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उच्चतम न्यायालय ने 16 साल की देरी को राष्ट्रीय शर्म कहा; सुनवाई तेज हो
SSSanjay Sharma
Dec 04, 2025 11:08:58
Noida, Uttar Pradesh
दिल्ली की एक अदालत द्वारा महिला की याचिका पर फैसला लेने में देरी पर उच्चतम न्यायालय: ये राष्ट्रीय शर्म की बात है, जिसे एसिड पीने के लिए मजबूर किया गया था, उसे विकलांग नहीं माना जाता
उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को दिल्ली की एक अदालत द्वारा उस महिला के मामले में फैसला सुनाने में 16 साल की देरी को 'राष्ट्रीय शर्म' करार दिया, जिसे तेजाब पीने के लिए मजबूर किया गया था और जो अन्य पीड़ितों के समान लाभ पाने के लिए संघर्ष कर रही है।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने सभी उच्च न्यायालयों को देश भर में तेजाब हमले के मामलों से संबंधित लंबित मुकदमों का विवरण चार सप्ताह के भीतर पेश करने का निर्देश दिया। पीठ ने तेजाब हमले की पीड़िता शाहीन मलिक की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर केंद्र और दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग को नोटिस जारी किए गए।
मलिक पर तेजाब हमला अलग था, क्योंकि उन्हें इसे पीने के लिए मजबूर किया गया था। इसलिए उन्हें वो मुआवजा नहीं मिला, जो चेहरे पर तेजाब हमले की पीड़िताओं को मिलता है।
शाहीन ने कहा, "ज्यादातर लोग ऐसे मामलों के बारे में नहीं जानते जिनमें लोगों को तेजाब पीने के लिए मजबूर किया गया। ऐसे अपराध का सामना करने वालों को कोई लाभ नहीं दिया जाता, सिर्फ 3 लाख रुपये का न्यूनतम मुआवजा दिया जाता है। लेकिन उन्हें जीवन भर इलाज करवाना पड़ता है, क्योंकि उनके शरीर में कृत्रिम भोजन नली डाली जाती है, सर्जरी करानी पड़ती है। दुर्भाग्य से उन्हें विकलांगता की श्रेणी में नहीं रखा जाता और वे आगे मुआवजे की मांग भी नहीं कर सकते। उनकी विकलांगता का कोई पैमाना नहीं है।"
शाहीन की वकील शिजा नायर पाल ने कहा, "हमने एसिड अटैक के पीड़ितों, जिन्हें जबरन एसिड पिलाया गया है, की व्याख्या के संबंध में एक याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने सही कहा कि कई पीड़ितों को एसिड पिलाया जाता है, लेकिन विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनयम 2016 के तहत कहा गया है कि केवल एसिड अटैक पीड़ितों पर एसिड फेंकने को ही विकलांग व्यक्ति माना जाएगा। इसलिए जिन लोगों को एसिड पिलाया जा रहा है, उन्हें विकलांग व्यक्ति की श्रेणी से बाहर रखा गया है।"
पीठ ने मलिक के मामले में लंबी देरी को "राष्ट्रीय शर्म" करार दिया, जो 2009 से रोहिणी की एक अदालत में लंबित है।
पीठ ने कहा, "न्याय व्यवस्था का कैसा मजाक! ये बहुत शर्मनाक है। अगर राष्ट्रीय राजधानी इसे संभाल नहीं सकती, तो कौन संभालेगा? ये राष्ट्रीय शर्म है।"
मुख्य न्यायाधीश ने मलिक से जनहित याचिका में ही एक आवेदन दायर करने को कहा, जिसमें ये साफ किया जाए कि मामला अभी तक क्यों समाप्त नहीं हुआ है। उन्होंने मलिक को आश्वासन दिया कि अदालत स्वतः संज्ञान भी ले सकती है।
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