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दुर्ग में शिक्षा व्यवस्था का भंडाफोड़: क्या बच्चों का भविष्य खतरे में है?
Durg, Chhattisgarh
स्लग- शिक्षा व्यवस्था चरमराई
लोकेशन- दुर्ग
एंकर- कहते हैं शिक्षा इंसान की जिंदगी बदल सकती है, लेकिन जब बच्चों को पढ़ने का ही मौका न मिले तो वो बदलाव कैसे आएगा? युक्त युक्तिकरण के कारण मौजूदा शिक्षा व्यवस्था इस सवाल पर गहराई से सोचने को मजबूर करती है आंकड़े और जमीनी हकीकत दोनों ही बताते हैं कि यहां शिक्षा की नींव हिल चुकी है.
वी/ओ-1- दुर्ग जिसे कभी शिक्षा धानी कहा जाता था आज खुद सवालों के घेरे में है जर्जर भवन शिक्षकों की कमी और प्रशासनिक उदासीनता बच्चों का भविष्य निगल रही है दुर्ग जिले के धमधा ब्लॉक से करीब 30 किलोमीटर दूर एक स्कूल में 11 वीं की छात्राएं कॉमर्स की पढ़ाई के लिए संघर्ष कर रही हैं वहाँ एक ही शिक्षक हैं वो भी दिव्यांग है ब्लैकबोर्ड पर पढ़ा नहीं सकते छात्राएं मजबूरी में खुद पढ़ रही हैं और अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं.
बाईट-1- स्कूल की बच्ची
वी/ओ-2- इसी तरह ग्राम थनौद की प्राथमिक शाला में स्थिति और भी चिंताजनक है पहली से पांचवीं तक की कक्षाएं चलती हैं लेकिन महज तीन शिक्षक हैं जर्जर भवन के कारण पांच में से केवल तीन कमरे इस्तेमाल हो रहे हैं। बाकी बच्चों को किसी तरह एकसाथ बिठाकर पढ़ाया जा रहा है.
बाईट-2- संतोष कुमार साहू, हेडमास्टर थनौद प्राथमिक स्कूल( ब्लू कलर का चेक सेट)
वी/ओ-3- पाटन विकासखंड के प्राथमिक शाला सुरपा में तो बच्चे और शिक्षक जान जोखिम में डालकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं स्कूल की छत से प्लास्टर गिर चुका है, वो भी क्लासरूम बालिका शौचालय और मिड-डे मील किचन में शुक्र है कि हादसे के वक्त वहां कोई बच्चा मौजूद नहीं था, वरना बड़ी दुर्घटना हो सकती थी.
बाईट-3- खेमलाल साहू, प्रधान पाठक,ग्राम सुरपा प्राथमिक स्कूल (चश्मा लगाया हुआ है) पीछे पर्दा दिख रहा है..
वी/ओ-4-इस पूरे मसले पर जिला शिक्षा अधिकारी अरविंद मिश्रा का कहना है कि प्राथमिक शालाओं में 109 पद रिक्त हैं और हायर सेकेंडरी स्तर पर व्याख्याता के 248 पदों में से 168 अब भी खाली हैं कुछ पदों पर अतिशेष शिक्षकों की व्यवस्था की गई है लेकिन वह ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही है फिलहाल शिक्षकों की कमी और युक्त युक्तिकरण के कारण छात्रों को खासी परेशानियां हो रही है.
बाईट-4- अरविंद मिश्रा, जिला शिक्षा अधिकारी दुर्ग( पॉकेट में लाल पेन)
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