2 करोड़ की लागत, फिर भी क्यों बने सफेद हाथी? जानें सच्चाई!
लगभग 2 करोड़ की लागत से बने आवासीय फ्लैट्स बने सफेद हाथी 15 साल पहले बनाए गए थे केंद्र राज्य और स्थानीय गरीब मध्यमवर्गीय परिवारों को रहने के लिए फ्लैट्स केंद्र सरकार का 50% उत्तर प्रदेश सरकार का 30% और 20% लाभार्थी से लिया जाना था करोड़ों की योजना हो गई जर्जर सरकार के लगभग 2 करोड रुपए लगभग 100 लोगों को मिलना था लाभ लेकिन हालात यह जर्जर हो गई कॉलोनी अधिकारियों और नेताओं की लापरवाही से करोड़ों का प्रोजेक्ट सिर्फ कागजों में जमीन पर खड़ा सफेद हाथी 15 साल पहले सपा और फिर भाजपा की सरकार लेकिन प्रोजेक्ट जस का तस आखिर इन करोड़ों रुपए के नुकसान का जिम्मेदार कौन किस पर होनी चाहिए भरपाई और कौन पिछले 15 सालों से नहीं ले पाया लाभ कार्यवाही के नाम पर शून्य है 2 करोड़ की लागत से बनी आवास योजना: क्यों बनी ‘सफेद हाथी’? उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में केंद्र सरकार ओर उत्तर प्रदेश सरकार के साथ मिलकर चलाई गई आवास योजनाएँ कमजोर वर्गों को मकान देने के उद्देश्य से शुरू हुई थीं। इन योजनाओं पर करोड़ों की राशि खर्च की गई, लेकिन जमीनी हकीकत में अनेक परियोजनाएँ जर्जर हालत में पहुँच चुकी हैं और उनमें बिजली व पानी जैसी मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं, जिसके कारण गरीब परिवारों को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाया है। प्रमुख समस्याएँबिजली-पानी की कमी बहुत से आवास परियोजनाओं में या तो बिजली का कनेक्शन अभी तक नहीं दिया गया या पानी की आपूर्ति सुलभ नहीं है। लाभार्थियों को अंधेरे या पानी की किल्लत के साथ रहना पड़ता है। फर्रुखाबाद’ के फ्लैट्स में बिजली-पानी न होने से लोग यहाँ रहना पसंद नहीं कर रहे। लंबे समय से खाली मकान 15 साल या उससे अधिक समय पहले बने कई आवास आज तक खाली पड़े हैं, क्योंकि बुनियादी सुविधाएं पूरी न होने के कारण लोग वहाँ शिफ्ट नहीं हुए। इन मकानों की हालत जर्जर होती जा रही है, और वे ‘सफेद हाथी’ की तरह बेमतलब साबित हो रहे। रख-रखाव और निर्माण की गुणवत्ता कई जगहों पर मकानों की गुणवत्ता इतनी खराब है कि वे कुछ सालों में ही जर्जर होने लगे। पानी भराव,दरवाजे टूटे दीवारों में सीलन और रिहायशी वातावरण का अभाव आम समस्याएं बन गईं। वही सरकारी लापरवाही स्थानीय निकाय और संबंधित विभागों की लापरवाही से न तो समय रहते बिजली-पानी की समस्या सुलझ पाई, न ही आवासों का रख-रखाव हो सका।2 लगभग करोड़ की लागत से बनी आवासीय परियोजनाएँ बेदर्जा, रख-रखाव और बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रही हैं। लाभार्थियों को योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिल सका, जिससे ये योजनाएँ क्षेत्र में ‘सफेद हाथी’ नजर आ रही हैं।अगले कुछ वर्षों में सरकार की ओर से सुविधाएं बहाल करने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन जिन लोगों ने अब तक घर पाए हैं, वह अभी भी इन्हीं समस्याओं से जूझ रहे हैं। बाइट-- मुकेश राजपूत सांसद
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