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जयपुर में एक शहर—एक निगम लागू, क्या अब स्मार्टनगर की राह आसान होगी?
DGDeepak Goyal
Nov 09, 2025 13:16:07
Jaipur, Rajasthan
राजधानी जयपुर की दो शहरी सरकारों नगर निगम ग्रेटर और नगर निगम हैरिटेज का कार्यकाल आज खत्म हो गया है। कल से जयपुर फिर अपने पुराने स्वरूप में लौट आएगा। यानी, छह साल बाद एक बार फिर “एक शहर–एक निगम” मॉडल लागू हो जाएगा। गहलोत सरकार के समय बने ग्रेटर और हैरिटेज निगम का यह पहला कार्यकाल राजनीतिक और प्रशासनिक दोनो ही दृष्टि से विवादों में घिरा रहा। खास बात यह कि दोनों निगमों की मेयर डॉ. सौम्या गुर्जर (ग्रेटर) और मुनेश गुर्जर (हैरिटेज) में से कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकीं। दोनों को अपने-अपने कार्यकाल में निलंबन का सामना करना पड़ा।
जयपुर नगर निगम ग्रेटर और हैरिटेज, जिनका गठन 2020 में बतौर बेहतर प्रशासन और विकास के उद्देश्य से किया गया था, अपना कार्यकाल खत्म कर रहे हैं और इतिहास में ‘विफल प्रयोग’ के रूप में दर्ज हो रहे हैं। पहली बार बने इन दोनों निगमों में किसी मेयर ने पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया। ग्रेटर की मेयर डॉ. सौम्या गुर्जर अधिकारियों से टकराव के कारण लम्बे समय तक निलंबित और बर्खास्त रहीं। हैरिटेज मेयर मुनेश गुर्जर भ्रष्टाचार के मामले में एसीबी की कार्रवाई के बाद पद से हटा दी गईं और दोबारा वापसी नहीं कर सकीं। राजनीतिक खींचतान और प्रशासनिक असंतुलन के बीच जनता के मुद्दे हाशिये पर रहे। मेयर डॉक्टर सौम्या गुर्जर का कहना है कि हमने पारदर्शिता, स्वच्छता, स्वास्थ्य और हरित विकास को अपनी प्राथमिकताओं में रखा। डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण, प्लास्टिक मुक्त अभियान और नागरिक सहभागिता को बढ़ाकर शहर की स्वच्छता रैंकिंग में अहम सुधार हुआ। उधर मुनेश गुर्जर के निलंबन के बाद निगम हैरिटेज में कार्यवाहक महापौर का जिम्मा कुसुम यादव के पास 14 महीने तक रहा।
नगर निगम हैरिटेज की तत्कालीन मेयर मुनेश गुर्जर का कार्यकाल: 10 नवम्बर 2020 को कांग्रेस से मेयर बनीं, 5 अगस्त 2023 को रिश्वत प्रकरण के मामले में निलंबित, हाईकोर्ट से स्टे मिलने पर 24 अगस्त 2023 को फिर से कुर्सी पर, 22 सितम्बर 2023 को वापस निलंबित, हाईकोर्ट राहत मिलने पर 4 दिसम्बर 2023 को फिर से पद संभाला, 23 सितम्बर 2024 को भ्रष्टाचार के आरोपों में फिर निलंबित, उसके बाद कुर्सी पर नहीं आईं। 24 सितम्बर 2024 को निर्दलीय चुनाव जीतने वाली कुसुम यादव को कार्यवाहक महापौर बनाया गया।
अब सरकार ने दोनों निगमों को एक कर दिया है। जयपुर में कल से एक शहर–एक निगम प्रणाली लागू होगी। निगमों के प्रशासनिक नियंत्रण की जिम्मेदारी संभागीय आयुक्त को दी गई है। हैरिटेज निगम पर हर साल 100 करोड़ रुपए से अधिक का अतिरिक्त खर्च बैठा—पांच साल में यह बोझ लगभग 500 करोड़ तक पहुंच गया। दोनों निगमों ने मिलकर 1000 करोड़ रुपए विकास कार्यों पर खर्च किए, लेकिन परिणाम सीमित रहे। बजट की कमी से पार्षद लगातार असंतोष जताते रहे।
दो नगर निगमों का यह प्रयोग राजस्थान की शहरी व्यवस्था के इतिहास में एक अध्याय बनकर रह गया। सरकार बदली, नीति बदली और अब जयपुर फिर उसी पुराने रास्ते पर लौट आया है। पांच साल में जयपुर के दो निगमों ने जनता को दोहरी सरकार तो दी, लेकिन सुविधा नहीं। अब उम्मीद यही है कि एकीकृत निगम के साथ शहर की व्यवस्था में फिर से एक सूत्रता लौटे।
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