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जयपुर फायर ब्रिगेड पर सवाल: 50 लाख आबादी के लिए महज 60 दमकलें
DGDeepak Goyal
Oct 15, 2025 08:10:02
Jaipur, Rajasthan
एंकर- करीब पचास लाख की आबादी वाले राजधानी जयपुर का फायर ब्रिगेड बेड़ा खुद ही आग से निपटने की परीक्षा में कमजोर साबित हो रहा है। नेशनल फायर प्रोटेक्शन एसोसिएशन के मानकों के अनुसार हर 50 हजार की आबादी पर एक फायर टेंडर होना चाहिए, लेकिन शहर के पास महज 60 गाड़ियां हैं, जबकि जरूरत कम से कम 100 वाहनों की है।
वीओ-1- राजधानी की चमक-दमक के पीछे छिपा एक डरावना सच...अगर जयपुर में कहीं अलग अलग लोकेशन पर एक साथ बडी आग लग जाए, तो बुझाने वाला सिस्टम खुद धुएं में गुम हो जाएगा...पचास लाख की आबादी वाला राजधानी जयपुर में आग बुझाने का जिम्मा संभालने वाला फायर ब्रिगेड खुद ‘बुझी हुई चिंगारी’ साबत हो रहा है। शहर की ऊंची इमारतें, बढ़ती आबादी और तंग गलियां...सबके बीच फायर ब्रिगेड का सिस्टम संसाधनों के अभाव में धुआं-धुआं हो चुकी है। नेशनल फायर प्रोटेक्शन एसोसिएशन (NFPA) के मानक कहते है। हर 50 हजार आबादी पर एक दमकल जरूरी है। यानी जयपुर जैसे शहर को चाहिए कम से कम 100 फायर टेंडर होने चाहिए...लेकिन हकीकत यह कि शहर के पास है. मात्र 60 ही दमकलें हैं...बाकी जरूरतें कागजों की आग में जल रही हैं। जिस दमकल को आग पर काबू पाना है. वे खुद फायर फिट नहीं होती। पूरे शहर में सिर्फ एक 72 मीटर की हाइड्रोलिक प्लेटफॉर्म एरियल लैडर काम कर रही है। जबकि चारदीवारी क्षेत्र के लिए 42 मीटर की लैडर डेढ़ साल से घाटगेट फायर स्टेशन पर जंग खा रही है...सेंसर खराब है। और मरम्मत के नाम पर फाइलें धूल खा रही हैं। सिर्फ वाहन ही नहीं, फायरमैन और तकनीकी स्टाफ की कमी भी गंभीर है। बिल्डिंग परमिशन से लेकर एनओसी तक कागजों पर सब ‘सुरक्षित’ दिखता है। लेकिन जब हादसा होता है तो सिस्टम नाकाम साबित होता है। फायर स्टेशनों और दमकलों की कमी से दूरी और फेरे ज्यादा लगाने पडते हैं...अजमेर रोड भांकरोटा में आगजनी की घटना हो जाए तो मानसरोवर या बिंदायका से दमकलों को बुलाया जाता है...जिसके लिए दमकलकर्मियों को 10 से 12 किलोमीटर की दूरी तय करनी पडती हैं...इसी तरह आगरा रोड पर आगजनी की घटना होने पर बस्सी या घाटगेट फायर स्टेशन से दमकलों को बुलाना पडता हैं...जब तक आग विकराल रूप ले लेती हैं...
वॉक थ्रू—दीपक गोयल, जी मीडिया जयपुर
ग्राफिक्स के जरिए जानिए फायर शाखा
निगम हैरिटेज-ग्रेटर में फायर स्टेशनों की संख्या-12
छोटी-बडी दमकलों की संख्या-60
सीएफओ-1 एफओ-3 एएफओ-8 फायरमैन-474 ड्राइवर-174
ये बड़ी कमियां... वर्तमान में 12 फायर स्टेशन, कुछ के प्रस्ताव कागजों में जयपुर शहर और नगर निगम का दायरा तेजी से फैल रहा है...जयपुर में 12 फायर स्टेशन है. जो शहर के लिए काफी नहीं हैं। नगर निगम की फायर समिति ने नए स्टेशनों का प्रस्ताव मंजूर किया, लेकिन यह कागजों में ही रह गया। वर्तमान में वीकेआई, झोटवाडा, बिंदायका, मानसरोवर, सीतापुरा, जगतपुरा, मालवीय नगर, बाइस गोदाम, चौगान स्टेडियम, घाटगेट, आमेर और बनीपार्क में फायर स्टेशन हैं...और मानसरोवर पत्रकार कॉलोनी, वैशाली-पृथ्वीराज नगर, आगरा रोड, भांकरोटा में प्रस्तावित है.
10 लाख की आबादी पर भी 169 पद सृजित और 50 लाख की आबादी पर भी 169 पद
फायर ब्रिगेड बेड़े में विभिन्न संवर्ग के 169 पद तो तब सृजित हुए थे जब शहर की आबादी 10 लाख हुआ करती थी। बदकिस्मती यह है कि आज 50 लाख की आबादी पर भी यही पद हैं। जो अतिरिक्त भर्तियां हुई हैं, वे संविदा पर हैं। बड़े हादसों के लिए ये लोग इसलिए तैयार नहीं कि इनके लिए कोई लॉन्ग टर्म के प्रॉपर ट्रेनिंग प्रोग्राम नहीं। इन्हें सिर्फ 15 दिन की ट्रेनिंग मिली है।
50 लाख की आबादी वाले शहर में 72 मीटर की सिर्फ एक हाइड्रोलिक प्लेटफ़ॉर्म एरियल फायर लैडर फायर ब्रिगेड शाखा के पास 72 मीटर तक की ऊंचाई पर आग बुझाने में सक्षम है। यह सिर्फ एक गाड़ी है। जो मानसरोवर के फायर स्टेशन पर रहती है। जबकि चारदीवारी क्षेत्र के लिए 42 मीटर ऊंचाई तक आग बुझाने वाली हाइड्रोलिक प्लेटफ़ॉर्म एरियल फायर लैडर पिछले दो साल से खराब पड़ी हैं...इसके उलट जयपुर की संकरी गलियों में अग्निकांडों से निबटने के लिए कोई ठोस इंतजाम नहीं।
फायर सूट ही नहीं, कैसे बचे लपटों से जिंदगी? आग में फंसे लोगों को निकालने के लिए सबसे अहम संसाधन फायर सूट बेड़े में होना जरूरी है, लेकिन फायर ब्रिगेड के पास यह नहीं है। ऐसे में धधकती लपटों के बीच से जिंदगी को बचाना आसान नहीं है। एल्युमिनियम और एसबेस्टस के बने इस सूट को पहनकर फायरमैन लोगों को बचा सकते हैं।
वीओ-2-फायरफाइटर बताते है. की कई बार ऑफिस टाइम पर ऐसी घटनाएं हो जाती है...जब ट्रैफिक बहुत भारी होता है. गलियां तंग होती हैं, जिससे मौके पर समय से पहुंचना मुश्किल होता है...कभी-कभी तेज आग में जाना पड़ता है. लेकिन फायर सूट उपलब्ध नहीं होता तब जलन की पीड़ा सहकर भी ड्यूटी करनी पड़ती है...हालांकि जिस तरह से अग्नि दुर्घटनाएं बढ़ती जा रही हैं...उसी हिसाब से चैलेंज भी बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन इसके अनुसार इक्विपमेंट मौजूद नहीं हैं...इसकी प्रशासन से डिमांड की गई है...
बाइट-गौतमलाल, सीएफओ, नगर निगम
बहरहाल, जब हर बड़े होटल, मॉल और मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में फायर सेफ्टी अनिवार्य है. तो शहर की ‘सेंट्रल फायर सेफ्टी’ ही इतनी पंगु क्यों?...जयपुर जैसी राजधानी में फायर विभाग इतना कमज़ोर और उपेक्षित क्यों है?...दीपक गोयल जी मीडिया जयपुर
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