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केतार दुर्गा मंदिर: आस्था का शक्तिपीठ, जहां सारी मन्नतें पूरी होती हैं
APASHISH PRAKASH RAJA
Sept 29, 2025 02:16:26
Narayanpur, Jharkhand
Anchor- झारखण्ड-बिहार-यूपी की सीमा पर अवस्थीत है ग़ढ़वा जिला का केतार प्रखंड। इस पवित्र स्थल आस्था का ऐसा गढ़, जहाँ सिर्फ गाँव ही नहीं, दूर-दराज़ से भी लोग खिंचे चले आते हैं। क्योंकि यंहा माँ भगवती खुद विराजमान है। नवरात्रों में श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केन्द्र बना हुआ है। ऐसी मान्यता है की जब राजा दक्ष प्रजापति के यहां यज्ञ हुआ था, उस समय हुए सती के हुए बावन हिस्सों में से कर का हिस्सा यहां गिरा था. जिसके कारण केतार दुर्गा मंदिर शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध है जिला मुख्यालय से करीब 70 किमी दूर झारखंड के अंतिम छोर पर बिहार-यूपी सीमा पर प्रखंड मुख्यालय अवस्थित मां चतुर्भुजी भवगती मंदिर राज्य में शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि यहां आकर सच्चे मन से मन्नत मांगने पर पूरी होती है। यहां झारखंड सहित पड़ोसी राज्यों के श्रद्धालु भी पूजा करने पहुंचते हैं। प्राकृतिक छटा और मनोरम वादियों के गोद में बसे होने के कारण प्रकृति प्रेमी भी बर्बस खींचे चले आते हैं। मंदिर पूजा अर्चना को लेकर तड़के चार बजे से रात्रि आठ बजे तक यहां मां का पट खुला रहता है। दोपहर बारह बजे सिर्फ आधा घंटा के लिए मंदिर का कपाट बंद किया जाता है। मंदिर से लाखों लोगों की श्रद्धा और आस्था जुड़ी हुई है। बताया जाता है कि जिस तरह उत्तर प्रदेश के विंध्याचल में विंध्यवासिनी मां, बिहार के तारा चंडी मां, या मां मुडेश्वरी। वहीं आसाम के कामाख्या मंदिर या कोलकाता का काली मंदिर हो। उक्त मंदिरों की जो मान्यता है वैसा ही मां भगवती चतुर्भुजी मंदिर की मान्यता है। मां चतुर्भुजी भगवती की कृति की गाथा व महिमा बहुत प्राचीन है। मान्यता है कि सती के पिता राजा दक्ष ने अपने घर आयोजित होने वाले यज्ञ में भगवान शंकर और माता सती को आमंत्रित नहीं किया। जब पिता के घर हो रहे यज्ञ के आयोजन की खबर माता सती को हुई तो उन्होंने भगवान शंकर से पिता के घर जाने की जिद किया। भगवान शंकर ने उन्हें बिना निमंत्रण के पिता के घर नहीं जाने की सलाह दी। उसपर माता सती अपने जिद पर अडिग रहीं। अपने पति भगवान शंकर की बातों की अवहेलना कर सती अपने पिता के घर गई। वहां उनके मायके में पिता सहित सभी लोगों ने उन्हें और उनके पति भगवान शंकर के लिए खिल्ली उड़ाई। उससे आहत होकर सती ने यज्ञ मंडप में कूदकर अपनी जान दे दी। सती द्वारा आत्मदाह किए जाने की सूचना पर पहुंचे भगवान शंकर ने सती के मृत शरीर को अपने कंधों पर रख कर तांडव नृत्य किया था। उसके बाद सती के मृत शरीर कई टुकड़ों में विभक्त होकर धरती पर गिरा था। सती के शरीर के अवशेष जहां जहां गिरे थे वहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई। ऐसी मान्यता है कि सती का दायां हाथ केतार के भैंसहट में गिरने के कारण कालांतर में यहां का नाम केतार पड़ा। मान्यता है के एक बैगा को मां ने स्वप्न दिया। उसके बाधार पर बैगा जब स्थल पर पहुंच देखा तो वहां माता की प्रतिमा थी। उसके बाद सोनपुरा स्टेट के राजा को जब इसकी जानकारी हुई तो प्रतिमा को हाथी पर रखकर राजदरबार ले जाना चाहा। मां भगवती को जिस हाथी से लाया जा रहा था वह राजदरबार में न पहुंचकर एक जगह बैठ गया। काफी प्रयास के बाद जब हाथी नहीं उठा तो प्रतिमा को वहीं स्थापित कर दिया गया। कालांतर में चतुर्भुजी मंदिर के रूप में लोग जानने लगे। इस मंदिर में शारदीय नवरात्र व चैत्र मास के नवरात्रि के दौरान विशेष उत्सव मनाए जाते हैं। साथ ही चैत्र मास की नवमी तिथि से वैशाख पूर्णिमा तक एक माह तक चलने वाले मेला का भव्य आयोजन किया जाता है। उसमें झारखंड सहित यूपी, बिहार, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश से लाखों श्रृद्धालुओं का आगमन होता है। जहां लोग मां चतुर्भुजी भगवती की पूजा अर्चना कर खुशहाल जीवन और निरोगी काया के लिए मां भगवती से आशीर्वाद मांगते हैं। मंदिर के गर्भगृह में साठ किलो चांदी से बनाए गए श्रीयंत्र पर अष्टधातु से निर्मित मां की अलौकिक प्रतिमा अद्वितीय है। साथ ही भव्य और आलीशान मंदिर अतिथियों के विश्राम के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित विश्राम गृह, गाड़ियों के पार्किंग की समुचित व्यवस्था, पीने का स्वच्छ पानी, मंदिर परिसर में रंग बिरंगे फूलों से महकता उद्यान आने वाले श्रद्धालुओं का मन मोह लेता है।
BYTE- बाल मुकुंद पाठक,पुजारी/रामप्रीत ठाकुर,स्थानीय/कन्हैया प्रसाद,स्थानीय
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