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देवीपाटन धाम के अखंड धूना पर श्रद्धालुओं की अटूट आस्था, गोरखनाथ तपस्थली
PTPawan Tiwari
Dec 19, 2025 14:01:28
Balrampur, Uttar Pradesh
बलरामपुर जनपद के तुलसीपुर की शांत, सौम्य और आध्यात्मिक वातावरण से घिरी भूमि में एक ऐसा चमत्कारी स्थल मौजूद है, जिसकी आभा वर्षों से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती आ रही है। यह स्थान है—मां पाटेश्वरी देवीपाटन शक्तिपीठ, जहां महायोगी गुरु गोरखनाथ के तप, सती के त्याग और आस्था की अनगिनत अनसुनी कहानियां आज भी जीवंत हैं। अनकही–अनसुनी की इस कड़ी में हम आपको ले चल रहे हैं इस अद्भुत धाम में, जहां सदियों से जल रही अखंड धूना अपनी दिव्य महिमा की अनंत गाथा कहती है।
*त्रेतायुग से जल रहा वह धूना, जिसकी लौ नहीं हुई मंद*
पीठाधीश्वर मिथलेश नाथ योगी महाराज बताते हैं कि देवीपाटन मंदिर में प्रज्ज्वलित गुरु गोरखनाथ का धूना त्रेतायुग से अब तक अखंड जल रहा है। मान्यता है कि महायोगी गोरखनाथ ने वर्षों की कठिन साधना के दौरान यह अग्नि प्रज्ज्वलित की थी। तब से लेकर आज तक—न तो यह धूना बुझा, न इसकी आभा कम हुई।
धूने की राख यानी भभूति को श्रद्धालु दिव्य प्रसाद मानते हैं। कहा जाता है कि इसे श्रद्धा से माथे पर लगाने से हर प्रकार का कष्ट दूर हो जाता है और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है। यही कारण है कि यहां आने वाला हर भक्त मां पाटेश्वरी के दर्शन के बाद धूना के सामने नमन किए बिना लौटता नहीं।
*कही–अनकही कहानी:*
स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार एक बार मूसलाधार बारिश में पूरा क्षेत्र जलमग्न हो चुका था। आसपास की अग्नियां बुझ गईं, लेकिन धूना की ज्वाला तनिक भी कम नहीं हुई। लोगों का विश्वास है कि धूना को स्वयं महायोगी की ऊर्जा संरक्षित करती है, इसलिए प्रकृति की कोई विपरीत परिस्थिति इसे प्रभावित नहीं कर पाती।
*मंदिर का इतिहास—शिव के तांडव से देवीपाटन तक यात्रा*
पुजारी रविंद्र दास महाराज मंदिर के इतिहास को सुनाते हुए बताते हैं कि यह स्थान उस समय शक्ति से जाग्रत हुआ जब राजा दक्ष के यज्ञ में पत्नी सती के अपमान का दुःख सहन न कर पाने पर भगवान शिव ने उनका देह उठाकर तांडव करना शुरू कर दिया।
परिस्थिति को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया।
इन 51 स्थानों पर ही शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
कहा जाता है कि माता का वाम अंग—बायां कंधा—देवीपाटन की इस भूमि पर ही गिरा, और तभी से यह स्थल महाशक्ति का केंद्र बन गया।
*कही–अनकही कथा:*
पुरानी मान्यता है कि जब सती का कंधा यहां गिरा, तो उस रात पूरा वन ज्योतियों से आलोकित हो उठा था। दूर बसे गांवों के लोगों ने भी असाधारण प्रकाश देखा। सुबह जब साधक और ऋषि यहां पहुंचे तो उन्हें भूमि पर दिव्य ऊष्मा और तेज का अनुभव हुआ। इसी कारण इस स्थान को “देवी का स्पर्शस्थल’’ कहा जाता है।
*गोरखनाथ की तपस्थली—जहां हर कण में साधना बसती है*
इस स्थल को विशेष महत्ता इस कारण भी प्राप्त है कि यही वह पवित्र धरा है, जिसे महायोगी गोरखनाथ ने अपनी तपस्थली चुना था। वर्षों तक कठोर साधना करते हुए उन्होंने धूना प्रज्ज्वलित किया, जिसे आज अखंड ज्योति कहा जाता है।
देश के अलग–अलग प्रदेशों से आने वाले साधक यहां बैठकर कुछ देर उस धूने के पास मौन साधना करते हैं। उनका विश्वास है कि यहां बैठकर मन और आत्मा दोनों पवित्र हो जाते हैं।
*अनकही मान्यता:*
कहा जाता है कि एक बार एक साधक अपनी मनोकामना लेकर यहां आया। वह महीनों तक परेशान था, जीवन में निराशा छाई हुई थी। उसने धूना के पास बैठकर चुपचाप ध्यान किया और लौट गया। कुछ ही दिनों में उसकी समस्या सुलझ गई। लोग इसे "धूना की शक्ति" का चमत्कार कहते हैं।
*तंत्र विद्या का प्रमुख केंद्र—अमावस्या और नवरात्रि पर बढ़ती दिव्यता*
देवीपाटन का अखंड धूना सिर्फ भक्ति का केंद्र नहीं, बल्कि तंत्र साधना का भी प्राचीन और सम्मानित स्थान है। नवरात्रि, कालरात्रि, अमावस्या और विशेष पर्वों पर देशभर से तांत्रिक, साधक, पुरोहित और गुरु यहां पहुंचते हैं।धूना की भभूति को वे शक्ति रूप में ग्रहण करते हैं।
यहां एक विशेष नियम है—धूना के पास खुले सिर जाना वर्जित है। श्रद्धालु सिर पर रूमाल या वस्त्र रखकर ही इस पवित्र स्थल तक पहुंचते हैं।
*दर्शन बिना यात्रा अधूरी—भक्तों की आस्था का केंद्र*
मंदिर से जुड़े पुजारी बताते हैं कि मां पाटेश्वरी के दर्शन के बाद श्रद्धालु “अखंड धूना” की परिक्रमा को अपनी धार्मिक यात्रा का अनिवार्य हिस्सा मानते हैं।
लोग इसे सिर्फ एक धूना नहीं, बल्कि परम ऊर्जा और सुरक्षा का स्रोत मानते हैं।
भक्त यहां से भभूति घर ले जाते हैं और इसे अपने घर–आंगन की शुद्धि, सुरक्षा और सकारात्मकता का प्रतीक मानते हैं।
देश के कोने–कोने से आती भक्ति की धार
नवरात्रि और मकर संक्रांति के दौरान देवीपाटन में श्रद्धालुओं का विशाल सैलाब उमड़ता है।
नेपाल, उत्तराखंड, बिहार, मध्यप्रदेश, पूर्वांचल और अन्य राज्यों से लोग यहां दर्शन करने आते हैं।
महायोगी को खिचड़ी अर्पित करना वर्षों पुरानी परंपरा है। जो भक्त गोरखपुर स्थित गुरु गोरखनाथ मंदिर नहीं जा पाते, वे यहां खिचड़ी चढ़ाकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं。
*विशेष शब्द*
देवीपाटन का यह धाम सिर्फ एक मंदिर नहीं—बल्कि आस्था, तप और अनकही मान्यताओं की वह विरासत है, जिसका हर कण भक्तों के लिए दिव्य अनुभूति लेकर आता है。
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