोई हानि नहीं होती। साथ ही, दूध न देने वाले बुजुर्ग गौवंश के गोबर का सदुपयोग कर इन्हें भी संरक्षण मिल रहा है।
मनोज दांगी, सचिव, राष्ट्रीय झारखंड सेवा संस्थान
कोडरमा का सुदूरवर्ती सतगावां प्रखंड जो कभी नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था, आज इस क्षेत्र में अवस्थित पहलवान आश्रम में गोबर क्राफ्ट के जरिए अलग-अलग उत्पाद तैयार कर महिला सशक्तिकरण, गौसंरक्षण और पर्यावरण बचाव एक साथ संभव हो रहा है। इन तीनों उद्देश्यों की पूर्ति के साथ यहां विकसित भारत के संकल्पों को साकार करने का सतत प्रयास किया जा रहा है।
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