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सारंडा जंगल में घायल हाथी का रेस्क्यू: नक्सली विस्फोट का रहस्य!
Chaibasa, Jharkhand
सारंडा जंगल में नक्सली विस्फोट से घायल हाथी का रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू, वन विभाग व विशेषज्ञों की टीम जुटी
EXCLUSIVE
ANCHOR READ:- झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के सारंडा जंगल में बीते एक सप्ताह से घायल पड़े जंगली हाथी को वन विभाग ने शुक्रवार को सफलतापूर्वक ट्रेस कर लिया है। फिलहाल उसकी स्थिति गंभीर बनी हुई है और प्राथमिक उपचार के बाद शनिवार को विशेष रेस्क्यू टीम द्वारा उसका विधिवत इलाज शुरू किया जाएगा।
घटना स्थल और हाथी की स्थिति:
घटना मनोहरपुर थाना क्षेत्र के दीघा से तिरिलपोशी के बीच, टूटुंगाउली के पास एक नाले के किनारे स्थित क्षेत्र में सामने आई है। हाथी का पिछला बायां पैर बुरी तरह जख्मी है, जिससे मवाद और रक्त का रिसाव हो रहा है। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, वह बीते 9 दिनों से घायल अवस्था में जंगल में पड़ा था, और अपनी स्थिति के बावजूद भोजन की तलाश में आसपास के शाल वृक्षों की पत्तियों पर निर्भर था।
आईईडी विस्फोट की आशंका:
वन विभाग के अधिकारियों ने संभावित कारणों पर जांच शुरू कर दी है। प्रारंभिक तौर पर नक्सलियों द्वारा बिछाए गए आईईडी विस्फोट से हाथी के घायल होने की संभावना जताई गई है, हालांकि इस बात की पुष्टि मेडिकल जांच के बाद ही संभव होगी।
रेस्क्यू टीम और चिकित्सा व्यवस्था:
सारंडा वन प्रमंडल के डीएफओ अभिरूप सिन्हा ने शुक्रवार को बताया कि घायल हाथी का पता चलने के बाद चाईबासा, राउरकेला और क्योंझर से वेटनरी विशेषज्ञों की टीमें मौके पर पहुंचीं। हाथी को प्राथमिक उपचार के तौर पर दवाइयाँ दी गईं हैं। गुजरात के जामनगर स्थित "वनतारा" से आ रही विश्व प्रसिद्ध रेस्क्यू टीम शनिवार को सारंडा पहुंचेगी, जिसके बाद उसका संवेदनशील ऑपरेशन व ट्रेंकुलाइजेशन किया जाएगा।
ट्रेंकुलाइजेशन प्रक्रिया:
वन विभाग के अनुसार, हाथी को केवल एक बार ट्रेंकुलाइज किया जा सकता है। उसकी मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह निर्णय लिया गया कि ट्रेंकुलाइज प्रक्रिया वनतारा की टीम की निगरानी में ही की जाएगी, ताकि किसी भी तरह की जटिलता से बचा जा सके।
ग्रामीण कर रहे घायल हाथी से संवाद:
ओडिशा और झारखण्ड के वन विभाग की टीम ने नक्सली आईईडी बम विस्फोट में घायल हाथी का पता लगा लिया है. पश्चिम सिंहभूम के मनोहरपुर थाना क्षेत्र के दीघा से तिरिलपोशी के बीच दीघा से 6 किलोमीटर की दुरी पर स्थित टूटुंगाउली से एक किलोमीटर की दुरी पर एक नाले के किनारे नक्सली आईईडी विस्फोट से घायल हाथी पनाह लिया हुआ है. जख्मी पैर लेकर बीते नौ दिनों से साल के घने जंगल के बीच किसी तरह घिसट घिसट कर हाथी जिंदगी जी रहा है. भीषण दर्द और तड़प के बीच शाल पत्ता खाकर अपनी जिंदगी से सघर्ष करटा हाथी नजर आया है.
जिस जगह में हाथी है उसके आसपास उसका मल मूत्र मौजूद है. जिससे यह अनदाज़ा लगाया जा रहा है की पिछले तीन चार दिनों से उसने अपन ठिकाना नहीं बदला है. टीवी मिडिया की टीम और ग्रामीण जैसे ही हाथी के सामने जाने की कोशिश की तो घायल हाथी ने लोगों को अपनी तरफ आते देखा उसने लंगड़ाते और घसीटते हुए अपनी रक्षा के लिए लोगों को खदेड़ने लगा. इस बीच वहां मौजूद स्थानीय एक आदिवासी ग्रामीण धरम प्रकाश टोपनो ने मुंडा भाषा में हाथी से कहा "आउरी आउरी".
धरम प्रकाश के मुंह से इन शब्दों के निकलते ही हाथी थम सा गया. धरम प्रकाश के मुंह से निकले इन शब्दों ने शब्द मानो एक जादुई छड़ी की तरह काम किया और हाथी यह समझ गया की उसे उनसे कोई खतरा नहीं है. जिसके बाद हाथी ने तुरंत अपने घायल पैर को किसी तरह धरम प्रकाश को दिखाने लगा. मानो वह अपनी पीड़ा धरम प्रकाश को बता रहा हो. धरम प्रकाश ने भी उसके पीड़ा को समझते हुए मुंडा भाषा में हाथी को आश्वासन दिया. की चिंता मत करो तुम जल्दी ठीक हो जाओगे. उसके बाद धरम प्रकाश ने हाथी को बताया अपनी भाषा में बताया की उसे ठीक करने के लिए कई लोग यहाँ आ चुके हैं.
जिसके बाद धरम प्रकाश के सहारे लोग किसी तरह वहां से वापस भाग निकले. धरम प्रकाश के इस हुनर को देखकर वहां मौजूद लोग आश्चर्यचकित रह गए. धरम प्रकाश घायल हाथी से मानव की तरह बातें कर रहा था और हाथी भी उसकी बातों को समझ रहा था. और एक आज्ञाकारी जानवर की तरह वह एक ही जगह खड़े होकर अम्ल कर रहा था. धरम प्रकाश ने बताया की यह कोई आश्चर्य वाली बात नहीं है.
जंगल में मेरी तरह और भी कई लोग हैं. जो जंगली जानवर से इसी तरह ही बातें करते हैं. जंगल में हमलोग लकड़ी और छत्तू चुनने जाते हैं तो इसी तरह जंगली जानवरों से आमना सामना होता है और इसी तरह जानवरों से बात कर वे अपनी जान बचाते हैं और जंगली जानवरों को भी आश्वस्त करते हैं की वे उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. हाथ जोड़कर माफ़ी मांग कर निकल जाते हैं.
वन्यजीव और सुरक्षा के बीच बढ़ती चुनौती
यह घटना दर्शाती है कि वन्य जीव अब न केवल मानवीय अतिक्रमण, बल्कि सुरक्षा से जुड़े संघर्षों का भी शिकार हो रहे हैं। क्षेत्र में बढ़ते नक्सली प्रभाव और उनके द्वारा बिछाए गए विस्फोटक अब जानवरों के लिए भी जानलेवा बनते जा रहे हैं।
BYTE:- धरम प्रकाश टोपनो - स्थानीय ग्रामीण, सारंडा जंगल
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