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पारिजात वृक्ष से महाभारत की वजह बन गया कुंटेश्वर महादेव मंदिर का राज
VSVISHAL SINGH
Sept 13, 2025 12:50:41
Noida, Uttar Pradesh
Special story
पारिजात वृक्ष और कुंटेश्वर महादेव मंदिर का रहस्य
Story ---
एक पेड़ का फूल जिसने पांडवों को दिलाई थी महाभारत में जीत
जिस शिवलिंग पर चढ़ाया गया था फूल आज भी पहली पूजा करती है उस शिवलिंग पर अदृश्य शक्ति
Dopesheet---पारिजात वृक्ष के अच्छे अच्छे शॉट्स,सफेद फूल के शॉट्स,सुनहरे फूल के शॉट्स,ओपनिंग पीटीसी,वहां के पुजारी से बातचीत,तमाम श्रद्धालुओं से बातचीत,पारिजात वृक्ष से कुंटेश्वर मंदिर के बारे में बताते हुए वाक थ्रू,कुंटेश्वर मंदिर के शॉट्स,शिवलिंग के शॉट्स,मंदिर के महंत के साथ बातचीत,मिड और फाइनल पीटीसी मंदिर से,
Story डिटेल
साढ़े पांच हजार वर्ष सुनने में तो काफी कम लगते है. मगर सोचों तो ना जाने कितनी पीढ़ियां काल के कपाल में समां चुकी है. इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी दुनिया में अगर कहीं कोई महाभारत काल का जिन्दा गवाह मौजूद है तो वह सिर्फ और सिर्फ उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद में है.देवासुर संग्राम के समय हुए समुन्द्र मन्थन से परिजात वृक्ष निकला था. उसे देवताओं के राजा इन्द्र अपने साथ स्वर्गलोक लेकर गए थे. द्वापर युग में भगवान कृष्ण के आदेश पर महाराजा पाण्डु के पुत्र धनुर्धारी अर्जुन उसे पृथ्वी पर लाये थे. ये वही देव वृक्ष पारिजात है. कहा जाता है विद्वानों के मतानुसार महाभारत काल में पाण्डवों के अज्ञातवास के दौरान माता कुन्ती को भगवान शिव ने स्वर्ण के सामान दिखने वाले पुष्प अर्पित करने को कहा था.माता कुन्ती ने भगवान शिव की इस इच्छा को अपने पुत्र अर्जुन से बताया और फिर अर्जुन ने भगवान् कृष्ण के परामर्श से इन्द्रलोक जाकर इसे पृथ्वी पर रोपित किया. इसके पुष्पों को जब माता कुन्ती ने शिव को समर्पित किया तो प्रसन्न होकर भगवानशिव ने महाभारत युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया. आज भी वर्ष में एक बार इस वृक्ष में पुष्प आते हैं. सावन के महीने से पहले ही इन पुष्पों का आना तय माना जाता है.
यह चमत्कारिक देव वृक्ष है बाराबंकी जनपद के तहसील राम नगर इलाके के बदोसराय क्षेत्र में.बाराबंकी मुख्यालय से इसकी दूरी लगभग पचास किलोमीटर है.ऐसा माना जाता है कि पाण्डवों ने अपना अज्ञातवास यहीं बराहवन (बदला हुआ नाम बाराबंकी ) के इसी इलाके में गुजारा था.अज्ञातवास के दौरान पाण्डवों की माता कुन्ती को भगवानशिव ने स्वप्न में आकर उनसे स्वर्ण के समान दिखने वाले पुष्पों को समर्पित करने की इच्छा व्यक्त की थी.भगवान शिव की इस इच्छा को उनका आदेश मानकर माता कुन्ती ने अपने पुत्र अर्जुन को ऐसे पुष्प लाने को कहा.माता के आदेश पर अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से इस बारे में परामर्श लिया. तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि ऐसे पुष्प देने वाला वृक्ष समुन्द्र मन्थन से प्राप्त हुआ था जो अब इन्द्रलोक में ही है.भगवानकृष्ण का आदेश पाकर अर्जुन इन्द्रलोक से पारिजात वृक्ष को पृथ्वी पर लेकर यहांबाराबंकी में स्थापित किया.इस वृक्ष के स्वर्ण के समान दिखने वाले पुष्पों को माता कुन्ती ने इसी क्षेत्र में एक शिवलिंग स्थापित कर जो आज कुन्तेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है.भगवान् शिव ने तब प्रसन्न होकर पाण्डवों को महाभारत युद्ध में जीत का आशीर्वाद दिया.
परिणाम स्वरुप कौरवों की करोड़ों की सेना पर पाण्डवों की जीत हुयी.इस पुष्प की विशेषता यह है कि जब यह वृक्ष में होता है तो यह सफेद रंग सा दिखता है. लेकिन जब यह वृक्ष से टूटता तो यह स्वर्ण के समान सुनहरा दिखता है.
कुंतेश्वर महादेव के बारे में कहा जाता है कि कोई भी व्यक्ति पहले पूजा नहीं कर सकता है। माना जाता है कि, यहां शिवलिंग पर अदृश्य शक्ति ब्रह्म मुहूर्त के आसपास सबसे पहले पूजा अर्चना कर जाती हैं। यह रहस्य कुंतेश्वर महादेव मंदिर को और अहम बना देता है।पौराणिक मान्यता के अनुसार, महाभारत काल में माता कुंती अपने पांच पांडव पुत्रों के संग अज्ञातवाश के दौरान यहां आईं तो उन्होंने महाबली भीम से यहां पर शिवलिंग की स्थापना को कहा था। इस पर भीम ने मां की आज्ञा का पालन करते हुए यहां पर दो शिवलिंग की स्थापना कर दी।
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