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रींगस के भैरू बाबा मंदिर: 600 साल से आस्था का केंद्र
ASAshok Singh Shekhawat
Nov 25, 2025 07:33:01
Sikar, Rajasthan
स्पेशल स्टोरी
रींगस के भैरों बाबा का मंदिर की स्टोरी
भैरू बाबा की आकाशवाणी का चमत्कार, यहीं थमी थीं मूर्ति — 600 साल पुरानी आस्था हो रही है दिन दोगुनी रात चौगुनी रविवार को लगता है मेला साल भर लाखो भक्त भैरो बाबा के दर्शन कर मांगते है मनौतियां
देशभर में प्रसिद्ध रींगस स्थित भैरू बाबा मंदिर का इतिहास आज भी आस्था और चमत्कारों की जीवित मिसाल है। करीब 600 वर्ष पुराना यह मंदिर उस अद्भुत घटना का साक्षी है, जब गायें चराते हुए आए गुर्जर समाज के चरवाहों की झोली में रखी पत्थर की मूर्ति यहीं आकर थम गई… और फिर कभी नहीं हिली। मंदिर कमेटी के पदाधिकारियों के मुताबिक, कालाष्टमी के दिन भैरू बाबा की आकाशवाणी हुई थी। चरवाहों ने जब सुबह मूर्ति उठानी चाही तो वह हिली तक नहीं। तभी आकाशवाणी έγινε— “मैंने ब्रह्महत्या के प्रायश्चित हेतु पृथ्वी लोक की यात्रा इसी स्थान से प्रारंभ की थी… अब मैं यहीं निवास करूंगा।” यही स्थान आज लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।
भैरव अवतार और पौराणिक कथा
कथाओं के अनुसार भैरव, भगवान शिव के पांचवें रुद्र अवतार माने जाते हैं। ब्रह्मा जी के पांचवें मुख की निंदा करने पर शिव के नाखून से उनके पांचवें मुख का छेदन हुआ, जिसके कारण भैरव को ब्रह्महत्या का अभिशाप मिला। मुक्ति के लिए तीनों लोकों की यात्रा की शुरुआत पृथ्वी लोक पर रींगस से मानी जाती है।
चरवाहे पहले जोधपुर के मंडोर में निवास करते थे। वहां से दूदू के पालू गांव, फिर बेनाड़ (जयपुर) होते हुए वे रींगस पहुंचे। तालाब किनारे विश्राम के बाद जब मूर्ति उठानी चाही—यहीं घटा वह दिव्य चमत्कार, और यहीं बन गया भैरू बाबा का स्थाई दिव्य धाम।
मंदिर पुजारी परिवार बताता है कि मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी के दिन भैरव बाबा का जन्म हुआ था। मंदिर के चारों तरफ शमशान होने के कारण हवा से उड़ती भस्म वर्षों तक मूर्ति पर जमती रही और धीरे-धीरे मूर्ति का आकार बढ़ता गया। आज मंदिर चारदीवारी से घिरा है, लेकिन बाबा का दिव्य तेज अब भी वही है।
मंदिर के सामने स्थित सती माता की छतरी भी इतिहास का अनमोल हिस्सा है। इसका निर्माण सन् 1669 ईस्वी में हुआ था। मंदिर की स्थापना इससे लगभग 200 वर्ष पुराना माना जाता है।
पश्चिम दिशा में मुख करके भैरु बाबा आज भी अपने भक्तों की तुरंत सुनवाई करते हैं और लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र बने हुए हैं। वहीं मंदिर के पीछे स्थित भैरु बाबा की पवित्र जोहड़ी भी चमत्कारों से ओत-प्रोत है यहां पर स्नान मात्र से ही बांझ स्त्रियों को संतान प्राप्ति और किसी भी प्रकार की असाध्य बिमारी से छूटकारा मिल जाता है। वैसे तो खाटूश्यामजी आने वाले हर भक्त बाबा के दर पर शीश नवाकर ही आगे बढ़ते हैं लेकिन भैरु बाबा का रविवार को विशेष दिन माना गया है जिस दिन हजारों भक्त बाबा के दर पर पहुंच कर अपनी फरियाद सुनाते हैं।
भैरु बाबा की पूजा-अर्चना सभी कालों से मुक्त कर देती है। बाबा भैरवनाथ को महाकाल के रुप में पूजा जाता है जिसके स्मरण मात्र से ही भय, दोष, रोग आदि से छूटकारा मिलता है।
भैरु बाबा को तत्काल प्रसन्न करने के लिए हर रविवार सैंकड़ों भक्त भैरु बाबा मंदिर परिसर में बनी तिबारियों में दीपदान, भैरव नामावली के पाठ सहित अनेक धार्मिक अनुष्ठान करवाते हैं।
भैरु बाबा का वार्षिक मेला भाद्रपद में भरता है जिसमें लाखों श्रद्धालु बाबा के दरबार मत्था टेकने आते हैं। इसी के साथ वर्षभर में चैत्र नवरात्रि, वैशाख, आश्विन नवरात्रि, माघ माह में भी बाबा के मेले भरते हैं।
मंदिर पुजारी मामराज गुर्जर के अनुसार देश के पूर्व उप राष्ट्रपति भैरु सिंह शेखावत का जन्म भी भैरु बाबा के आशीर्वाद स्वरूप हुआ, पूर्व उपराष्ट्रपति शेखावत की माताजी भैरु बाबा के पुत्र रत्न की प्राप्ति की कामना को लेकर मत्था टेकने आती थी जिनके पुत्र प्राप्ति होने पर भैरु बाबा के नाम पर ही भैरुसिंह नाम रखा गया, जिन्होंने उपराष्ट्रपति, मुख्यमंत्री जैसे उच्च पदों पर आसीन रहे। इसी के साथ चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी भी भैरु बाबा के जीत की कामना लेकर आते हैं और बाबा उनको विजय प्राप्त करवाते हैं। जिसका उदाहरण जयपुर के पूर्व सांसद गिरधारी लाल भार्गव थे जो मतगणना के दौरान भैरु बाबा की शरण में आ जाते थे और जीतने के बाद ही वापस लौटते थे। जयपुर ग्रामीण सांसद राव राजेन्द्र सिंह भी भैरु बाबा के आशीर्वाद स्वरूप ही विजय हुए हैं。
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