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राजस्थान हाई कोर्ट ने साइबर अपराध रोकने के लिए कड़े निर्देश जारी
RKRakesh Kumar Bhardwaj
Nov 28, 2025 16:31:29
Jodhpur, Rajasthan
जोधपुर --राजस्थान हाईकोर्ट ने साइबर क्राइम की बढ़ती रफ्तार पर कड़ा रुख अपनाते हुए राज्य सरकार, पुलिस और बैंकों के लिए विस्तृत निर्देश जारी किए हैं। जस्टिस रवि चिरानिया की एकलपीठ ने जोधपुर के 84 वर्षीय बुजुर्ग दंपती से 2 करोड़ 2 लाख रुपये की ठगी के मामले में दो आरोपियों अदनान हैदर भाई और राहुल जगदीश भाई जाधव की जमानत अर्जी खारिज करते हुए यह रिपोर्टेबल जजमेंट जारी किया। अदालत ने साफ कहा कि साइबर अपराध विशेषकर डिजिटल अरेस्ट जैसे नए रूप अब समाज, अर्थव्यवस्था और कानून-व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा हैं, जिनकी रोकथाम के लिए तत्काल कड़े कदम उठाने जरूरी हैं। मामले के अनुसार आरोपी खुद को मुंबई साइबर पुलिस, ईडी और सीबीआई के अधिकारी बताकर 29 अप्रैल से 8 मई 2025 के बीच बुजुर्ग दंपती को मानसिक रूप से डिजिटल अरेस्ट जैसी स्थिति में रखते रहे। इस दौरान पीड़ितों को 9 अलग-अलग बैंक खातों में कुल 2.02 करोड़ रुपये ट्रांसफर करवाने को मजबूर किया गया। कोर्ट ने रिकॉर्ड से यह तथ्य दर्ज किया कि इनमें से 45 लाख रुपये सीधे दोनों याचिकाकर्ताओं के खातों में पहुंचे, जिसे उनके वकीलों ने भी नकारा नहीं। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि जांच शुरुआती चरण में है वे निर्दोष हैं और एफआईआर में दर्शाई गई पूर्ण राशि उन्होंने नहीं ली। लेकिन सरकारी वकील ने इसे वृद्ध दंपती पर गंभीर आर्थिक हमला बताते हुए कहा कि गिरोह के कई सदस्य अभी तक पकड़े नहीं गए हैं। अदालत ने माना कि बीएनएस की कुछ धाराओं में 7 साल तक की सजा का प्रावधान है और साइबर टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग से होने वाली डिजिटल अरेस्ट जैसी ठगी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसलिए अदालत ने वर्तमान परिस्थितियों में जमानत देने से इंकार कर दिया। इसके साथ ही न्यायालय ने आदेश में साइबर अपराध की भयावहता पर विस्तृत टिप्पणियां कीं। अदालत के अनुसार 2019–2024 के दौरान साइबर वित्तीय धोखाधड़ी की शिकायतें कई गुना बढ़ीं, लेकिन एफआईआर दर्ज होने की दर और फ्रॉड मनी फ्रीज होने के मामलों का प्रतिशत बेहद कम है। कोर्ट ने बताया कि अपराधी कुछ ही मिनटों में चोरी की रकम को कई खातों के जरिये क्रिप्टो में बदलकर विदेश भेज देते हैं, जिससे साधारण पुलिस अधिकारी लेनदेन का ट्रेल पकड़ ही नहीं पाते। इसी स्थिति को सुधारने के लिए हाईकोर्ट ने राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) को निर्देश दिया कि वे भारतीय साइबर क्राइम को-ऑर्डिनेशन सेंटर की तर्ज पर राजस्थान साइबर क्राइम कंट्रोल सेंटर की स्थापना के लिए अधिसूचना जारी करें। यह केंद्र-राज्य में साइबर अपराधों की रोकथाम, जांच और कॉर्डिनेशन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में काम करेगा । साथ ही महानिदेशक साइबर के अधीन विशेष IT इंस्पेक्टर की भर्ती कर केवल साइबर मामलों की जांच कराने का निर्देश दिया गया है, ताकि पारंपरिक पुलिसिंग मॉडल की तकनीकी सीमाएं कम की जा सकें। कोर्ट ने बैंकों और फिनटेक कंपनियों को भी कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि साइबर ठगी के ज्यादातर मामले बैंकिंग सिस्टम के दुरुपयोग के कारण होते हैं। इसलिए सभी बैंक तत्काल प्रभाव से RBI द्वारा विकसित ‘Mule Hunter’ जैसे AI टूल्स का उपयोग करें ताकि म्यूल अकाउंट और संदिग्ध ट्रांजेक्शन समय रहते पकड़े जा सकें। कम या संदिग्ध लेनदेन वाले खातों की KYC दोबारा कराने और डिजिटल साक्षरता कम वाले ग्राहकों के लिए इंटरनेट बैंकिंग व यूपीआई पर नियंत्रित लिमिट लगाने जैसी सिफारिशें भी अदालत ने कीं। सबसे महत्वपूर्ण निर्देश डिजिटल अरेस्ट से बचाव से जुड़े हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि यदि किसी बुजुर्ग या संवेदनशील ग्राहक के खाते से अचानक बड़ा लेनदेन होता है, तो बैंक 48 घंटे के भीतर उनके घर जाकर भौतिक सत्यापन करें। साथ ही ऐसे खाताधारकों को चिह्नित कर उनकी काउंसलिंग व जागरूकता अभियान चलाए जाएं, खासकर तब जब फिक्स्ड डिपॉजिट अचानक तोड़ी जा रही हों। अदालत ने डिजिटल उपकरणों और सिम कार्ड पर नियंत्रण बढ़ाने के भी निर्देश दिए। राज्य में सभी डिजिटल डिवाइस—नए और सेकंड हैंड—की बिक्री व पंजीकरण अब DG साइबर की निगरानी में ऑनलाइन प्रणाली के तहत होगा। किसी एक व्यक्ति के नाम पर तीन से अधिक सीम कार्ड जारी करने पर सख्त SOP बनाए जाने और सभी कॉल सेंटर/बीपीओ को DG साइबर के साथ अनिवार्य पंजीकरण करने का आदेश दिया गया गया है। गिग वर्कर्स—जैसे ओला, उबर, स्विगी, जोमैटो डिलीवरी पार्टनर—के लिए अनिवार्य पुलिस वेरिफिकेशन, कॉमन यूनिफॉर्म, QR-ID कार्ड और डबल रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था भी अनिवार्य की गई है, ताकि उनकी पहचान और ट्रैकिंग सुनिश्चित हो सके। बच्चों की सुरक्षा पर भी हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की। गृह विभाग को शिक्षा विभाग और अभिभावक संगठनों के साथ मिलकर 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए स्कूलों में मोबाइल फोन, ऑनलाइन गेम और सोशल मीडिया के उपयोग पर विस्तृत SOP बनाने को कहा गया है। साथ ही डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 और नियम 2025 का कड़ाई से पालन और सभी सरकारी विभागों में डिजिटल लेनदेन का मासिक ऑडिट कराने का आदेश भी दिया गया। अदालत ने राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को जिला और तहसील स्तर पर साइबर सिक्योरिटी अवेयरनेस सेल बनाने तथा IT विशेषज्ञों और साइबर कानून विशेषज्ञ वकीलों की मदद से जागरूकता कार्यक्रम चलाने की सलाह दी, ताकि समाज को साइबर अपराधों से बचाया जा सके。
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