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भागवत: RSS विश्व का अनोखा संगठन, देश-सेवा में क्रांतिकारी योगदान
RSRAhul Sisodia
Nov 08, 2025 14:46:14
Noida, Uttar Pradesh
मुसलमानों में भी वतन की मुट्ठी भर मिट्टी जब तक जनाजे में नहीं पड़ती तब तक जन्नत नहीं नशीन होती ।- मोहन भागवत, संघ शताब्दी पर बैंगलोर में आज अपने द्वितीय व्याख्यान में ।
आरएसएस पूरे विश्व का सबसे अनोखा संगठन, भारत समेत कई देशों में कर रहा समाजसेवी कार्य: मोहन भागवत
बेंगलुरु, 8 नवंबर (आईएएनएस)। कर्नाटक के बेंगलुरु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के दो दिवसीय व्याख्यानमाला के पहले दिन शनिवार को सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने संघ को पूरे विश्व का सबसे अनोखा संगठन बताया है। उन्होंने कहा कि आज संघ भारत समेत कई देशों में समाजसेवी कार्य कर रहा है。
आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बेंगलुरु में 'संघ की यात्रा के 100 वर्ष पूरे होने पर नए क्षितिज व्याख्यान श्रृंखला का उद्घाटन किया। विश्व संवाद केंद्र कर्नाटक द्वारा आयोजित इस सत्र में संघ के विकास और अपनी शताब्दी वर्ष की ओर बढ़ते भविष्य की दिशा के बारे में जानकारी दी गई。
उन्होंने कहा, "आरएसएस के समर्थन या विरोध में आपकी जो भी राय हो, वह तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए, धारणा पर नहीं, इसलिए जब हमने अपने सौ वर्ष पूरे किए तो सोचा गया कि देश में चार जगहों (दिल्ली, बेंगलुरु, मुंबई, कलकत्ता) पर ऐसी व्याख्यान श्रृंखला आयोजित की जाए।"
उन्होंने कहा, "इसी जरूरत को देखते हुए संघ की कल्पना की गई और संघ को लागू किया गया। हमारे पास आक्रमणों का एक लंबा इतिहास रहा है और युद्ध के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करने का अंतिम प्रयास 1857 में हुआ था। यह एक अखिल भारतीय प्रयास था।"
डॉ. मोहन भागवत ने कहा, "कुछ लोगों ने कहा कि यह समय की बात है, इस लड़ाई में हम असफल रहे, हमें फिर से लड़ना होगा। हमें युद्ध जारी रखना होगा। हम इस लड़ाई में असफल रहे, हमें तैयारी करनी होगी और फिर से लड़ना होगा। यह सिलसिला 1945 तक चलता रहा और सुभाष बाबू कथित तौर पर विमान में लगी आग की दुर्घटना में मारे गए। दो साल में हमें आजादी मिल गई।"
उन्होंने कहा, "सबसे पहले हमें संघ के बारे में जानना चाहिए। संघ के कई शुभचिंतक भी संघ को किसी विशेष परिस्थिति की प्रतिक्रिया बताते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। संघ का जन्म प्रतिक्रिया या विरोध से नहीं हुआ है। संघ हर समाज की एक अनिवार्य आवश्यकता को पूरा करने के लिए है।"
डॉ. मोहन भागवत ने कहा, "भारत तभी विश्व गुरु बनेगा जब वह दुनिया को यही अपनेपन का सिद्धांत सिखाएगा। हमारी परंपरा 'ब्रह्म' या 'ईश्वर' कहती है, उसे आज विज्ञान 'यूनिवर्सल कॉन्शसनेस' कहता है।"
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RSRAhul Sisodia
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