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जयपुर के एसएमएस ट्रॉमा सेंटर में आग: फायर सिस्टम फेल, 11 मरीजों की मौत
DGDeepak Goyal
Oct 06, 2025 12:31:51
Jaipur, Rajasthan
राजस्थान के सबसे बड़े एसएमएस अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में लगी आग ने अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है। न्यूरोसर्जरी आईसीयू में रविवार रात लगी आग में मरीजों की मौत हो गई। बताया जा रहा है कि फायर फाइटिंग सिस्टम और स्मोक डिटेक्टर दोनों ने वक्त पर काम नहीं किया, जिसके चलते हादसा बड़ा रूप ले बैठा।
राजधानी जयपुर के एसएमएस ट्रोमा सेंटर से आई आगजनी की यह खबर सिर्फ एक हादसा नहीं… बल्कि सिस्टम की लापरवाही से बुझी ज़िंदगी की कहानी है। जिन वार्डों में मरीजों को जिंदगी की सांसें दी जानी थीं, वहीं धुएं ने उनकी आखिरी सांसें छीन लीं। रविवार देर रात जब न्यूरोसर्जरी आईसीयू में शांति पसरी थी, तभी एक वार्ड के कोने में बने स्टोर रूम से धुआं उठने लगा। वहां दवाइयों के खाली बॉक्स, पुराने गत्ते और फाइलों का ढेर धधक उठा। जानकार सूत्रों की माने तो स्मोक डिटेक्टर ने सही से काम ही नहीं किया। जिसके कारण अलार्म सिस्टम समय पर एक्टिवेट नहीं हुआ। फायर स्प्रिंकलर सिस्टम था ही नहीं...और जो मैनुअल सिस्टम था, उसे चलाने का तरीका किसी को पता नहीं था। कुछ मिनटों में ही धुआं पूरे आईसीयू में भर गया। मरीजों की मॉनिटर मशीनें बीप करने लगीं…नर्सें और परिजन घबराकर दौड़े। कुछ ने अपने प्रियजनों को खींचकर बाहर निकाला, कुछ की सांसें उसी धुएं में रुक गईं। परिजन बाहर खड़े थे, अचानक धुआं उठा। अंदर गए तो कुछ दिख ही नहीं रहा था। जो मिल सका, उसे खींचकर बाहर लाए, बाकियों को नहीं निकाल पाए। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि स्मॉक अलार्म समय पर बजा तभी स्टाफ को आग लगने की सूचना मिली और रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया।
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि जहां आग लगी, वह असल में मरीजों का वार्ड था, जिसे बाद में स्टाफ ने ही स्टोर रूम में बदल दिया। वहां गत्ते, दवाइयों के खाली बॉक्स और कागजों का ढेर लगा था। यही कबाड़ आग को हवा देता गया और देखते-देखते पूरा आईसीयू लपटों में घिर गया। यह भी सामने आया है कि ट्रॉमा सेंटर के इस हिस्से में ऑटोमेटिक फायर स्प्रिंकलर सिस्टम नहीं था। यहां मैनुअल वाटर लाइन सिस्टम लगा हुआ था, जिसे चलाने का तरीका तक स्टाफ और सुरक्षा गार्डों को नहीं पता था। नतीजा जब आग फैली तो पानी का एक भी जेट नहीं चला। न्यूरोसर्जरी आईसीयू में कुल 11 बेड थे। हादसे के समय सभी भरे हुए थे। स्टाफ ने कोशिश कर 5 मरीजों को बाहर निकाला, लेकिन मरीजों की जान नहीं बचाई सकी।
बहरहाल, हादसे में कई लोगों की मौत हो गई। लेकिन सवाल यह है क्या ये मौतें रोकी नहीं जा सकती थीं? क्यों उस वार्ड को स्टोर रूम बना दिया गया, जहां बेड लगाने थे? क्यों पुराने सिस्टम पर ही भरोसा किया गया, जब मरीजों की जिंदगी दांव पर थी? और आखिर कब तक सरकारी अस्पतालों में फायर सेफ्टी सिर्फ कागजों में पूरी होती रहेगी? ट्रोमा सेंटर के दरवाजे पर अब सिर्फ धुआं नहीं…छह परिवारों का दर्द, लापरवाही का बोझ और सवालों की आग है। जो बुझने का नाम नहीं ले रही।
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