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दतिया की जंगल में देवी रतनगढ़: भक्तों की मन्नतें पूरी
MGManoj Goswami
Sept 23, 2025 15:16:08
Datia, Madhya Pradesh
मनोज गोस्वामी दतिया
नवरात्र में रतनगढ़ माता मंदिर पर सैकड़ों की संख्या में पहुंच रहे है श्रद्धालु ,
भक्त की हर मनोकामना होती है पूरी
दतिया से लगभग 45 किलोमीटर दूर भरकुंआ के जंगल में विराजमान माता रतनगढ़ देवी की प्रसिद्ध किसी से छुपी नहीं है इस मंदिर की मान्यता है जो भी भक्त सर्प दंश से पीड़ित होता है वह माता रतनगढ़ देवी तथा कुंवर बाबा के नाम का बंध लगा लेता है तो उस व्यक्ति को सर्प दंश से मुक्ति मिलती है।
माता रतनगढ़ देवी चामुंडा के स्वरूप में बीच जंगल में ऊंची पहाड़ी पर विराजमान है । इस प्रांगण में कुंवर बाबा भी विराजमान है।
कहते हैं रतनगढ़ माता गरीबों की माता के नाम से विख्यात है मंदिर पर अधिकांश सामान्य और गरीब तपके श्रद्धालु नजर आते हैं। माता के भक्त को मुराद पूरी करने के लिए बड़ा चढ़ावा नहीं लगता। रतनगढ़ माता के भक्त को मनोवांक्षित कामना पाने के लिए पान पर कुछ बताशे और नारियल और पुष्प माला चढ़ाने माता प्रसन्न हो जाती है। इस मंदिर पर कोई विशेष पूजा अर्चना नहीं होती है सिर्फ श्रद्धालू अपने मन से मन्नत मांगते है तो माता रानी जरूर पूरी करती हैं। यहां की यह भी मान्यता जंगल में लगे पेड़ की लकड़ी अपने घर में रख ली जाए तो सर्प उस घर में प्रवेश नहीं करते।
माता के इतिहास के बारे में मंदिर के पुजारी श्री महंत राजेश पुजारी अपने मंदिर की पूजा अर्चना करने की विधि और मंदिर के इतिहास के बारे में जानकारी दी है।
बाइट -महंत राजेश कटारे
भक्तों के अपने-अपने अनुभव है पहले इस भयाभय जंगल में डाकुओं का बसेरा था। पुतलीबाई से लेकर माधो सिंह ,मोहर सिंह, मलखान सिंह, गबरा डकैत, निर्भय गुर्जर, हजरत रावत, जैसे कई डकैतों की शरण स्थली रहा है। लेकिन जब माता रानी की अपने भक्तों पर कृपा बरसने लगी तो भी जंगल अब पर्यटन स्थल का रूप ले चुका है जंगल में लगी दुकानो से क्षेत्र वासियों को रोजगार मिल रहा है जिस सिंध नदी पर हादसे होते थे उस नदी पर एक किलोमीटर का पक्का बेहतरीन पुल बन गया है जिससे अब आवागमन सुलभ चुका है।
यदि इतिहास की बात करें रतनगढ़ माता का नाम मंडोला देवी है इनके ही भाई कुंवर बाबा है।
माना जाता है कि रतनगढ़ क्षेत्र परमार क्षत्रियों का था, और जब अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया, तो परमार राजकुमारी मांडुला ने जल जौहर कर लिया और एक शिला में समा गईं थी।
समर्थ गुरु स्वामी रामदास ने शिवाजी महाराज को आगरा किले से छुड़ाने की रणनीति बनाने के लिए इस मंदिर में छह महीने बिताए और तपस्या की थी ।
बाइट - बलदेव राज बल्लू
बाइट - सतीश यादव
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