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राजनीति के दखल से तेंदुए मामले में कार्रवाई रुकी, वन विभाग ने दी चुप्पी
ACAshish Chauhan
Nov 22, 2025 10:54:11
Jaipur, Rajasthan
जयपुर- जयपुर में तेंदुए को लाठी-डंडों से पीटकर जान से मारने के मामले में वन विभाग ने कार्रवाई रोक दी है. बताया जा रहा है कि विधायक के दखल के बाद कार्रवाई रूक गई. इस घटना के बाद पहाड़ी से तेंदुए का शव बरामद किया था, लेकिन इसके बाद अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई. अब इस मामले में राजनीतिक दखल के बाद वन अधिनियमों के तहत कार्रवाई नहीं हो पाई. अरण्य भवन में गुहार और कार्रवाई थमी - नाहरगढ़ अभयारण्य के गुर्जर घाटी में तेंदुए को लाठी डंडों से पीटने के मामले में एक विधायक के दखल के बाद कार्रवाई रूक गई है. सूत्रों के मुताबिक विधायक ने अरण्य भवन में 1 वरिष्ठ महिला अफसर से मुलाकात की. इसके बाद कार्रवाई को तुरंत रोक दिया गया. वन विभाग के फील्ड अफसरों ने इस मामले में शख्स को हिरासत में भी लिया. चर्चा तो यहां तक है कि इस शख्स का मेडिकल तक करवा लिया गया. लेकिन इसके बावजूद उस शख्स को छोड़ दिया गया. वन अधिनियम 1972 के तहत जंगली जानवर पर कोई हमला नहीं कर सकता है. यदि इसका उल्लंघन होता है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती है. गुर्जर घाटी में राजनीतिक दखल के बाद कार्रवाई रूक गई. वन विभाग की टीम ने 19 नवंबर को नाहरगढ़ अभयारण्य की पहाड़ी से तेंदुए का शव बरामद किया था. हालांकिं रेंजर रघुवेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा है कि वन अधिनियमों के तहत कार्रवाई होगी, लेकिन मामला दर्ज करने के बावजूद अब तक आरोपी पकड़ से दूर है. क्या था मामला- 8 दिन पहले नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य की तलहटी से गुर्जर घाटी की रिहायशी इलाके के मकान में रात को तेंदुआ घुस आया. इस दौरान तेंदुए ने दो लोगों पर हमला कर दिया. जिसके बाद लोगों ने कंबल ओढ़ाकर तेंदुए पर डंडे-लाठी से हमला कर दिया. दो दिन बाद इसी तेंदुए का शव पहाड़ी पर मिला. जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उसमें खुलासा हुआ कि तेंदुए को इतना पीटा गया कि उसकी पसलिया तक टूट गई. सिर पर गंभीर चोट थी, जिससे उसकी मौत हुई. इससे यह स्पष्ट होता है कि इसी हमले में तेंदुए की मौत हुई. वन नियमों पर राजनीति हावी? वन्यजीवों पर हमला करने से वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 का उल्लंघन होता है. इस अधिनियम की धारा 9 स्पष्ट रूप से कहती है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी जंगली जानवर का शिकार नहीं कर सकता. इस अधिनियम के उल्लंघन के लिए दंड निर्दिष्ट हैं, और यदि अदालत दोषी पाती है तो व्यक्ति को कैद और या जुर्माना हो सकता है. लेकिन सवाल यह है कि क्या वन अधिनयों पर राजनीतिक दखल हावी पड़ रहे हैं. ऐसे में जंगल के जानवरों की सुरक्षा कैसे हो पाएगी? नोट-इस खबर की फीड ओएफसी से स्लग से भेजी गई है।
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