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बेगूसराय के सिमरिया गंगा तट पर कल्पवास मेले का उद्घाटन, श्रद्धालुओं की भारी भीड़
JCJitendra Chaudhary
Oct 08, 2025 02:48:59
Begusarai, Bihar
जितेन्द्र कुमार बेगूसराय
एंकर बिहार का आध्यात्म एवं मोक्षधाम तथा मिथिला के दक्षिणी प्रवेश द्वार बेगूसराय के सिमरिया में पावन गंगा तट पर एशिया प्रसिद्ध कार्तिक कल्पवास मेला का शुरुआत हो चुका है। इस दौरान बेगूसराय के डीएम तुषार सिंगल एवं एसपी मनीष ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर मेला का उद्घाटन किया। इस डीएम ने कहा कि सिमरिया सिर्फ बेगूसराय ही नहीं, देश का धरोहर है। आदिकाल से ही सिमरिया धाम का अपना पौराणिक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रहा है। डीएम ने कहा कि जिला प्रशासन 7 अक्टूबर से 17 नवंबर तक आयोजित कल्पवास मेले में आने वाले सभी श्रद्धालुओं एवं साधु-संतों की सेवा के लिए तैयार है। हम तत्पर हैं, उन्हें किसी भी प्रकार की असुविधा नहीं होगी। इसके लिए सभी प्रयास किए जा रहे हैं। विधि-व्यवस्था के लिए पर्याप्त संख्या में मजिस्ट्रेट एवं पुलिस पदाधिकारियों की प्रतिनियुक्ति की गई है। हमारे यहां अतिथि देवो भवः की परंपरा रही है।इसलिए बाहर से आने वाले कल्पवासियों, साधु-संतों और श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की असुविधा नहीं होने दी जाएगी। सिमरिया के पावन तट पर कल्पवास मेले की गौरवशाली परंपरा रही है। कल्पवास की परंपरा का महाप्रवाह अनवरत चलना, इसका संरक्षण और संवर्द्धन करना हम सबका दायित्व है। आपको बता चले कि कल्पवास करने के लिए पिछले आठ दिनों से देश के विभिन्न हिस्सों से साधु-संतों का आना जारी है। आज से लेकर अगले 42 दिन से अधिक समय तक श्रद्धालु गंगा स्नान के साथ श्रीमदभागवत, कार्तिक मास महात्म्य, रामायण पाठ और मिथिला महात्म्य आदि का श्रवण कर भक्ति में लीन रहेंगे। कल्पवास के दौरान कार्तिक महात्म्य और भागवत कथा के साथ स्वामी चिदात्मन जी के नेतृत्व में कवि महर्षि वाल्मीकि जयंती से 42 दिनों तक चलने वाले कल्पवास की शुरुआत हो गई है। यहां सिर्फ मिथिलांचल ही नहीं, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, भूटान और नेपाल के 50 हजार लोग पर्ण कुटीर बनाकर कल्पवास करते हैं। इसके साथ ही 200 से अधिक खालसा लगाया जाता है। कहा जाता है कि सिमरिया गंगा तट पर आदिकाल से कल्पवास की परंपरा रही है। हिंदू धर्म शास्त्र में गंगा का काफी महत्व है। तथा सिमरिया में गंगा उत्तर से पूरब वाहिनी होती है। राजा परीक्षित को भी श्राप से उद्धार के लिए सिमरिया गंगा तट पर कल्पवास करना पड़ा था। जनक नंदिनी सीता जब विवाह के बाद अपने ससुराल अयोध्या जा रही थी तो उनके पांव पखारने के लिए राजा जनक ने मिथिला की सीमा सिमरिया में ही डोली रखने को कहा था। तब राजा जनक ने सिमरिया पहुंचकर गंगा के किनारे य yajna और कार्तिक मास में कल्पवास किया था, तभी से यहां कल्पवास की परंपरा चल रही है। इस जगह के प्रसिद्धि का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आजादी के बाद देश में गंगा नदी पर सबसे पहला पुल यहां बनाया गया। इस दौरान साधु संत ने कहते हैं कि देश भर में तीन जगह अनादि काल से ही कल्पवास की परंपरा चली आ रही है। इसमें हरिद्वार में बैशाख माह में, प्रयागराज में माघ माह तथा आदि कुंभ स्थली सिमरिया धाम में कार्तिक माह में कल्पवास के आयोजन की परंपरा है। देश,काल और समय की परिस्थिति का ख्याल रखना हमारी परंपरा रही है। परंपराओं का पालन करते हुए कल्पवास के पौराणिक तथा आध्यात्मिक परंपरा का पालन करना चाहिए।। यह सिद्ध स्थान है और सदियों से लोग यहां आकर एक महीने तक का कल्पवास करते हैं। इस दौरान साधु संत मौनी बाबा 40 वर्षों से लगातार यहां आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि सिमरिया कल्पवास इसलिए हुआ के सालों भर हम अपने गृहस्थ जीवन के प्रपंच में लगे रहते हैं। इसलिए एक महीने तक एकांतवास सिमरिया में जाकर कल्पवास करते हैं। यहां भगवान का भजन-कीर्तन करते हैं। कल्पवास का आध्यात्मिक और साइंटिफिक महत्व है। उन्होंने कहा है कि सरकार के द्वारा अच्छी सुविधा दी गई है। लेकिन उन्होंने सरकार से जरूर मांग किया है कहा है कि जितने भी कल्पवासी यहां पर कल्पवास करने आ रही है उनका राशन मिलना चाहिए। उन्होंने कहा है कि गंगा में स्नान, सात्विक भोजन, सात्विक विचार रहता है, इससे शरीर स्वस्थ रहता है।
बाइट तुषार सिंगला डीएम बेगूसराय
बाइट मौनी बाबा
बाइट श्रद्धालु
बाइट श्रद्धालु
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