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डीडवाना में मोहर्रम: हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मातमी जुलूस!
Nagaur, Rajasthan
डीडवाना : कर्बला के शहीद हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मातमी पर्व मोहर्रम संपन्न
ढोल-ताशों की मातमी धुनों के साथ मोहर्रम संपन्न
डीडवाना में अकीदमंद लोगो ने 5 ताजियों की जियारत कर दुआएं मांगी
एंकर - डीडवाना में भी आज कर्बला के शहीद हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मातमी पर्व ढोल-ताशों की मातमी धुनों के साथ मोहर्रम संपन्न डीडवाना के सभी 5 मोहर्रम सुपुर्दे ऐ खाक शहर में न्यारियो , पठानों सैयदान धोबी और व्यापारियों के मोहल्लो से निकलने वाले सभी ताजियो को ढ़ोल-ताशों की मातमी धुनों के साथ गुदड़ी बाजार होकर सदर बाजार से नागौरी गेट लाया गया जहा डीडवाना के सभी अखाड़ो के अध्यक्ष ,करतबबाजो सहित प्रशासनिक अधिकारीयो का माल्यार्पण कर साफा बाँध कर समान किया गया मोहर्रम को देखने के लिए हजारो लोगो की भीड़ उमड़ी ढ़ोल-ताशों की मातमी धुनों के साथ युवकों ने ''या अली-या हुसैन के नारे लगाकर वही करतब बाजो ने अपनी कला का प्रदर्शन किया मोहर्रम का त्यौहार धार्मिक रस्मोरिवाज के साथ अदा किया गया गोरतलब है की इमाम हुसेन के पिता हज़रतअली का सम्पूर्ण परिवार याजिद की सेना से जंग लड़ते हुवे शहीद हो गए इस शहीद दिवस पर ताजिये के रूप में हजरत इमाम हुसैन के मकबरे के रूप में प्रतीक मानते ह डीडवाना में भी पांच ताजिये प्रतिवर्ष की भांति निकाले अकीदमंद लोगो ने ताजियों की जियारत कर दुआएं मांगी गई।10वीं मुहर्रम यानी ‘आशूरा’ के दिन ढोल और ताशे की मातमी धुनों के साथ ताजियों का जुलूस निकाला जाता है और अंत में कर्बला पर दफन किया । यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि हजरत इमाम हुसैन की सच्चाई, न्याय और बलिदान की गाथा का दृश्य चित्रण होता है।
भारत जैसे बहुधार्मिक देश में मुहर्रम की पहचान केवल मुस्लिम पर्व तक नहीं रही। बल्कि हिंदू समुदाय के लोग भी ताजिए में गहरी आस्था रखते हैं। कई क्षेत्रों में हिंदू लोग ताज़िए को कंधा देते हैं, ढोल और ताशे बजाने में मुस्लिम धर्मावलंबियों के साथ जुगलबंदी करते है तो कुछ जगह ताजिए के आगे दीप जलाते हैं।
डीडवाना में भी ताजिए के जुलूस के दौरान सभी धर्मों के लोग इसे सम्मानपूर्वक नमन करते हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि हजरत इमाम हुसैन का बलिदान किसी मजहब तक सीमित नहीं, बल्कि हर इंसान की अंतरात्मा से जुड़ा हुआ है।
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