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अबूझमाड़ में नक्सलवाद के बाद सांस्कृतिक पुनर्जागरण और विकास की नई पहल
HSHEMANT SANCHETI
Dec 27, 2025 11:54:58
Narayanpur, Chhattisgarh
नारायणपुर जिले के दुर्गम और वर्षों तक नक्सलवाद की छाया में रहे अबूझमाड़ क्षेत्र से एक सुखद और उम्मीद जगाने वाली खबर सामने आई है। नक्सलवाद की समाप्ति के साथ अब अबूझमाड़ के ग्रामीण समाज को एकजुट करने, अपनी सांस्कृतिक पहचान को सहेजने और नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने की दिशा में सार्थक पहल शुरू हो चुकी है। इसी क्रम में अबूझमाड़िया समाज महासम्मेलन का आयोजन किया गया, जो सामाजिक चेतना और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक बनकर उभरा। महासम्मेलन में अबूझमाड़ के दूरस्थ अंचलों में बसे गांवों से बड़ी संख्या में ग्रामीण पहुंचे। वर्षों बाद एक-दूसरे से मिलने का यह अवसर भावनात्मक भी था और ऐतिहासिक भी। लंबे समय तक भय और असुरक्षा के माहौल में जीने वाले ग्रामीणों के लिए यह सम्मेलन आपसी भाईचारे और विश्वास की मजबूत नींव बना। सम्मेलन के दौरान अबूझमाड़ के पारंपरिक सामाजिक पदों—गायता, पटेल और मांझी—का सम्मान पूरे आदर के साथ किया गया। उन्हें पगड़ी पहनाकर और तिलक लगाकर सम्मानित किया गया, जो समाज में उनके योगदान और नेतृत्व की भूमिका को दर्शाता है। यह सम्मान न केवल व्यक्तियों का था, बल्कि पूरी सामाजिक व्यवस्था और परंपराओं का सम्मान था। महासम्मेलन में अबूझमाड़ के ग्रामीण और महिलाएं अपनी पारंपरिक वेशभूषा में नजर आएं। रंग-बिरंगे परिधान, आभूषण और पारंपरिक साज-सज्जा ने पूरे आयोजन को जीवंत बना दिया। वहीं गांव के कलाकारों ने अपनी लोक संस्कृति की झलक प्रस्तुत करते हुए नृत्य, गीत और पारंपरिक कला का प्रदर्शन किया। इन प्रस्तुतियों ने यह साबित कर दिया कि कठिन परिस्थितियों के बावजूद अबूझमाड़ की संस्कृति आज भी जीवित और सशक्त है। इस सम्मेलन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य बदलते समय के साथ अपनी रीति-रिवाजों को सहेजकर रखने का संदेश देना था। समाज के वरिष्ठजनों ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि आधुनिकता के साथ कदम मिलाना जरूरी है, लेकिन अपनी सांस्कृतिक पहचान को भूलना नहीं चाहिए। अपनी भाषा, परंपरा, सामाजिक नियम और लोक कला को अपनाए रखना ही समाज को मजबूत बनाता है। कुल मिलाकर, यह महासम्मेलन नक्सलवाद के बाद अबूझमाड़ में लौटती शांति और विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह आयोजन अपने लोगों से फिर से जुड़ने, सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने और सांस्कृतिक विरासत से रूबरू होने का सशक्त माध्यम बना। अबूझमाड़ की यह पहल न केवल क्षेत्र के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए एक सकारात्मक और प्रेरणादायक संदेश देती है कि भय के अंधेरे के बाद विकास, एकता और संस्कृति की रोशनी जरूर आती है।
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