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ताजमहल के पास जिन्नाती मस्जिद: बिल्ली-रूहों का रहस्यमय संसार
SASHAKIL AHMAD
Oct 05, 2025 17:36:53
Agra, Uttar Pradesh
ताजमहल प्रेम की अमर निशानी, सफेद संगमरमर की चमक जो दुनिया भर के पर्यटकों को लुभाती है। लेकिन इस महल के पूर्वी द्वार के ठीक बाहर, यमुना की लहरों की फुसफुसाहट के बीच, एक ऐसी जगह बसी है जो खौफ और रूहानियत का अनोखा संगम है। इस जगह का नाम है 'जिन्नाती मस्जिद। यहां की हवा में ताजमहल की रोमांटिक कहानी से अलग, एक डरावनी सच्चाई भी घुली हुई है। जिन्नों का साया, और उन बिल्लियों का रहस्य जो लोगों के दिलों में भय पैदा कर दे। सुबह की पहली किरणें ताजमहल के गुंबद को छूती हैं, लेकिन पूर्वी गेट पार करते ही माहौल बदल जाता है। संदली मस्जिद, जिसे स्थानीय लोग 'काली मस्जिद' या 'जिन्नाती मस्जिद' कहते हैं, मुगल वास्तुकला का एक नमूना है। यह 17वीं शताब्दि में बनी, जब शाहजहाँ का शासन चरम पर था। लेकिन इसकी दीवारें सिर्फ नमाज़ की नहीं, बल्कि एक दुखद प्रेम कथा और अलौकिक शक्तियों की गवाही देती हैं। क्योंकि यहां की बिल्लियाँ... वो बिल्लियाँ हैं जिन्हें लोग जिन्नों का रूप मानते हैं। इस मस्जिद का इतिहास मुगल बादशाह शाहजहाँ की पहली पत्नी कंधारी बेगम से जुड़ा है। जो कंधार की राजकुमarı थीं। जिनकी शादी 1609 में युवा प्रिंस खुर्रम शाहजहाँ से हुई थी। कंधारी बेगम एक सादगीपूर्ण और रहस्यमयी औरत थीं, जो राजकाज से दूर, एकांतप्रिय, और प्रकृति से गहरा लगाव रखने वाली धार्मिक राजकुमारी थीं। कहा जाता है कि वह बिल्कुल 'क्वीन ऑफ कैट्स' थीं। उन्होंने मस्जिद परिसर में बिल्ली-शावकों के लिए एक आश्रम जैसा स्थान बनाया था, जहां अनाथ बिल्लियाँ पनपतीं। उनकी मृत्यु 1666 में हुई, और शाहजहाँ ने उन्हें यहीं एक अष्टकोणीय मकबरे में दफनाया। जो आज भी मस्जिद के बीचों-बीच खड़ा है। मकबरा सादा है, लेकिन उसकी चुप्पी में बेगम का मिजाज झलकता है। एक ऐसी औरत जो प्रेम की होड़ में न उतरी, बल्कि अपनी रूहानियत में डूब गई। वो रूहानियत आज भी इस जगह पर महसूस होती है। लेकिन यहीं से खौफ की परतें भी खुलती हैं। मस्जिद में आम दिनों में सैकड़ों बिल्लियाँ घूमती नज़र आती हैं। काली, सफेद, धब्बेदार बिल्लियाँ इस मस्जिद की पहचान बन गई हैं। स्थानीय लोग इन्हें 'जिन्नाती बिल्लियाँ' कहते हैं। क्यों? क्योंकि इस्लामी मान्यताओं में जिन्न इंसानों, सांपों या बिल्लियों का रूप धारण कर सकते हैं। मस्जिद का में नमाज पढ़ने वाले मानते हैं कि ये बिल्लियाँ सिर्फ जानवर नहीं, रूहें हैं। रात को वे दीवारों पर घूरती हैं, जैसे कुछ अदृश्य को देख रही हों। कंधारी बेगम का आश्रम तो बहाना था। असल में यह जगह जिन्नों का अड्डा है। एक बुजुर्ग निवासी ताहिर उद्दीन ताहिर ने बताया कि इस मस्जिद को वो काफी समय से देखते आ रहें हैं। उनके पूर्वजों ने भी इस मस्जिद और जिन्नातों के बारे में उन्हें कई कहानियाँ सुनाई हैं। साथ ही खुद उन्होंने भी 40 दिन इस मस्जिद में नमाज़ पढ़कर मनचाही मुराद पाई है। इस मस्जिद का रूहानियत का पहलू भी कम नहीं है। कई श्रद्धालु कंधारी बेगम को संत मानते हैं। उनका मकबरा एक दरगाह जैसा है, जहां लोग मन्नते मांगते हैं। मस्जिद की दीवारों पर उकेरी गई आयतें—'अल्लाह के रहस्यों' की याद दिलाती हैं कि जिन्न भी अल्लाह की सृष्टि हैं, न कि सिर्फ बुराई का प्रतीक। ताजमहल की चमक के पीछे यह छिपा रहस्य हमें सिखाता है—प्रेम की हर कहानी में एक छाया होती है। कंधारी बेगम की तरह, जिन्होंने सादगी में अपनी रूह को अमर कर दिया।
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