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जुगैल पंचायत में डिजिटल अंधकार: नेटवर्क न मिलने से जीवन और इलाज मुश्किल
ADArvind Dubey
Nov 10, 2025 12:51:29
Obra, Uttar Pradesh
आजादी के इतने दशक बाद भी नहीं बदली यहां की यह तस्वीर। यूपी की सबसे बड़ी ग्राम पंचायतों में से एक जुगैल पंचायत जो सोनभद्र जिले के सीमावर्ती छोर पर बसी है। यह इलाका अपने विशाल भौगोलिक क्षेत्र, प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है, लेकिन तकनीकी युग के इस दौर में यह पंचायत अब भी डिजिटल अंधकार में जी रही है। न बेहतर सड़क है, न पर्याप्त बिजली, और न ही नेटवर्क ऐसे में सवाल उठता है कि जब सरकार डिजिटल इंडिया और सबका साथ, सबका विकास की बात करती है, तो जुगैल जैसे इलाके आज भी क्यों उपेक्षित हैं। विकास की रौशनी से यह क्षेत्र क्यों रह गया अछूता। दर्जनों ग्रामीणों ने प्रदर्शन किया और नाराजगी जताते हुए बताया कि सोनभद्र के चोपन विकासखंड में बसी जुगैल ग्राम पंचायत क्षेत्रफल के लिहाज से उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायतों में गिनी जाती है। करीब 50 हज़ार की आबादी वाला यह क्षेत्र मुख्यधारा से आज भी पूरी तरह कटा हुआ है। यहां का हाल ऐसा है कि आपात स्थिति में एंबुलेंस बुलाने के लिए लोग पहाड़ों पर चढ़कर नेटवर्क खोजते हैं। अगर किसी गर्भवती महिला की तबीयत बिगड़ जाए या किसी बच्चे को गंभीर बीमारी हो जाए तो मोबाइल सिग्नल की अनुपस्थिति मौत और जिंदगी के बीच की दूरी बढ़ा देती है। स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत बेहद चिंताजनक है। जुगैल में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तो है, लेकिन डॉक्टर और एम्बुलेंस सेवा नेटवर्क की कमी से पूरी तरह निष्क्रिय हो चुके हैं। कई बार एंबुलेंस ड्राइवर तक से संपर्क नहीं हो पाता, जिसके चलते गंभीर मरीजों को 70 से 100 किलोमीटर दूर रॉबर्ट्सगंज या वाराणसी तक खुद के साधनों से ले जाना पड़ता है। ग्रामीण बताते हैं कि कई गर्भवती महिलाएँ समय पर इलाज न मिलने से दम तोड़ चुकी हैं। मोबाइल नेटवर्क न होने की वजह से टेलीमेडिसिन, आयुष्मान कार्ड अपडेट, टीकाकरण ऐप और ई-स्वास्थ्य सेवाएँ सिर्फ नाम की रह गई हैं। शिक्षा़ के क्षेत्र में स्थिति और भी भयावह है। जुगैल की बेटियाँ स्नातक स्तर तक की पढ़ाई के लिए दूसरे गांव या कस्बों तक जाती हैं, क्योंकि यहां इंटर कॉलेज या डिग्री कॉलेज तक नहीं है। डिजिटल क्लास, ऑनलाइन शिक्षा, सरकारी छात्रवृत्ति पोर्टल या यूपी बोर्ड की वेबसाइट तक सब नेटवर्क की कमी में ठप हैं। स्कूल के बच्चे ऑनलाइन टेस्ट या गृहकार्य तक नहीं कर पाते। शिक्षक और विद्यार्थी दोनों डिजिटल इंडिया की दौड़ से बाहर हैं। नेटवर्क की सबसे बड़ी मार सुरक्षा व्यवस्था पर पड़ रही है। किसी घटना या अपराध की सूचना देने के लिए लोगों को 5 से 6 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर जाकर फोन मिलाना पड़ता है। रात के समय या बरसात में यह जान जोखिम में डालने जैसा काम होता है। कई बार चोरी, झगड़े या जंगल में लगी आग जैसी घटनाएँ समय पर पुलिस तक पहुँच ही नहीं पातीं। थाना क्षेत्र जुगैल करीब 40 किलोमीटर फैला है, ऐसे में संपर्क न होना संकट को और बढ़ा देता है। जुगैल के लोग बताते हैं कि नेटवर्क की समस्या सिर्फ कॉल या इंटरनेट की नहीं है, यह तो रोजमर्रा की हर जरूरत पर सीधा असर डालती है। बैंकिंग, राशन कार्ड अपडेट, पेंशन या मनरेगा की हाजिरी सब कुछ मोबाइल और इंटरनेट पर निर्भर है। लेकिन नेटवर्क न होने से लोगों को छोटी-छोटी सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा। वहीं, हर घर नल योजना के बावजूद गांवों में पानी की भारी किल्लत है, क्योंकि जल निगम के मॉनिटरिंग सेंटर तक डाटा भेजने में नेटवर्क फेल हो जाता है। ऐसे में योजनाएं कागजों में क्रियान्वित होकर रह जाती हैं। क्षेत्र में हिंडाल्को और एनटीपीसी जैसी बड़ी औद्योगिक इकाइयाँ चल रही हैं। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि रोजगार और सुविधाएँ बाहरी लोगों को मिलती हैं, जबकि स्थानीय आदिवासी सिर्फ प्रदूषण और स्वास्थ्य संकट झेल रहे हैं। नदियाँ दूषित हैं, हवा में धूल है, और जंगल खत्म हो रहे हैं। इस संबंध में प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे राहुल पांडेय ने जानकारी देते हुए बताया कि हमारे जुगैले में आज भी सड़क, बिजली, नेटवर्क, पेयजल और परिवहन जैसी बुनियादी सुविधाएँ नहीं हैं। गांव की बेटियाँ पढ़ाई के लिए रोज कई किलोमीटर जाती हैं। अगर कोई बीमार पड़ जाए, तो एंबुलेंस तक बुलाना मुश्किल होता है। हमने डीएम को ज्ञापन दिया है ताकि मुख्यमंत्री तक यह आवाज़ पहुंचे। अब वक्त आ गया है कि जुगैल को काला पानी नहीं, बल्कि विकास की धरती बनाया जाए। गत वर्ष डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने सोनभद्र दौरे के दौरान जुगैल की नेटवर्क समस्या पर तत्काल समाधान का आश्वासन दिया था। लेकिन साल गुजर गया टॉवर लगा जरूर, पर नेटवर्क अब भी गायब है। ग्रामीणों का कहना है कि हर बार वादा होता है, लेकिन अमल कभी नहीं। यह समस्या अब तकनीकी नहीं, बल्कि मानव अधिकारों से जुड़ा सवाल बन चुकी है। जुगैल की यह कहानी सिर्फ एक पंचायत की नहीं, बल्कि उन इलाकों की हकीकत है जो भारत के डिजिटल नक्शे से बाहर छूट गए हैं। जहां नेटवर्क का नो सिग्नल मतलब है बिना इलाज के मौत, अधूरी पढ़ाई, और असुरक्षित जीवन। अब सवाल यह है कि क्या सरकार वाकई विकास की गूंज इस सीमावर्ती छोर तक पहुँचा पाएगी, या फिर जुगैल की यह पुकार एक बार फिर सिग्नल न मिलने की वजह से गुम हो जाएगी。
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