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SMS अस्पताल ICU आग से 6 बच्चों की मौत: लापरवाही पर सवाल, प्रशासन पर दबाव
APAvaj PANCHAL
Oct 07, 2025 18:09:15
Jaipur, Rajasthan
एसएमएस में आग ने ली 6 जानें – लापरवाही ने लिखा मौत का आदेश!एंकर क्या सिर्फ पद से हटाना ही इन बेकसूर जिंदगियों को मिलेगा न्याय? जयपुर | राजस्थान का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल एसएमएस (सवाई मानसिंह) अस्पताल आज सवालों के कटघरे में है। ICU में लगी आग से 6 मासूम जिंदगियां बुझ गईं, लेकिन असली सवाल अब यह है – क्या उन्हें आग ने मारा या सिस्टम की लापरवाही ने? घटना के वक्त अस्पताल का मंजर रोंगटे खड़े कर देने वाला था। जैसे ही आग फैली, डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ जान बचाकर भाग खड़े हुए। परिजन अपने मरीजों को गोद में उठाकर बाहर दौड़े, कोई स्ट्रेचर घसीटता रहा, कोई रोता-चिल्लाता टोंक रोड पर भागा। ICU बेड की लाइन सड़क पर लगी थी, लेकिन जिम्मेदार सिर्फ खड़े देखते रहे – न कोई राहत, न कोई दिशा। जिन्हें होना था सबसे पहले मोर्चे पर, वो बने रहे तमाशबीन प्रिंसिपल एंड कंट्रोलर डॉ. दीपक माहेश्वरी और ICU प्रभारी डॉ. मनीष अग्रवाल मौक़े पर खड़े रहे लेकिन ना कोई निर्देश दिया, ना किसी मरीज को शिफ्ट करवाने की कोशिश की। न कोई एंबुलेंस मंगवाई, न RUHS जैसे पास के अस्पताल में शिफ्टिंग का प्रयास। मुख्यमंत्री के आने के बाद जरूर थोड़ी हरकत दिखी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जिन Ihone चेताया, उन्हीं को बनाया बलि का बकरा इस हादसे के पीछे महज एक लापरवाही नहीं, बल्कि एक सुनियोजित अनदेखी छुपी है। अस्पताल के एक अधिकारी ने 4 महीने पहले ही इलेक्ट्रिसिटी ऑडिट की सिफारिश की थी, लेकिन प्रिंसिपल ने वो पत्र कूड़ेदान में फेंक दिया। अगर तब ऑडिट हो गया होता, तो शायद 6 घरों में आज मातम न होता। अब सवाल उठता है – जिन लोगों ने पहले ही चेतावनी दी थी, उन्हें ही निलंबित कर दिया गया। और जो असली जिम्मेदार थे, जो VRS देकर खुद हटना चाहते थे, उन्हें अब तक सिर्फ पद से हटाकर खानापूर्ति कर दी गई। असली दर्द: कोई विजन नहीं, कोई ज़िम्मेदारी नहीं चिकित्सा शिक्षा विभाग की हालत ये है कि कई अस्पतालों, खासकर महिला चिकित्सालयों में अब तक फायर एनओसी तक नहीं है। क्या ये हादसा किसी बड़े नरसंहार की आहट नहीं? ICU प्रभारी और न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रमुख चाहते तो अपनी टीम के साथ हर मरीज को वार्ड में शिफ्ट करा सकते थे, लेकिन न विजन था न इच्छाशक्ति। जब वक्त था फैसला लेने का, तब सब चुप थे – और जब जानें चली गईं, तब सफाई देने की होड़ मच गई। OT के फॉल्स सीलिंग और शॉर्ट सर्किट की चिट्ठी को अब ICU की आग से जोड़ कर बचाव की कोशिशें हो रही हैं। लेकिन सच्चाई यही है – आग ICU में लगी, मौतें ICU में हुईं, और लापरवाही भी ICU की ही थी। जिम्मेदारी तय हो – हत्या का मुकदमा हो यह कोई हादसा नहीं, यह सिस्टम की हत्या है। इन 6 बेकसूर जिंदगियों की मौत को महज़ 'दुर्घटना' कहकर भूल जाना न्याय नहीं। यह गैरजिम्मेदाराना हत्या है और इसके लिए केवल सस्पेंशन नहीं, आपराधिक मुकदमा होना चाहिए। आज सवाल पूरे सिस्टम से है – कब तक हम आग लगने के बाद नींद से जागेंगे? कब तक लाशों पर बैठ कर सिर्फ सस्पेंशन का खेल खेला जाएगा? अब वक्त है कि सिस्टम की चुप्पी टूटे और उन लोगों को जवाब देना पड़े जो कुर्सियों पर बैठे रहकर मौत की चुप्पी को अनदेखा करते रहे। वरना कल फिर कोई ICU जलेगा, और फिर कुछ और घरों में रौशनी बुझ जाएगी।
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