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करौली की सांझी परंपरा: 250 साल से जीवंत, मदन मोहन जी मंदिर में रंग भरे
ACAshish Chaturvedi
Sept 13, 2025 05:45:41
Karauli, Rajasthan
करौली नगरी में आज भी जीवंत है अनोखी सांझी परंपरा,
रंगों के माध्यम से सजाए जाते हैं ब्रजमंडल के स्वरूप,
जिला करौली
आशीष चतुर्वेदी
एंकर इंट्रो - लघु वृंदावन के नाम से प्रसिद्ध करौली नगरी आज भी अपनी अनूठी परंपराओं को जीवंत करती है। इन्ही परंपराओं में शामिल है सांझी की यह परंपरा ।करीब 250 साल से चली आ रही इस परंपरा में पितृपक्ष के 16 दिनों तक ब्रजमंडल के विभिन्न स्वरूपों को रंगों से भरा जाता है । ब्रजमंडल के वन, धार्मिक स्थल और श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं को जीवंत करती यह सांझी परंपरा आज भी करौली में बनाई जाती है । हालांकि परंपरा के स्वरूप में कुछ कमी आई है और पहले घर-घर बनाई जाने वाली सांझी अब मदन मोहन जी मंदिर तक ही सिमट गई है। कहते हैं कि मदन मोहन जी के विग्रह के करौली आगमन के साथ ही इस परंपरा की शुरुआत हुई थी और जब से यह परंपरा लगातार मदन मोहन जी मंदिर में चली आ रही है । सांझी की खास बात यह है कि इसके गिने-चुने कलाकार ही रंगों से विभिन्न स्वरूपों को सजाते हैं और बिना किसी ब्रश के इसमें रंग भरते हैं। कलाकार अपने हाथों की चुटकियों से इसमें रंगों को भरते है । पितृपक्ष के 16 दिनों तक ब्रजमंडल के विभिन्न स्वरूप और कृष्ण की लीलाओं को रंगों के माध्यम से सजाया जाता है जिसे देखने के लिए आज भी मदन मोहन जी मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है । पितृ पक्ष के 16 दिनों तक अलग-अलग दिन 84 कोस की परिक्रमा में आने वाले प्रमुख स्थल और भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का इसमें चित्रण किया जाता है। श्राद्ध पक्ष के शुरू होते ही सांझी के कलाकार इसको बनाने की शुरुआत कर देते हैं । कलाकार विजय भट्ट ने बताया कि एक मान्यता के अनुसार सांझी की शुरुआत स्वयं राधा जी ने भगवान कृष्ण की स्मृति में पितृपक्ष के दौरान की थी और तभी से यह परंपरा बृज सहित उसके आसपास के क्षेत्र में आज भी जीवंत है । इतिहासकार वेणु गोपाल शर्मा ने बताया कि करौली में सांझी परंपरा की शुरुआत राधा मदन मोहन जी महाराज के विग्रह के करौली आगमन के साथ हुई । करीब 250 साल पहले उनकी स्थापना के बाद से सांझी बनाने की शुरुआत हुई। हालांकि पहले परंपरा घर-घर निभाई जाती थी लेकिन अब मदन मोहन जी मंदिर में ही विशेष रूप से इसको तैयार किया जाता है। पितृपक्ष के 16 दिनों में अलग-अलग दिन अलग-अलग स्वरूप को रंगों के माध्यम से भरा जाता है जिसमें मधुबन , तालवन, कुमोदवन, बहुलाबान, शांतनु कुंड , राधा कुंड, कुसुम सरोवर, बरसाना और नंद गांव जैसे स्थलों को रंगों से संजोया जाता है । साथ ही राधा कृष्ण की युगल झांकी और मथुरा वृंदावन के स्वरूप भी इसमें जीवंत किए जाते हैं। करौली मे सांझी परंपरा धार्मिक आस्था ही नहीं बल्कि बृज संस्कृति की भी पहचान है जो हर साल इस संस्कृति को पितृपक्ष में जीवंत करती है।
बाइट - वेणुगोपाल शर्मा , इतिहासकार
आशीष चतुर्वेदी
8769912378
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