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नोटबंदी के दौरान पुराने नोट स्वीकारने पर RBI प्रतिबन्ध कायम: राजस्थान HC
RKRakesh Kumar Bhardwaj
Dec 22, 2025 17:32:11
Jodhpur, Rajasthan
जोधपुर--राजस्थान हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने नोटबंदी के दौरान जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) और प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों (पीएसीएस) द्वारा 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट स्वीकार करने पर लगाए गए आरबीआई के प्रतिबंध को पूरी तरह वैध ठहराया है। कोर्ट ने इस प्रतिबंध को चुनौती देने वाली सात सहकारी समितियों की याचिकाओं को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि नौ साल बाद पुराने नोटों को बदलने का कोई कानूनी अधिकार नहीं बनता। जस्टिस डॉ. पुष्पेन्द्र सिंह भाटी और जस्टिस अनुरूप सिंघी की डिवीजन बेंच ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 14 और 17 नवंबर 2016 को जारी किए गए परिपत्र वैधानिक, तर्कसंगत और सार्वजनिक हित में थे। कोर्ट ने कहा कि इन परिपत्रों के आधार पर सहकारी समितियों में जमा करीब 3.50 करोड़ रुपये के 500 और 1000 के नोट अब नही बदले जा सकते हैं। मुख्य याचिका दुधू ग्राम सेवा सहकारी समिति लिमिटेड सहित सात समितियों की ओर से दायर की गई थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि 8 नवंबर 2016 को केंद्र सरकार ने आरबीआई अधिनियम, 1934 की धारा 26(2) के तहत अधिसूचना जारी कर पुराने नोटों को बैंकिंग चैनलों के माध्यम से जमा करने की अनुमति दी थी। उनका कहना था कि जिला केंद्रीय सहकारी बैंक भी लाइसेंस प्राप्त बैंक हैं, इसलिए उन्हें पुराने नोट स्वीकार करने से नहीं रोका जाना चाहिए था। याचिका में यह भी कहा गया कि नोटबंदी के समय उनके पास लाखों रुपये के पुराने नोट थे, जिन्हें जमा न कर पाने से उनकी कार्यशील पूंजी प्रभावित हुई। इसके जवाब में केंद्र सरकार और आरबीआई ने दलील दी कि नोटबंदी एक असाधारण आर्थिक निर्णय था। जिसे राष्ट्रीय हित में लागू किया गया। सहकारी बैंकों और पीएसीएस की ऑडिट व्यवस्था, तकनीकी तैयारी और निगरानी ढांचे को देखते हुए पुराने नोटों के दुरुपयोग की आशंका अधिक थी इसलिए अस्थायी रूप से इन पर प्रतिबंध लगाया गया। हाईकोर्ट ने कहा कि वह नोटबंदी की नीति की वैधता पर विचार नहीं कर रहा है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ पहले ही इसे सही ठहरा चुकी है। कोर्ट ने यह भी दोहराया कि आर्थिक और मौद्रिक नीतियों में न्यायिक हस्तक्षेप की सीमा बेहद सीमित होती है। भेदभाव के आरोपों को खारिज करते हुए कोर्ट ने माना कि सहकारी बैंकों को अलग श्रेणी में रखना तार्किक और उद्देश्यपूर्ण था। अंततः कोर्ट ने अनुच्छेद 14, 19(1)(जी) और 300-ए के उल्लंघन की दलीलों को अस्वीकार करते हुए सभी याचिकाएं खारिज कर दीं और कहा कि नोटबंदी जैसे असाधारण कदमों में नियामक निर्णयों पर न्यायालय को संयम बरतना चाहिए।
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