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नेल्लि नरसंहार: असम सरकार रिपोर्ट विधानसभा में पेश करने का निर्णय
SASARIFUDDIN AHMED
Oct 27, 2025 10:51:56
Guwahati, Assam
NELLI नरसंहार चर्चा का विषय बन चुका है. असम के मुख्यमंत्री Hemanta बिस्वा सरमा की सरकार ने इस नरसंहार की रिपोर्ट को असम विधानसभा में पेश करने का निर्णय लिया है. इस बात पर असम के मिया कल्याण परिषद के advocate razaul करीम ने भी अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि नीली हत्याकांड जो हुई थी उसमें 10000 से भी ज्यादा मुस्लिम Bangla Bhasi को मार दिया गया था जो बहुत दुखद घटना है परंतु अभी असम के मुख्यमंत्री ने जो तिवारी आयोग का रिपोर्ट देने वाले हैं वह बहुत अच्छी बात है परंतु कौन करने वालों को इंसाफ मिलेगा या नहीं वह सोने की बात है वहीं दूसरी ओर इतिहाद फ्रंट असम के प्रमुख नरुल इस्लाम ने भी अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि असम के मुख्यमंत्री ने रिपोर्ट सबमिट करने का जो बात कहा है यह बहुत सोचने की बात है परंतु अभी 2026 के चुनाव से पहले यह रिपोर्ट बहुत ही चुनाव का डेमोग्राफी चेंज कर देगा और उन्होंने अभी कहा है कि असम के मुख्यमंत्री कुछ दिनों से जो असम में भाईचारा देखा जा रहा है जुबीन गर्ग के मौत को लेकर उसे डर गए हैं इसीलिए इस तरह से नीली हत्याकांड का रिपोर्ट सबमिट करने वाले हैं हो सकता है और भी दूसरे कारण हो परंतु 26 का चुनाव मूल कारण है ऐसे रिपोर्ट डालने को लेकर
*NEELI नरसंहार को लेकर कुछ जानकारी ऐतिहासिक तौर पर*
यह असम के इतिहास का काला अध्याय है जिसमें 2,000 लोगों की निर्दयता से हत्या हुई. पढ़ें नरसंहार की पूरी कहानी. परंतु स्थानीय लोगों का कहना है कि 10000 से भी ज्यादा लोग इस हत्याकांड में मारे थे
देश की आजादी के बाद कई बार दंगे हुए. बांग्लाभाषियों का यह नरसंहार 18 फरवरी 1983 को हुआ था. तब तिवा, कर्बी और अन्य समुदायों के लोगों ने बांग्लाभाषी मुस्लिमों को निशाना बनाया था. अब इस नरसंहार की रिपोर्ट सरकार सदन में रखने जा रही है. आइए जान लेते हैं कि क्या था नेल्ली नरसंहार, जब केवल छह घंटे में हजारों मुसलमानों का कत्ल कर दिया गया था.
हालांकि, बढ़ती आबादी के साथ राज्य के संसाधन कम पड़ने लगे. नई पीढ़ी के मन में राजनीतिक इच्छाएं और आकांक्षाओं परवान चढ़ रही थीं. ऐसे में ग़रीबी और पिछड़ेपन के कारण आदिवासी समूहों के युवा अपना अधिकार पाने के लिए सशस्त्र आंदोलन की ओर बढ़ चले. ये समूह एक-दूसरे के खिलाफ ही संघर्षरत हो गए.
अवैध बांग्लादेशियों के खिलाफ आंदोलन साल 1979 से 1985 के बीच चले इस आंदोलन को असम आंदोलन के नाम से जाना जाता है, जिसका उद्देश्य असम से विदेशियों या अवैध बांग्लादेशियों को खदेड़ना था. ऐसे ही आंदोलन के दौरान 1980 के दशक में लोग बांग्लाभाषियों के विरोध में खड़े हो गए, कई दशकों से असम में बसे बांग्लादेशी का मूल पेशा खेती है. चूंकि बांग्लादेश की सीमा भी असम से मिली है तो वहां से बड़ी संख्या में घुसपैठिए भी असम आते रहे हैं. वास्तव में यह आंदोलन इन्हीं अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के विरुद्ध था.
नेल्ली नरसंहार में स्थानीय सरकारी मशीनरी और पुलिस के भी शामिल होने का आरोप लगाया गया था.
कई घटनाओं के चलते उपजी हिंसा उसी दौरान तिवा समुदाय की जमीन पर कब्जा कर खेती करने लगे और गाएं चुरा लीं. यही नहीं, तभी चुनाव हुए, जिसका आदिवासियों ने बहिष्कार किया था पर बांग्लाभाषियों ने मतदान में हिस्सा लिया था. इससे असम के आदिवासी नाराज थे. इसकी प्रतिक्रिया यह रही कि 18 फरवरी 1983 को सेंट्रल असम के नेल्ली क्षेत्र में हजारों आदिवासियों ने मिलकर बांग्लाभाषी मुसलमानों के कई गांवों को घेर लिया.
इसमें नेल्ली समेत इलाके के 14 अन्य मुस्लिम बहुल गांवों को भीड़ ने घेर रखा था. गांव की सभी सड़कों पर कब्ज़ा कर लिया. कई घर जला दिए गए. भागने की कोशिश करने वालों का कत्ल कर दिया. छह घंटे के भीतर दो हजार से भी ज्यादा बंगाली मुसलमानों का सरेआम कत्ल कर दिया गया. हालांकि, गैर आधिकारिक तौर पर मृतकों का यह आंकड़ा तीन हजार से ज्यादा बताया जाता है.
यह सारी जानकारी संग्रह की गई है
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