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पुष्कर के अटमटेश्वर महादेव मंदिर: धरती के नीचे छिपा दिव्य मंदिर और शिव लीला
ADAbhijeet Dave
Dec 01, 2025 10:08:32
Ajmer, Rajasthan
पुष्कर के धरती-तल में बसे दिव्य अटमटेश्वर महादेव: शिव की अद्भुत लीला और प्राचीन इतिहास का अनोखा संगम
राजस्थान की पावन तीर्थनगरी पुष्कर अपने आध्यात्मिक वैभव और प्राचीन मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है. इसी नगर के हृदय में स्थित है अटमटेश्वर महादेव मंदिर—एक ऐसा दिव्य और रहस्यमयी स्थल, जिसके अस्तित्व की कहानी स्वयं भगवान शिव की अद्भुत लीला से जुड़ी मानी जाती है. सावन के महीने में जब पूरा देश भोले बाबा की भक्ति में डूब जाता है. तब पुष्कर का यह प्राचीन मंदिर श्रद्धालुओं से भर उठता है. कहा जाता है कि पुष्कर की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं मानी जाती, जब तक अटमटेश्वर महादेव के दर्शन न कर लिए जाएं.
धरती के भीतर छिपा दिव्य मंदिर
वराह घाट से कुछ ही दूरी पर स्थित यह अनोखा मंदिर जमीन से लगभग 10 फीट नीचे बना हुआ है. नीचे जाने के लिए बनी सीढ़ियां और उसके बाद घुमावदार मार्ग श्रद्धालुओं में रहस्य और भक्ति दोनों का भाव जगाते हैं. गर्भग्रह में पहुंचने पर भक्तों को शिवलिंग के साथ माता पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदी की मनोहर प्रतिमाएं भी दिखाई देती हैं. स्थानीय लोग भगवान अटमटेश्वर को नगर सेठ के नाम से भी पुकारते है. और मानते है. कि उनकी कृपा दूर-दूर से आने वाले भक्तों पर बरसती रहती है.
जब शिव ने दिखाई कपाल लीला
मंदिर से जुड़े पुराणिक प्रसंग भी अत्यंत रोचक हैं. मंदिर के पुजारी गुलाब गिरी महाराज बताते है. कि सतयुग में जब ब्रह्मा ने सृष्टि रचना हेतु भव्य यज्ञ आयोजित किया, तब भूलवश भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया. यज्ञ आरंभ होने ही वाला था कि एक विचित्र रूप धारण किए भगवान शिव वहां पहुंचे, पर द्वारपालों ने उन्हें प्रवेश नहीं दिया. शिव ने अपना कपाल यज्ञ द्वार पर रख दिया और सरोवर स्नान के लिए चले गए. द्वारपालों ने जब उस कपाल को हटाने की कोशिश की, तो वह उछलकर दूर गिरा और देखते ही देखते वहां हजारों कपाल उत्पन्न हो गए. यज्ञ स्थल पर अफरा-तफरी मच गई और सभी देवता ब्रह्मा से सहायता की प्रार्थना करने लगे. ध्यानमग्न होने पर ब्रह्मा को ज्ञात हुआ कि यह सब शिव की ही दिव्य लीला है.
शिव को मिला विशिष्ट स्थान
ब्रह्मा ने चंद्रशेखर स्तोत्र का पाठ कर भगवान शिव से क्षमा मांगी और उन्हें यज्ञ में सर्वोच्च स्थान प्रदान किया. यही नहीं, यह संकल्प भी लिया कि आगे से हर यज्ञ में प्रथम आहूति भगवान शिव को ही दी जाएगी. ब्रह्मा के निवेदन पर महादेव पुष्कर की रक्षा हेतु अटमटेश्वर स्वरूप में वहीं अवस्थित हो गए. सावन के महीने में यहां विशेष पूजा-अर्चना, श्रृंगार और नगर भ्रमण कार्यक्रम का आयोजन होता है. भगवान अटमटेश्वर महादेव जब नगर भ्रमण पर निकलते हैं. तो पुष्करवासी पुष्पवर्षा से उनका भव्य स्वागत करते हैं. इस अवसर पर भक्तों में अद्भुत उत्साह और श्रद्धा देखने को मिलती है.
इतिहास में कई उतार-चढ़ाव
अटमटेश्वर महादेव मंदिर के ठीक ऊपर सर्वेश्वर महादेव मंदिर स्थित है, जिसका निर्माण 1100 ईस्वी में चौहान वंश के राजा अर्णोराज ने कराया था. मुगल काल में औरंगजेब के शासन के दौरान पुष्कर के अनेक मंदिरों की तरह इसे भी क्षति पहुंची, लेकिन मराठा काल में इसका पुर्ननिर्माण किया गया.
मंदिर के पुजारी गुलाब गिरी महाराज बताते है. कि सावन माह में यहां विशेष तौर पर पूजा, रुद्राभिषेक और श्रृंगार के लिए भक्तों की लंबी कतारें लग जाती हैं. हर कोई महादेव की कृपा पाने के लिए उत्सुक रहता है.
आस्था, इतिहास और दिव्यता का अद्भुत संगम—अटमटेश्वर महादेव मंदिर आज भी पुष्कर की आध्यात्मिक पहचान का अभिन्न हिस्सा है और आने वाले भक्तों को शिव की अनंत लीला का साक्षात्कार कराता है.
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