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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: डीएनए टेस्ट पर रोक
SSSHAILENDAR SINGH THAKUR
FollowJul 13, 2025 07:05:09
Bilaspur, Chhattisgarh
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक चर्चित मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने कोरबा निवासी सीनियर एडवोकेट श्यामल मल्लिक की उस अपील को खारिज कर दिया है। जिसमें उन्होंने डीएनए टेस्ट कराने के फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। यह मामला उस समय चर्चा में आया था, जब 37 वर्षीय महिला वकील ने अपने सीनियर एडवोकेट पर जूनियर के रूप में काम करने के दौरान शारीरिक शोषण का आरोप लगाया।महिला का दावा है कि इस संबंध के परिणामस्वरूप उसने एक बच्चे को जन्म दिया और अब वह बच्चे के जैविक पिता की पुष्टि के लिए डीएनए परीक्षण चाहती है। महिला की याचिका पर फैमिली कोर्ट ने 8 अक्टूबर 2024 को डीएनए जांच को अनुमति दे दी थी। इसके खिलाफ एडवोकेट मल्लिक ने हाईकोर्ट में से अलग-अलग याचिकाएं दाखिल कर इस आदेश को चुनौती दी थी। पहले चरण में हाईकोर्ट ने आंशिक राहत देते हुए कहा था कि डोएनए टेस्ट का निर्णय दोनों पक्षों के साक्ष्य दर्ज होने के बाद किया जाए। हालांकि, याचिकाकर्ता ने बाद में एक नई याचिका दाखिल कर फिर से फैमिली कोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह अधिकार क्षेत्र पहले ही तय हो चुका है और फैमिली कोर्ट इस मामले में पूर्ण रूप से सक्षम है। हाईकोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि याचिकाकर्ता ने स्वयं 4 जुलाई 2024 को डीएनए जांच के लिए ब्लड सैंपल दिया था। जिससे यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने जांच की प्रक्रिया को स्वीकार किया था। इसके बावजूद तथ्यों को छुपाकर दोचारा याचिका दाखिल करवा न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग के रूप में देखा गया। हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकतों के सभी मुद्दे पहले ही तय हो चुके हैं और कोई बया कानूनी आधार प्रस्तुत नहीं किया गया है।इसलिए याचिका को खारिज किया जाता है। इसके साथ ही पहले दी गई अंतरिम राहत को भी समाप्त कर दिया गया है।दरअसल, महिला में पैमिली कोर्ट में यह तर्क दिया कि उसकी बच्ची नाबालिक है। इसलिए उसके बॉयोलॉजिकल पिता की जानकारी होना जरूरी है। ताकि, उसके पिता का अधिकार मिल सके। महिला का यह मी आरोप है कि जूनियर के तौर पर काम करने के दौरान एडवोकेट में उनका यौन शोषण किया। कोर्ट में सुनवाई के दौरान यह बात भी सामने आई कि यह मामला केवल एक विवादित पितृत्व का नहीं बल्कि न्यायिक पेशे की मर्यादा महिला वकीलों की गरिमा और नैतिक जिम्मेदारियों का भी प्रश्न है। जहां एक ओर महिला वकील अपने अधिकार और बच्चे के भविष्य के लिए संघर्ष कर रही है।
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