Patna, Bihar:पटना
CPI ML महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य का बयान....
बिहार में मतदाता सूची के 'विशेष गहन पुनरीक्षण' पर जितनी सफाई चुनाव आयोग दे रहा है, मामला उतना ही ज़्यादा उलझाऊ और संदेहास्पद होता जा रहा है.
1. चुनाव आयोग मतदाता सूची के वार्षिक अद्यतन की आड़ में 'विशेष गहन पुनरीक्षण' को मामूली प्रक्रिया क्यों साबित करना चाहता है? जबकि सच्चाई यह है कि पिछली बार विशेष गहन पुनरीक्षण आज से 22 साल पहले हुआ था. यह कोई हर साल होने वाली सामान्य प्रक्रिया नहीं है.
2. वोट केवल भारत के नागरिक दे सकते हैं, यह सभी जानते हैं. लेकिन आज़ादी के बाद से आज तक कभी किसी मतदाता से उसकी नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज़ नहीं मांगे गए. यह राज्य की जिम्मेदारी रही है कि अगर किसी पर संदेह है तो उसे राज्य साबित करे. अब हर मतदाता पर शक करके ऐसे कागज़ मांगे जा रहे हैं, जो आज भी करोड़ों भारतीयों के पास नहीं हैं.
3. हर जन्म का पंजीकरण कराना राज्य की जिम्मेदारी है. पंजीकरण न होने से कोई जन्म अमान्य नहीं होता. लोगों को दशकों पुराने रिकॉर्ड खोजने पर मजबूर करने के बजाय, राज्य को जन्म-मृत्यु का सार्वभौमिक पंजीकरण सुनिश्चित करना चाहिए ताकि रिकॉर्ड अपने आप अपडेट हो.
4. चुनाव आयोग यह क्यों नहीं बताता कि 'विशेष गहन पुनरीक्षण' जैसी बड़ी प्रक्रिया शुरू करने से पहले किसी राजनीतिक दल से कोई सलाह-मशविरा क्यों नहीं किया गया? इसे इतनी चुपके से और अचानक क्यों लागू किया गया? जब नोटबंदी अचानक लागू हुई थी तो सरकार ने कहा था कि काले धन वालों को चौंकाना है. क्या चुनाव आयोग भी बिहार के मतदाताओं को इसी तरह फंसाना चाहता है?
5. यह कहकर लोगों को बहलाया नहीं जा सकता कि जो लोग 2003 की मतदाता सूची में दर्ज हैं, उन्हें माता-पिता के जन्म प्रमाणपत्र नहीं देने पड़ेंगे. असली सवाल संख्याओं का नहीं, बल्कि प्रक्रिया और उसके खतरनाक नतीजों का है.
6. चुनाव आयोग 4.96 करोड़ मतदाताओं की बात करके झूठी तसल्ली दे रहा है कि उन्हें दस्तावेज़ नहीं देने होंगे. लेकिन लगभग 3 करोड़ मतदाता, खासकर गरीब, दलित, पिछड़े और मज़दूर, जिनके पास दस्तावेज़ नहीं हैं, उनका क्या होगा? कितनों को इस बहाने मतदाता सूची से बाहर कर दिया जाएगा?
7. चुनाव आयोग को यह मनमाना, अवैज्ञानिक और अपारदर्शी आदेश तुरंत वापस लेना चाहिए. जैसा पिछले दो दशकों से सामान्य प्रक्रिया के तहत मतदाता सूची अपडेट होती है, उसी आधार पर चुनाव कराए जाएं. चुनाव आयोग का काम मतदाताओं को सुविधा देना है, न कि नई-नई अड़चनें खड़ी करके करोड़ों लोगों को लोकतंत्र से बाहर करना.
byte : दीपंकर भट्टाचार्य
महासचिव, भाकपा–माले