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अरावली संकट: सुप्रीम कोर्ट के 100 मीटर नियम से आक्रामक राजनीति और पर्यावरणीय खतरे
BDBabulal Dhayal
Dec 22, 2025 12:30:23
Jaipur, Rajasthan
ANCHOR अरावली को लेकर आज प्रदेश भर में आंदोलन ने तूल पकड़ लिया, उदयपुर से जोधपुर होते हुए विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला सीकर तक पहुंच गया, कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता भी आंदोलन में कूद गये हैं, इस बीच सीएम भजनलाल शर्मा से लेकर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने विपक्ष को जमकर आड़े हाथ लिया, और जनता को गुमराह करने के आरोप लगाये
अरावली पर संकट - 100 मीटर नियम से मचा बवाल, बड़ा हिस्सा खतरे में;
भारत की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में शुमार अरावली अब एक अभूतपूर्व पर्यावरणीय संकट के मुहाने पर खड़ी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली संरचनाओं को अरावली न मानने की नई व्याख्या जारी होते ही राजस्थान में सियासत और पर्यावरण जगत में हलचल मच गई है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यह परिभाषा अगर लागू हुई, तो अरावली का 90 फीसदी हिस्सा संरक्षण से बाहर हो जाएगा—और इसके परिणाम विनाशकारी होंगे।
कांग्रेस हुई हमलावर, विरोध प्रदर्शनों में हुई शामिल, सीएम भजनलाल शर्मा ने संभाला मोर्चा
कांग्रेस के युवा नेताओं से लेकर वरिष्ठ नेताओं ने विरोध का झंडा उठा लिया है, धरने प्रदर्शन किये जा रहे हैं, राजस्थान विश्वविद्यालय तक के छात्र नेता आंदोलन में सक्रिय हो गये हैं, जोधपुर से उदयपुर तक जगह जगह आंदोलन की चिंगारी भड़कती दिखाई दी। झालावाड़ में सीएम भजनलाल शर्मा ने मोर्चा संभाला, विपक्ष को सीएम ने जमकर आड़े हाथ लिया, और जनता में बेवजह भ्रम फैलाने के आरोप लगाये
भाषण बाइट भजनलाल शर्मा मुख्यमंत्री
झाबर सिंह खर्रा यूडीएच मंत्री
यादव ने विरोध को बेबुनियाद करार दिया: अरावली का संरक्षण ही केंद्र सरकार की प्राथमिकता है; सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या को गलत तरीके से प्रचारित कर विपक्ष जनता को गुमराह कर रहा है
बाइट भूपेंद्र यादव केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री
आखिर क्या है पूरा मामला, क्येां भड़κε आंदोलन
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की सिफारिश मानते हुए कहा— केवल वही पहाड़ी अरावली कही जाएगी जो आसपास की सतह से 100 मीटर ऊंची हो और 500 मीटर के दायरे में दो या अधिक ऐसी पहाड़ियां हों तो उसे अरावली रेंज माना जाएगा, लेकिन यह परिभाषा अरावली की वास्तविक भौगोलिक संरचना से बिल्कुल अलग बताए जा रही है।
Rajasthan में: कुल 12,081 अरावली पहाड़ियां हैं, इनमें से केवल 1,048 ही 100 मीटर से ऊपर, यानी लगभग 90% पहाड़ियां बाहर।
यह केवल कानूनी परिभाषा नहीं—बल्कि पर्वतमाला की मृत्यु-घोषणा जैसा कदम बताया जा रहा है।
नुकसान की आशंका कितनी: अवैध खनन को वैधता मिलेगी; रियल एस्टेट, होटल, फार्महाउस प्रोजेक्ट्स बढ़ेंगे; मरुस्थल का विस्तार तेज होगा; मानसून गतिविधियों पर असर पड़ेगा; भूजल स्तर गिरेगा; पश्चिमी राजस्थान में स्थायी जल संकट पैदा होगा।
सिर्फ पहाड़ियां नहीं— राजस्थान की लाइफलाइन है अरावली; अरावली सिर्फ पहाड़ी नहीं—राजस्थान की जीवनरेखा है; 692 किमी लंबाई, 80% हिस्सा राजस्थान में, 15 जिलों में फैली हुई है; भूजल पुनर्भरण, धूल भरी आंधियों को रोकना, तापमान नियंत्रण, मानसून दिशा निर्धारण; राजस्थान की नदियां—लूंनी, बनास, साबरमती—इनहीं पहाड़ियों से उत्पन्न होती हैं।
मुद्दा राजस्थान के जनमानस से जुड़ा है, लाखों करोड़ों लोगों के वर्तमान और भविष्य से जुड़ा है, इसलिए विपक्ष सरकार पर हमलावर है; कांग्रेस के नेता जनता के बीच इस मुद्दे को गरमा रहे हैं; अरावली के संरक्षण को बड़ा मुद्दा बनाकर सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिशें हो रही हैं; गोविंद सिंह डोटासरा गमछा हिलाकर सरकार से दो-دو हाथ करने की चेतावनी दे रहे हैं, टीकाराम जूली सरकार पर ताबड़तोड़ हमले बोल रहे हैं, आदि
इन सवालों के बीच, क्या यह फैसला केवल कागज़ के खेल है? भविष्य का काला अध्याय? अगर अरावली कट गई, खुदाई हो गई, जंगल नष्ट हुए, तो नुकसान की भरपाई मुश्किल होगी; पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ेगा, और नुकसान हम सब भुगतेंगे.
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