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राजस्थान हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति के गरीबी मानदंड को चुनौती दी
RKRakesh Kumar Bhardwaj
Nov 27, 2025 11:32:48
Jodhpur, Rajasthan
जोधपुर
राजस्थान हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति के मामले में एक महत्वपूर्ण व मिसाल कायम करने वाला फैसला सुनाते हुए स्पष्ट कर दिया कि इस प्रकार की नियुक्ति पाने के लिए परिवार का ‘भिखारी जैसी स्थिति’ में पहुंचना जरूरी नहीं है। जस्टिस फरजंद अली ने अपने रिपोर्टेबल जजमेंट में कहा कि करुणा का उद्देश्य परिवार की तात्कालिक आर्थिक समस्या का समाधान करना है, न कि उन्हें पूर्ण दयनीयता की कगार तक धकेलकर पात्रता परखना। उन्होंने कहा—“करुणा को अंकगणित के खेल में नहीं बदला जा सकता।”
यह मामला ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (जो अब पंजाब नेशनल बैंक में विलय हो चुका है) के उस निर्णय से जुड़ा था, जिसमें बैंक ने एक मृतक कर्मचारी के बेटे हरजीत सिंह को अनुकंपा नियुक्ति देने से यह कहकर इनकार कर दिया था कि परिवार को रिटायरमेंट लाभ के रूप में करीब 34.66 लाख रुपए मिले थे और इसलिए वे ‘निर्धन’ या ‘दयनीय स्थिति’ में नहीं माने जा सकते।
मामले की पृष्ठभूमि
श्रीगंगानगर निवासी दिवंगत दर्शन सिंह बैंक में असिस्टेंट मैनेजर थे। 37 वर्षों की सेवा के बाद 17 जनवरी 2019 को बीमारी के कारण उनका निधन हो गया। वे परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे। बेटे हरजीत सिंह, जो ग्रेजुएट हैं, ने मार्च 2019 में अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया।
बैंक की सक्षम समिति ने यह कहते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि परिवार को ग्रेच्युटी व पीएफ मिलाकर 34 लाख से अधिक राशि मिली है, फैमिली पेंशन चल रही है और आर्थिक स्थिति ‘निर्धन’ जैसी नहीं है।
वास्तविक स्थिति: बैंक ने ही काटे 8.58 लाख, इलाज का 12–15 लाख का कर्ज
मृतक की पत्नी कमलजीत कौर ने बैंक को पुनर्विचार आवेदन देकर बताया कि ग्रेच्युटी में से ही बैंक ने ओवरड्राफ्ट व विभिन्न लोन मिलाकर कुल 8.58 लाख रुपए काट लिए थे।
चार साल तक चले उपचार पर परिवार को बजाज फाइनेंस से 5 लाख, मुथOOT से 2.50 लाख तथा बाजार से 7–8 लाख का कर्ज लेना पड़ा।
परिवार किराए के मकान में रह रहा है और बेरोजगार हरजीत ही एकमात्र आश्रित पुरुष सदस्य हैं। सभी कर्ज चुकाने के बाद परिवार के पास कोई स्थायी आय नहीं बची। इसके बावजूद बैंक ने मार्च 2020 में पुनर्विचार भी खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट की चार महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ
गरीबी का पैमाना गलत: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि CPC की ‘कंगाल’ या ‘पॉपर’ की परिभाषा अनुकंपा नियुक्ति पर लागू नहीं की जा سکتی। कोई वेतनभोगी कर्मचारी मरने के बाद ‘भिखारी’ बन जाए, यह अपेक्षा अनुचित है।
भुखमरी का इंतजार क्यों? अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य परिवार को तत्काल राहत देना है, न कि उन्हें पहले भुखमरी की स्थिति में पहुँचने देना।
टर्मिनल लाभ आय नहीं: PF, ग्रेच्युटी जैसे सेवानिवृत्ति लाभ सुरक्षा राशि होते हैं, इन्हें नियमित आय मानकर नियुक्ति से इनकार करना अनुचित है।
योजना का विरोधाभास: बैंक की नीति में स्पष्ट लिखा है कि परिवार में कमाने वाला सदस्य होने पर भी अनुकंपा नियुक्ति दी जा सकती है। ऐसे में बेरोजगार बेटे को ‘गरीब नहीं हो’ कहकर कैसे मना किया जा सकता है?
फैसला
हाईकोर्ट ने बैंक के दोनों आदेशों को “दिमाग का इस्तेमाल न करने वाला” करार देते हुए रद्द कर दिया और बैंक को निर्देश दिया कि चार सप्ताह में मामले पर पुनः विचार कर तर्कसंगत आदेश जारी करे।
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