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जयपुर के महालक्ष्मी टकसाल मंदिर में दिवाली के मौके पर धन-समृद्धि का इतिहास उजागर
DGDeepak Goyal
Oct 17, 2025 08:05:31
Jaipur, Rajasthan
दिवाली का पर्व देवी लक्ष्मी की उपासना और समृद्धि की कामना का प्रतीक है। इस अवसर पर जहां घर-घर में धन की देवी की पूजा की जाती है, वहीं जयपुर में एक ऐसा प्राचीन मंदिर है, जहां मां महालक्ष्मी स्वयं “टकसाल” में विराजमान हैं। यानी उस जगह पर, जहां कभी सोने-चांदी के सिक्के ढाले जाते थे। करीब एक हजार साल पुराना चांदी की टकसाल स्थित महालक्ष्मी मंदिर जयपुर रियासत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है।
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VO-1-अष्ट सिद्धि और नव निधि के आधार पर बसें ढूंढाड़ में जयपुर रियासत की महालक्ष्मी जी का सबसे पुराना मन्दिर....पुरानी राजधानी आमेर की टकसाल बंद होने के बाद जयपुर के सिरह ड्योढ़ी बाजार में रामप्रकाश लक्ष्मी टॉकिज के सामने चांदी-सोने की मुद्रा ढालने के लिए टकसाल की इमारत बनवाई थी..इस टकसाल में सिक्के ढालने का काम शुरू किया उससे पहले प्रकांड विद्वानों ने धन की देवी महालक्ष्मीजी का अनुष्ठान किया था..रियासत काल में माता महालक्ष्मी के इस मन्दिर में सुबह शाम आरती और विधि विधान से पूजा के बाद ही चांदी के सिक्के और सोने की मोहरे बनाने का का काम शुरू किया जाता था..इस टकसाल में मां लक्ष्मी के अलावा धन के रक्षक भैंरोंजी महाराज की भी पूजा होती...टकसाल की इमारत के चारों कोनों में भोमिया जी को विराजमान किया गया है...माणक पर उत्कीर्ण मां लक्ष्मी की कृपा यहां के व्यापारी ही नहीं जयपुरवासियों में बरसती हैं...दीपोत्सव के दौरान मंदिर पूरे दिन दर्शनार्थियों के खुला रहता हैं...मां लक्ष्मी कमलासन पर विराजमान हैं.....मानसिंह प्रथम ने इस मंदिर की स्थापना करवाई.....पहले यहां सोने-चांदी की मुद्रा बनती थी....इसलिए इस जगह का नाम चांदी की टकसाल पडा..और जब यहां मुद्रा बना करती थी उस दौर में महालक्ष्मीजी का मंदिर धनतेरस और दिवाली पर ही खुलता था...पुराना रिजर्व होने के चलते उस समय आम पब्लिक दर्शन को एंट्री नहीं थी....लेकिन आज मंदिर आम दर्शनार्थियों के खुला रहता हैं...
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Bite-राजेन्द्र कुमार शर्मा, पुजारी
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VO-2-मां लक्ष्मी की प्रतिमा अत्यंत आकर्षक है। उनके ऊपर से 11 परियां पुष्पवर्षा کرتی दिखती हैं। दो गजराज उनका अभिषेक कर रहे हैं और पास में दो उल्लू उनके वाहन रूप में उपस्थित हैं। देवी मुद्रा आसन में भक्तों को आशीर्वाद देती हुई प्रतीत होती हैं। कई वर्षों तक मंदिर बंद रहा, लेकिन बाद में संघर्ष के बजाय इसे आम जनता के लिए खोला गया। अब हर शुक्रवार महाआरती होती है। इतिहासकारों के अनुसार, टकसाल का निर्माण उस समय हुआ जब जयपुर में सोने-चांदी की मुद्रा ढलाई शुरू की गई थी। यहां के सिक्कों की खासियत थी कि उन पर कचनार के झाड़ का प्रतीक अंकित किया जाता था, जिसके कारण उन्हें “झाड़शाही सिक्के” कहा जाता था। पुराने अभिलेखों के अनुसार, टकसाल में सिक्के ढालने के लिए बाहर से स्वर्णकार बुलाए गए थे। मंदिर में आने वाले भक्ति बताते हैं मंदिर में दर्शन करने के बाद सुकून तो मिलता है। साथ में मां लक्ष्मी कृपा भी बरसाती है।
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बहरहाल, यह सिर्फ मंदिर नहीं, बल्कि जयपुर की उस ऐतिहासिक परंपरा का प्रतीक है जिसमें पूजा और उत्पादन, आस्था और अर्थ दोनों एक साथ चलते थे। दिवाली के अवसर पर आज भी श्रद्धालु माता महालक्ष्मी की विशेष पूजा करते हैं और पूरे वर्ष के सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। सनातन धर्म में धन और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी माता लक्ष्मी को माना गया है...इन्हें भगवान विष्णु की पत्नी व विष्णु प्रिया नाम से भी जाना जाता है...दीपक गोयल जी मीडिया जयपुर
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