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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 1989 के पेड़ कटाई मामले में दोनों आरोपियों को बरी किया
SSSHAILENDAR SINGH THAKUR
Oct 09, 2025 15:45:15
Bilaspur, Chhattisgarh
बिलासपुर। 36 साल पुराने बस्तर पेड़ कटाई मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति रजनी दुबे की एकलपीठ ने रायपुर स्थित विशेष सीबीआई अदालत के 2010 में दिए गए दोषसिद्धि के आदेश को पलटते हुए दोनों आरोपियों को बरी कर दिया है। इस फैसले ने एक लंबे समय से लटके हुए मामले पर न्याय की अंतिम मुहर लगा दी है।नयह मामला वर्ष 1989 में कोंडागांव वन क्षेत्र में पेड़ों की अवैध कटाई से जुड़ा था। आरोप था कि कलेक्टर कोर्ट द्वारा 150 पेड़ों की कटाई की अनुमति दी गई थी, लेकिन तत्कालीन रीडर परशुराम देवांगन ने आदेश में हेरफेर करते हुए संख्या को 250 कर दिया। इसके बाद आरोपी वीरेंद्र नेताम और अन्य पर 250 पेड़ काटने और लगभग 9 लाख 97 हजार रुपये मूल्य की लकड़ी बेचने का आरोप लगा।मामले की गंभीरता को देखते हुए 1998 में सीबीआई ने केस दर्ज किया। लंबी जांच के बाद रायपुर की विशेष सीबीआई अदालत ने वर्ष 2010 में वीरेंद्र नेताम सहित दो आरोपियों को साजिश, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के तहत दोषी करार देते हुए तीन साल की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ दोनों आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी।अपील पर सुनवाई करते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल शक, अनुमान या अपूर्ण सबूतों के आधार पर किसी को सजा नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने यह भी माना कि आदेश में नीली स्याही से जो शब्द जोड़े गए थे, वे खुद कलेक्टर द्वारा स्वीकार किए गए हैं। वहीं, दस्तावेजों में कोई स्पष्ट गड़बड़ी साबित नहीं हो सकी। कोर्ट ने इस बात पर भी ध्यान दिया कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत हस्ताक्षर विशेषज्ञ की रिपोर्ट अपूर्ण थी और दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं थी। साथ ही इस बात का भी उल्लेख किया गया कि आरोपियों को किसी प्रकार का व्यक्तिगत आर्थिक लाभ नहीं हुआ, क्योंकि सारा राजस्व सरकारी खाते में ही जमा हुआ था।हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए दोनों आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया है। हालांकि, वीरेंद्र नेताम को 6 माह के लिए 25,000 रुपये का व्यक्तिगत बांड भरने का निर्देश दिया गया है, जो कि एक कानूनी औपचारिकता है।छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का यह फैसला न्यायिक प्रणाली की पारदर्शिता, निष्पक्षता और सबूत आधारित न्याय की सशक्त मिसाल है। यह भी दर्शाता है कि वर्षों पुराने मामलों में भी निष्पक्ष सुनवाई और न्याय संभव है, यदि अदालत के समक्ष ठोस साक्ष्य प्रस्तुत किए जाएं।
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