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क्या टेलिंग डैम की सुरक्षा से बचेगा हमारा पर्यावरण?
Dhanbad, Jharkhand
एंकर -- देश मे बॉक्साइट , लोहा अयस्क,सोना तांबा और स्टील समेत अन्य खनिजों के माइनिंग व उत्पादन के दौरान भारी मात्रा में हानिकारक तत्व निकलते हैं।उत्पादन का 95 से 97 फीसदी अविशिष्ट पदार्थ ही होते हैं। भारी मात्रा में निकलने वाले इन अवशिष्ट तत्वों को पर्यावरण संरक्षण करने के उद्देश्य के तहत टेलिंग डैम के जरिए इन्हें सुरक्षित रखा जाता है।टेलिंग डैम को बेहतर तरीके से सुरक्षित नहीं रखने पर पर्यावरण को नुकसान तो पहुंचाते ही जान माल कि क्षति भी होती है।समय समय से पर इसकी मॉनिटरिंग की जाती है।टेलिंग डैम को और बेहतर और सुरक्षित कर सके।इसके आईआईटी आईएसएम खनिज उत्पादन करने वाली कंपनियों को गुर सिखाने में लगें है।टाटा स्टील,हिंडालको, जेएस डब्ल्यू विजय नगर वर्क,राजस्थान मिलनल डेवलेपमेंट कॉर्पोरेशन,कोलकाता एसके एंटरप्राइजेज समेत अन्य कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल हुए।आईआईटी आईएसएम ,एनआईटी पटना ,बीआईटी सिंदरी समेत अन्य आईआईटी के रिसर्चर एवं प्रोफेसर के द्वारा टेलिंग डैम के सुरक्षा के गुरु सिखा रहें ताकि पर्यावरण का संरक्षण किया जा सके।भारत सरकार की शिक्षा मंत्रालय के द्वारा 'ज्ञान' के तहत जानकारी दी जा रही है। यूएसए एरिजोना एकोम के सीनियर जीओ टेक्निकल इंजीनियर डॉक्टर विभूति भूषण पांडा फॉरेन एक्सपर्ट के रूप में शामिल हुए हैं। फॉरेन एक्सपर्ट टेक्निकल इंजीनियर डॉक्टर विभूति भूषण पांडा ने जानकारी देते हुए बताया कि माइनिंग के वेस्ट प्रोडक्ट को सेव करने संबंधित जानकारी कंपनी के प्रतिनिधि को दी जा रही है। बेहतर स्टोरेज के लिए जानकारी दी जा रही है। उन्होंने कहा कि कॉपर में 97 फीसदी वेस्ट होता है।इस वेस्ट को स्लेरी के रूप में एक पॉन्ड में जमा कर दिया जाता है।जिसे हम डैम बनाते हैं।इसे ही टेलिंग डैम कहा जाता है।इस टेलिंग डैम का स्ट्रक्चर सेफ होना चाहिए।डैम फेल करने पर यह स्लेरी पर्यावरण में बिखर जाता है।जो पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदायक हैं।विकसित देश एएस,कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहतर उपाय कर रहें हैं। पर्यावरण में पानी,मिट्टी और हवा होती है।बड़े बड़े टेलिंग डैम पूर्व में फेल हो चुके हैं।डैम फेल ना हो पर्यावरण को नुकसान ना पहुंचे इसके लिए प्रयास किए जा रहें हैं।डैम को सैफ रखने के लिए ग्लोबल स्टैंडर्ड भी बना हुआ है।ग्लोबल स्टैंडर्ड की जानकारी कम्पनियों के प्रतिनिधि को दी जा रही है।भारत भी ग्लोबल स्टैंडर्ड का पालन कर रहा है। स्टेटिक लिक्विफेक्शन डैम के फेल होने के कारण हैं।टेलिंग के मैटेरियल से डैम बनता है।जिसमें पानी भी रहता है।टेलिंग डैम बनने में 40 से 45 साल तक लगता है।नीचे पानी का प्रेशर अधिक हो जाता है।जिस कारण डैम फेल होते हैं।अंदर की मिट्टी पानी में घुलकर बाहर निकल जाता है।कनाडा में एक डैम फेल हुआ,इस डैम का तीन फीट ही लेयर था।जिसके कारण यह कमजोर था।एक टेलिंग डैम 5 माइल लम्बा और चौड़ा होता है।इसकी लगातार मॉनिटरिंग की जरूरत है।विकसित देशों की तकनीक के बारे में बताया जा रहा है।हम भारत और अन्य देशों की जलवायु अलग अलग होती है।इसलिए दूसरे देश की तकनीक कोई अन्य देश इस्तेमाल नहीं कर सकता है। आईआईटी आईएसएम सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रो शरत कुमार दास ने कहा कि खनिज उत्पादन करने वाली कंपनियों को इस कार्यक्रम से काफी फायदा होने वाला है।वहीं खनिज उत्पादन करने वाली कंपनियों के प्रतिनिधि ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम से एक अच्छी जानकारी दी जा रही है।जिससे कि पर्यावरण को बेहतर तरीके से संरक्षित किया जा सकता है।
बाइट -- डॉक्टर विभूति भूषण पांडा(फॉरेन एक्सपर्ट टेक्निकल इंजीनियर)
बाइट -- प्रो0शरत कुमार दास(आईआईटी आईएसएम सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट)
बाइट -- शुभक्षी कुमार(टाटा स्टील के प्रतिनिधि)
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