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जयपुर के मंदिर में भक्तों की भावनाओं का क्या हुआ? जानें सच!
DGDeepak Goyal
Aug 05, 2025 15:48:04
Jaipur, Rajasthan
DEEPAK GOYAL-99829-33000
LOCATION-JPR
FEED-OFC
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Anchor::हर महीने की एकादशी... वो दिन जब जयपुर शहर की रफ्तार कुछ पल को थम जाती है। हजारों दिल गोविंद देव जी के चरणों में समर्पित हो जाते हैं। लेकिन अब...श्रद्धा वही है, मंदिर वही है... पर आंखों में भक्ति से ज़्यादा बेचैनी और मायूसी है। क्यों? क्योंकि भीड़ नियंत्रण के नाम पर जो मंदिर प्रबंधन ने नई बैरिकेडिंग से दर्शन व्यवस्था लागू की है, उसने भक्तों और भगवान के बीच दूरी बढ़ा दी है। व्यवस्था ने ना सिर्फ दर्शन को कठिन कर दिया है। बल्कि भावनात्मक जुड़ाव को भी झटका दिया है।
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VO-1- जयपुर के आराध्य श्री गोविंद देव जी का दरबार...जहां हर एकादशी को श्रद्धा का समंदर उमड़ता था...आज वहां भक्तों की आंखों में श्रद्धा के साथ गुस्सा और आक्रोश भी दिखता है। यह सिर्फ कतार में लगने की बात नहीं...यह उस भावनात्मक नमी की बात है, जो दर्शन करते समय आंखों से बहती थी। अब भक्तों की आंखों में भक्ति की जगह निराशा और दूरी की धुंध है। कभी यह मंदिर श्रद्धालुओं के स्पंदन से गूंजता था, आज श्रद्धा की आवाज़ बैरिकेडिंग के बीच खोने लगी है। रविवार और एकादशी को भीड़ नियंत्रित करने के लिए ट्रायल के तौर पर बैरिकेडिंग की गई है। उद्देश्य था बेहतर दर्शन व्यवस्था। लेकिन नतीजा उल्टा निकला। ना भगवान के दर्शन सही हो पा रहे हैं, ना परिक्रमा पूरी हो रही है। बैरिकेडिंग से न केवल सुविधा घटी, बल्कि भक्तों की संख्या में भी गिरावट देखी जा रही है। भक्तों का कहना है कि अब वे रविवार और एकादशी छोड़कर बाकी दिनों में दर्शन को आ रहे हैं। क्योंकि ना तो ठीक से दर्शन हो रहे है ना शांति मिल रही, ना संतोष। हम दशकों से हर एकादशी को ठाकुरजी के दर्शन करते आए हैं।, लेकिन अब उनके चरणों में झुकने तक का मौका नहीं मिल रहा। प्रशासन ने भीड़ रोकने के नाम पर हमें ही रोक दिया है। भगवान अब सिर्फ दूर से दिखते हैं, मन को सुकून नहीं मिलता। भक्ति में जल्दबाजी कैसी? दर्शन अब बस नाम भर के रह गए हैं। अगर मंदिर प्रशासन जिगजैग लाइन की व्यवस्था करे तो दर्शन भी अच्छे होंगे और भगदड़ भी नहीं होगी।
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Bite:: श्रद्धालु
Bite:: श्रद्धालु
Bite:: श्रद्धालु
Bite:: श्रद्धालु
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VO-2-यह सिर्फ एक श्रद्धालु की नहीं, सैकड़ों-हजारों भक्तों की आवाज़ है। जहां कभी आंखें नम होती थीं...अब वही आंखें भगवान को ढूंढ रही हैं। यह भाव कहीं गहरे तक आहत कर गया है। हर एकादशी को मंदिर परिसर जो भक्तों से गूंजता था, अब वहां खामोशी ज्यादा, और शिकायतें गहराई से सुनाई देती हैं। जब आस्था की डोर व्यवस्था से उलझ जाए, तो सबसे पहले संवेदना की ज़रूरत होती है, समाधान की नहीं। भक्तों का रिश्ता मंदिर से सिर्फ श्रद्धा का नहीं, सांसों जैसा है। एकादशी पर दर्शन न हो तो
सिर्फ मंदिर के गलियारे नहीं, श्रद्धालुओं का मन भी सूना हो जाता है। मंदिर प्रशासन को चाहिए कि संवाद के द्वार खोले, श्रद्धा को सुने,और ऐसी व्यवस्था बनाए जो दूरी नहीं, समीपता बढ़ाए।
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Bite:: श्रद्धालु
Bite:: श्रद्धालु
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बहरहाल- गोविंद देव जी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, भक्तों की आत्मा का केंद्र है। यदि व्यवस्था भक्ति को कुचलने लगे तो यह सुधार नहीं, आस्था पर प्रहार बन जाता है। अब सवाल यह है कि क्या मंदिर प्रबंधन भक्तों की भावना को समझेगा या फिर श्रद्धा के रास्ते में प्रशासनिक दीवारें खड़ी होती रहेंगी? हर एकादशी पर गोविंद देव जी को देखे बिना कई भक्त भोजन तक नहीं करते। अब जब वो दर्शन ही दूर हो गए हैं, तो सिर्फ मंदिर के गलियारे नहीं, श्रद्धालुओं का मन भी सूना हो गया है। दीपक गोयल जी मीडिया जयपुर
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