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अरावली को कानूनी सुरक्षा से बाहर करने के प्रस्ताव पर युवा कांग्रेस का विरोध
RKRakesh Kumar Bhardwaj
Dec 19, 2025 18:04:58
Jodhpur, Rajasthan
अरावली को कमजोर करने वाली नई व्याख्या के खिलाफ युवा कांग्रेस का जोरदार विरोध, राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा
जोधपुर भारत की सबसे प्राचीन पर्वतमाला अरावली आज अपने अस्तित्व की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रही है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देश के बाद 100 मीटर से कम ऊँचाई वाली पहाड़ियों को “पहाड़” न मानने की जो नई व्याख्या सामने आई है, वह अरावली के विशाल भूभाग को कानूनी संरक्षण से बाहर करने का गंभीर खतरा पैदा कर रही है। इसी के विरोध में युवा कांग्रेस जोधपुर देहात ने आज जिलाध्यक्ष पुखराज दिवराया के नेतृत्व में जिला कलेक्टर कार्यालय, जोधपुर पर विरोध प्रदर्शन कर जिला कलेक्टर के माध्यम से राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा।
प्रदर्शन को संबोधित करते हुए युवा कांग्रेस जोधपुर देहात के जिलाध्यक्ष पुखराज दिवराया ने कहा कि यह केवल शब्दों की व्याख्या का मामला नहीं है, बल्कि इसके दूरगामी परिणाम राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और पूरे उत्तर-पश्चिम भारत के पर्यावरणीय भविष्य को सीधे प्रभावित करेंगे। अरावली पर्वतमाला लगभग 692 किलोमीटर तक गुजरात से दिल्ली तक फैली हुई है और इसे लगभग तीन अरब वर्ष पुरानी पर्वत श्रृंखला माना जाता है। इसका लगभग दो-तिहाई हिस्सा राजस्थान में स्थित है, जो जलवायु संतुलन, वर्षा चक्र और भूजल रिचार्ज की रीढ़ है।
दिवराया ने कहा कि फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के आँकड़े इस संकट की भयावहता को उजागर करते हैं। देश में मैप की गई 12,081 पहाड़ियों में से केवल 1,048 ही 100 मीटर की ऊँचाई के मानक पर खरी उतरती हैं। इसका सीधा अर्थ यह है कि अरावली का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा इस नई व्याख्या के चलते कानूनी सुरक्षा से बाहर हो सकता है, जिससे खनन माफिया, रियल एस्टेट और निजी परियोजनाओं को खुली छूट मिल जाएगी।
उन्होंने कहा कि अरावली केवल पहाड़ियों की श्रृंखला नहीं, बल्कि 300 से अधिक जीव-जंतुओं और पक्षियों का प्राकृतिक आवास, लाखों पशुपालकों की आजीविका और बनास, साबरमती व लूणी जैसी नदियों का उद्गम स्थल है। इसकी चट्टानी संरचना वर्षा जल को रोककर भूजल रिचार्ज करती है। पहले से जल संकट झेल रहे पश्चिमी राजस्थान के लिए अरावली का कमजोर होना स्थायी सूखे की ओर धकेलने जैसा ہوگا।
दिवराया ने सरकार की पर्यावरण नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि खेजड़ी, जो राजस्थान का राज्य वृक्ष और मरुस्थली पारिस्थितिकी तंत्र की जीवनरेखा है, उसे सोलर परियोजनाओं और औद्योगिक लीज़ के नाम पर योजनाबद्ध तरीके से काटा जा रहा है। अब तक लगभग 26 लाख खेजड़ी पेड़ काटे जा चुके हैं, जबकि भविष्य में करीब 50 लाख और पेड़ों की कटाई की तैयारी है। उन्होंने कहा कि एक विकसित खेजड़ी पेड़ को तैयार होने में लगभग 100 वर्ष लगते हैं, ऐसे में यह विनाश आने वाली पीढ़ियों के लिए अपूरणीय क्षति है।
उन्होंने बताया कि एक पेड़ औसतन 1,200 किलोलीटर ऑक्सीजन प्रतिवर्ष देता है। इस हिसाब से काटे गए 26 लाख पेड़ हर साल लगभग 25 करोड़ किलोलीटर ऑक्सीजन प्रदान करते थे, जो अब समाप्त हो चुकी है। बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई और ऊर्जा परियोजनाओं के कारण क्षेत्र का तापमान 3 से 4 डिग्री तक बढ़ चुका है, जिससे वर्षा में कमी और छोटे जीवों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ गया है।
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